tag:blogger.com,1999:blog-36839053.post5698543558286740283..comments2023-10-25T01:57:16.030-07:00Comments on चक्रधर की चकल्लस: शब्दोत्तर और लोकोत्तर मनोभूमिAshok Chakradharhttp://www.blogger.com/profile/09746363048746219100noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-28146289289703059582010-08-03T04:57:57.974-07:002010-08-03T04:57:57.974-07:00वाह! का बातए आनंद आ गयौं पढ़कै.वाकई शब्द भौत बातूनी...वाह! का बातए आनंद आ गयौं पढ़कै.वाकई शब्द भौत बातूनी होतैं.इतनी बात करतैं जाकी कोई सीमा नायँ.चौंरे चंपू भौत अच्छौ लगौ.<br /><br /><br />मीनाडा.मीना अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/10411559782145200692noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-75190607208333168012010-07-28T12:08:51.158-07:002010-07-28T12:08:51.158-07:00कविता के बहाने शब्दों की मनोभूमि पर अच्छा लेख । कव...कविता के बहाने शब्दों की मनोभूमि पर अच्छा लेख । कविता का आनंद ही यही है कि हर व्यक्ति इसका अर्थ अपने वैयक्तिक अंदाज़ से लेता है ...इसलिए उच्च कोटि की कविता वही कहलाती है,जिसके उतने ही अर्थ हों,जितने कि उसके पाठक या श्रावक ! कविता को शब्द और लोक से परे व्यक्ति की मनोभूमि में ही समझा जा सकता है ...इन अर्थों में कविता का अनुवाद दुसाध्य हो जाता है ।मनोज भारतीhttps://www.blogger.com/profile/17135494655229277134noreply@blogger.com