
(युवा हवाओं और धाराओं के विपरीत चलकर भी मंज़िल पाते हैं।)
युवा का उल्टा वायु
वायु माने हवा,
हवा का उल्टा वाह
बस यही युवा की चाह।
चाहिए
वाह, वाह, वाह।
दिल के अरमानों के
पंख निकल आए हैं,
उड़ना सीख लिया है
यों पर फैलाए हैं।
बादल के ऊपर जो
फैला नीलगगन है,
उड़ने की मस्ती में
मन हो रहा मगन है।
अच्छा लगे न सूरज
गर वो देता कोई सलाह।
वाह जी
वाह, वाह, वाह।
धरती की गोदी से
निकली तरुणाई है
बाहर आकर खुल कर
लेती अंगड़ाई है।
संकल्पों की माला
इसने आज पिरोई,
बहता ये पानी है
रोक न पाए कोई।
मुश्किल है जो मंज़िल
इसने पकड़ी है वो राह।
बोलिए
वाह, वाह, वाह!
मुश्किल है जो मंज़िल
ReplyDeleteइसने पकड़ी है वो राह।
कोई भी नहीं सकता
इसको हरा ( राह का उल्टा )
वाह वाह वाह ..बहुत सुन्दर रचना
चाह का उल्टा हचा,
ReplyDeleteवस यहीं बवाल मचा।
हर चीज़ का उल्टा-पुल्टा नहीं होता, पर आप क्षमतावान हैं कर सकते हैं।
ReplyDeleteधरती की गोदी से
ReplyDeleteनिकली तरुणाई है
बाहर आकर खुल कर
लेती अंगड़ाई है।
संकल्पों की माला
इसने आज पिरोई,
बहता ये पानी है
रोक न पाए कोई।
मुश्किल है जो मंज़िल
इसने पकड़ी है वो राह।
बोलिए .. बहुत सुन्दर रचना भावों को अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई
युवा -वायु , हवा -वाह , चाह -हचा --
ReplyDeleteइस कड़ी को आगे बढाया जाए तो मज़ा आ जाए ।
हम तो अब तक मलयालम को ही उलटा-पुलटा करने के चक्कर में रहे यहां चक्र अन्य शब्दों को देख कर दंग[गंदऽऽऽ नहीं] रह गए :)
ReplyDeleteयह सब भास्कर में सुबह पढ़ा था। यहाँ तो री-ठेल है। मगर है चुटीला।
ReplyDeleteसरल भाषा, सहज अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteबिना आडम्बर के गहन बात को
सपाट बयानी कर देना तो कोई
आप से सीखे। मानस मन पर
प्रभाव डालने वाली रचना।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास