Monday, September 03, 2007

कारे कान्हा प्यारे क्यूं?

नैन हुए जलधारे क्यूं
कोई किसी को मारे क्यूं?








तुम इतने बेचारे क्यूं?
उनके वारे न्यारे क्यूं?

हम तो ऐसे कभी न थे
बदल गए हम सारे क्यूं?

पत्ती से पूछे चिड़िया
पेड़ की खातिर आरे क्यूं?

जिनके रहते हिम्मत थी,
वे ही हिम्मत हारे क्यूं?

दिल ही जिनके बहरे हैं
दिल से उन्हें पुकारें क्यूं?

उनके लिए महल कोठी
तुझको ईंट और गारे क्यूं?

गंगा शीश झुकाय नहीं
सागर चरण पखारे क्यूं?


सहने की भी सीमा है
मिलते नहीं सहारे क्यूं?

आंखों के मीठे सपने
बहकर हो गए खारे क्यूं?

रात में बादल धुंध धुआं
दिन में दिखते तारे क्यूं?

सन्नाटों से गूंज रहे
गांव गली गलियारे क्यूं?

गोरी से दरपन पूछे
कारे कान्हा प्यारे क्यूं?

22 comments:

  1. बहुत ही स-रस रचना.

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  2. जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों के साथ कन्हैया की बांसुरी की मीठी तान सुनाई दी। मज़ा आ गया सर!

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  3. तुम हो इतने प्यारे क्यूं?

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  4. श्वेत धवल गंगा थी बहती
    उसमे गंदे नाले क्यू..?
    यू तो संसद बडी साफ़ है
    यहा बदबू वाले सारे क्यू..?
    खुशबू फ़ूलो की सुंघवा कर
    बाट रहे अंगारे क्यू..?
    लुच्चो टुच्चो से भरे हुये है
    सत्ता के गलियीरे क्यू..?

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  5. सर,
    आप की कविताओं के लिए इस कमेंट वाले बॉक्स की जरूरत शायद नहीं है.

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  6. guru dev..thoda humein bhi likhanaa sika dijiye//

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  7. आंखों के मीठे सपने
    बहकर हो गए खारे क्यूं?

    वाह वाह.. सुबहान कान्हा.. वाह

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  8. चाचू मुझे तो आपकी रचना के साथ साथ अरुण भैया की रचना भी बहुत अच्छी लगी...मज़ा आ गया पढ़कर...

    सुनीता(शानू)

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  9. बहुत बढिया...आज की सच्चाई के साथ कृष्ण जी की याद,बंसी की मी्ठी तान बहुत अच्छी लगी।

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  10. गुरुवर थोड़ा हमारे चिट्ठे पर आकर हमारी रचनाओं पर दयादृष्टि डालें।
    और यदि संभव हो तो थोड़ा मार्ग-दर्शन दें।

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  11. व्रंदावन का क्रष्ण कनैया
    सब की आँखों का तारा.
    देवी

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  12. आप हमें बतलायें आपके
    दीवाने हैं सारे क्यूँ

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  13. आप हमें बतलायें आपके
    दीवाने हैं सारे क्यूँ

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  14. ashok ji aaj pehli baar aapka blog dekha hai,aur kahney me hichkichaungi nahi ki bahut pehley aap unaao aaye they aur hum saari saheliyon ko aape crush ho gaya thaa,

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  15. गुरुदेव नमस्कार....

    वैसे आपको कई बार टीवी पर सुना है...
    लेकिन पहली बार आपके ब्लॉग पे पहुँच कर लग रहा है कि जैस कोई मोर्चा फतह कर लिया हो...

    टीवी पर देखना और बात है और यूँ सीधे-सीधे आपको पढना और बात है ...

    अभी भी पूर्ण उर्जा से आप डटे हुए हैँ मैदान में...इसके लिए बधाई..

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  16. humne bahut padhi rachna,
    ye sab aap padhwa raye kyun?
    vishv manch par dhoom maachate
    kavi yahan bechaare kyun?
    kanha bansi nahin baje ab
    aap yunhi bajwa raye kyun?
    humne dekhi nahin hai duniya
    aap hume dikhwa raye kyun?
    sapno ke ab 'mall' hain bante
    mahal aap banwa raye kyun?
    -Amit Mathur

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  17. बहिर्लोक से अंतर्लोक में
    गूँज उठे जयकारे क्यूँ?
    पढ़ी जो रचना हमने आपकी
    पढ़कर यूँ बौरारे क्यूँ?
    धन्य भाग मानुष देह पाई
    आन लगे अब किनारे क्यूँ?
    आपकी रचना पढ़कर सोचे
    गुरुवर न स्वीकार क्यूँ?

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