Tuesday, April 19, 2011

लकड़ी से तगड़ी आरी


(कहते हैं कि आरी के पास आंखें नहीं होतीं पर मनुष्य के पास तो हैं।)

जंगल में बंगले
बंगले ही बंगले
नए नए बनते गए
बंगले ही बंगले।

बंगलों में चारों ओर
जंगले ही जंगले
छोटे-छोटे बड़े-बड़े
जंगले ही जंगले

जंगल से काटी गई
लकड़ी ही लकड़ी,
चीरी गई पाटी गई
लकड़ी ही लकड़ी।

चौखट में द्वारों में
लकड़ी ही लकड़ी
फ़र्शों दीवारों में
लकड़ी ही लकड़ी।

मानुस ने मार बड़ी
मारी जी मारी,
लकड़ी से तगड़ी थी
आरी जी आरी।

आरी के पास न थीं
आंखें जी आंखें,
कटती गईं कटती गईं
शाखें ही शाखें।

बढ़ते गए बढ़ते गए
बंगले ही बंगले,
जंगल जी होते गए
कंगले ही कंगले।

हरा रंग छोड़ छाड़
भूरा भूरा रंग ले,
जंगल जी कंगले
या बंगले जी कंगले?

7 comments:

  1. हरा रंग छोड़ छाड़
    भूरा भूरा रंग ले,
    जंगल जी कंगले
    या बंगले जी कंगले?
    wah......bahut achchi lagi ye kangle aur bangle ki baat.

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  2. अब तो सारे जंगल कंक्रीट के हो गए हैं ...गहन अभिव्यक्ति

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  3. जयराम रमेश विदेश में थे क्या ???

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  4. बहुत खुब. बिल्कुल अशोक चक्रधर टाइप.

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  5. अशोक जी , जंगल में मंगल वाली कहावत चरितार्थ होती जा रही है | आने वाले दिनों में
    लोगो की छतों में रखे गमले (roof garden ) ही जंगल कहलायेंगे

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  6. bangle raah jangal to
    kaate ji kaate
    ghar vaaste dariya kya
    paate hain paate
    mere tere ki hod mein
    gar jee bhi lo atpatate
    par bachonchon se kya kahoge
    jab gunjenge sannate

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  7. bin bangle ke kangle hai ham, ped katne me lage hai dam.
    baithe thale aram karenge ham, mashine wali ari se na lagega dam.

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