चक्रधर की चकल्लस
Wednesday, April 27, 2011
आत्मघात से बुरी कोई चीज़ नहीं
›
—चौं रे चम्पू! पिछले दिनन में कौन सी खबर नै तेरौ ध्यान खैंचौ? —चचा, ख़बरें तो हर दिन देश की, विदेश की, परियों की, परिवेश की और मुहब्बतों के ...
34 comments:
Wednesday, April 20, 2011
आंतरिक ऊष्मा की किरणें
›
—चौं रे चम्पू! तेरे कित्ते दोस्त और कित्ते दुस्मन ऐं रे? —चचा, दोस्ती और दुश्मनी के बारे में मेरे पिताजी एक बात कहा करते थे। —बता! बो तौ हमे...
11 comments:
Tuesday, April 19, 2011
लकड़ी से तगड़ी आरी
›
(कहते हैं कि आरी के पास आंखें नहीं होतीं पर मनुष्य के पास तो हैं।) जंगल में बंगले बंगले ही बंगले नए नए बनते गए बंगले ही बंगले। बंगलों में च...
7 comments:
Monday, April 18, 2011
याद रखो मौत मुस्कराती नहीं है
›
(तुम और तुम्हारी मौत एक ही लग्न में जन्म लेते हैं, पर मौत पहले मर सकती है।) किसी की उम्र कम किसी की लंबी है, और मौत महास्वावलंबी है। अपना न...
13 comments:
Sunday, April 17, 2011
युवा का उल्टा वायु
›
(युवा हवाओं और धाराओं के विपरीत चलकर भी मंज़िल पाते हैं।) युवा का उल्टा वायु वायु माने हवा, हवा का उल्टा वाह बस यही युवा की चाह। चाहिए वाह, व...
8 comments:
Tuesday, April 12, 2011
खोपड़ी की खपरैल तले
›
—चौं रे चम्पू! सुनी ऐ कै तैनैं कोई कबता लिखी ऐ, दो अपरैल और नौ अपरैल के बारे में, का लिखी ऐ? —चचा, लिख दी, भेज दी, छप गई। ताज़ा कविता याद थोड़...
6 comments:
दरोगा जी समझ नहीं पाए
›
(समझदार भाषा कई बार नासमझी की जननी बन जाती है।) हाए हाए! दरोगा जी कुछ समझ नहीं पाए! आश्चर्य में जकड़े गए, जब सिपाही ने उन्हें बताया— रामस्वरू...
7 comments:
दोनों घरों में फ़रक है
›
(घर साफ़-सुथरा रखें तो आंगन में ख़ुशियां थिरकती हैं।) फ़रक है, फ़रक है, फ़रक है, दोनों घरों में फ़रक है। हवा एक में साफ़ बहे, पर दूजे में है गन्द...
6 comments:
Monday, April 11, 2011
›
प्रथमांक विमोचन मध्योत्तरी कला संगम लोक कला व संस्कृति की तिमाही संपादक : अशोक चक्रधर इस अंक में इस अंक में जहां एक ओर गवेषणात्म...
4 comments:
›
Home
View web version