tag:blogger.com,1999:blog-36839053.post8851654497013623023..comments2023-10-25T01:57:16.030-07:00Comments on चक्रधर की चकल्लस: सिल से सिलीकॉन तक संदेशों के सिलसिलेAshok Chakradharhttp://www.blogger.com/profile/09746363048746219100noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-9718924131636105552007-06-14T06:27:00.000-07:002007-06-14T06:27:00.000-07:00मजा आ गया। आपकी लेखनी को सलाममजा आ गया। आपकी लेखनी को सलामSatyendra Prasad Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/11602898198590454620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-24610531336642982812007-06-14T05:26:00.000-07:002007-06-14T05:26:00.000-07:00आपने तो सिलीकॉन के नये सिलसिले बना दिये.अच्छे हैं....आपने तो सिलीकॉन के नये सिलसिले बना दिये.अच्छे हैं...काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-17968497694539528772007-06-14T04:56:00.000-07:002007-06-14T04:56:00.000-07:00आइइला तात! बहुत बढ़िया है। मज़ा आ गया पढ़ कर। वाह-वाह...आइइला तात! बहुत बढ़िया है। <BR/>मज़ा आ गया पढ़ कर। वाह-वाह! <BR/>बहरहाल हमारा ये लैटर्य स्वीकार करें।कच्चा चिट्ठाhttps://www.blogger.com/profile/16304655546364662165noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-82992237148783219592007-06-14T04:41:00.000-07:002007-06-14T04:41:00.000-07:00कुछ तो है जो आपकी रचनाओं,भावनाओं, समीक्षाओं आदि आद...कुछ तो है जो आपकी रचनाओं,भावनाओं, समीक्षाओं आदि आदि मेँ परिलक्षितस्य है.<BR/>आपका चाक्रधर्य इतना चकलस्सीय होगा इसका परिकल्पनाया जाना भी दुरूह्तमत्व की श्रेणी मेँ रखनीय है.<BR/>वाह भई वाह<BR/>अरविन्द चतुर्वेदी<BR/>भारतीयम्डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedihttps://www.blogger.com/profile/01678807832082770534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-69672868857818970942007-06-14T03:44:00.000-07:002007-06-14T03:44:00.000-07:00आपकी रचनायें कई जगहों पर पढी हैं। इतने महान साहित्...आपकी रचनायें कई जगहों पर पढी हैं। इतने महान साहित्यकार को ब्लोग पर देखकर सुखद आश्चर्य हुआ। प्रणाम स्वीकार करें।Vikashhttps://www.blogger.com/profile/01373877834398732074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-9922183971315982212007-06-14T03:36:00.000-07:002007-06-14T03:36:00.000-07:00अशोक जी..रचना ने इतना आनंदित किया कि मुस्कुराहट अब...अशोक जी..<BR/><BR/>रचना ने इतना आनंदित किया कि मुस्कुराहट अब तक विराजमान है। मैं कथ्य से अधिक आपकी भाषा से प्रभावित हूँ। शब्दों को गढने, उन्हें नव रूप प्रदान करनें और फिर प्रचलित करने में आपकी दक्षता को को हिन्दी के प्रति सशक्त योगदान कहा जायेगा। व्यंग्य निश्चित एक पैनी विधा है किंतु इस रचना की यदि बात करूं तो एक स्तरीय हास्य के भीतर छुपे हुए व्यंग्य से पाठक बोझिल भी नहीं हो सकता और..घाव भी गंभीर।<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-16144193927213839352007-06-14T03:29:00.000-07:002007-06-14T03:29:00.000-07:00लेख की शुरुआत में था हास। पढ़ते रहे समझ कर परिहास।...लेख की शुरुआत में था हास। पढ़ते रहे समझ कर परिहास। जब समापन होने आया तो चुभी हमें भी फाँस।Atul Sharmahttps://www.blogger.com/profile/16469390879853303711noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-28943882699385523562007-06-14T03:26:00.000-07:002007-06-14T03:26:00.000-07:00अद्भुत रचना.मजा आया.अद्भुत रचना.<BR/>मजा आया.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-36839053.post-39223730839799426712007-06-14T03:07:00.000-07:002007-06-14T03:07:00.000-07:00Hello Sir,कल पहली दफा आपका ब्लाग सर्च में मिला देख...Hello Sir,<BR/>कल पहली दफा आपका ब्लाग सर्च में मिला देख कर मन पुल्कित हो गया की जिनकी रचना को कभी किताबों में पढ़कर इस डर से बंद कर देते थे कि अगर नहीं लिखते तो कितना अच्छा होता परीक्षा में कम-से-कम एक भाग तो कम होता…।<BR/>मगर अब वह दुविधा परिपक्व अवश्था में पहुंच गई है…तो अब यह लेखनी सुकून का साधन भी और समाजिक क्रिया पर नये दृष्टिकोंण का विकास भी है…<BR/>यहाँ कहने की यह आवश्यकता नहीं है कि इस को रचना पढ़ने के बाद कैसा महसूस कर रहा हूँ…।Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.com