
बहुत पहले बहुत पहले
बहुत पहले से भी बहुत पहले
इस असीम अपार अंतरिक्ष में
घूमती विचरती हमारी धरती!
बड़े-बड़े ग्रह-नक्षत्रों के लिए
एक नन्हा सा चिराग थी,
जिसके चारों ओर आग ही आग थी।
बहुत पहले से भी बहुत पहले
जब प्रकृति की सर्वोत्तम कृति
मनुष्य का कोई हत्यारा नहीं था,
तब समंदर का पानी भी
खारा नहीं था।
इंसान बिना किसी पोथी के
एक दूसरे की आंखों में
प्यार के ढाई आखर बाँचता था,
तब समंदर भी
अपनी उत्ताल लय ताल में
नाचता था।
लहर लहर बूंद बूंद उछलता था,
तट पर बैठे प्रेमियों के
पैर छूने को मचलता था।
अचानक कोई कुलक्षिणी कुनामी
पर कहने को सुनामी
बेशुमार बस्तियों को ढहा कर ले गई,
प्यारे-प्यारे इंसानों को
बहा कर ले गई।
बहुत पहले से भी बहुत पहले,
दिल दहले बहुत दहले।
जिन्होंने भी अपने आत्मीय खोए
वे ख़ूब-ख़ूब रोए।
और जैसे ही व्याकुल और सिरफिरा,
पीड़ा का पहला आंसू
समंदर में गिरा,
समंदर सारा का सारा,
पलभर में हो गया खारा।
ek dam sateek chitran kya aapne gurudev
ReplyDeleteसचमुच बड़ी कुनामी,
ReplyDeleteफिर न आये सुनामी।
और अब... आणविक शक्ति के खुमार में आदमी यह भी भूल गया कि ढाई अक्षर भी कोई चीज़ है :)सुन..नामी गिरामी भी डूब मरे :(
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ReplyDeleteअति सुन्दर...
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