आपकी कविता का बेसब्री से इंतज़ार था। व्यंग्य-हास्य और दर्द क्या कुछ नहीं है इस रचना में। भावनाओं को शब्द देने की आपकी कला अचरज में डालती है....आपकी लेखनी को नमन।
तू सुनता था और मै छोड्ता लेकिन तू पकडता रहता और मै छोडता अब कैसे कहता है कुछ नही छोडा गर नही छोडा तो ये कहा से सुनाया अरे ये वाह वाह और इतनी टिप्पणिया कहा से लाया
प्रणाम सर, ऐसा गम्भीर हास्य,व्यंग सिर्फ आपकी ही कलम से निकल सकता है यह तथ्य सर्वसत्य है..और कविता मस्त है.ब्लॉग जगत धन्य हो गया आपके आने से.. धन्यवाद के साथ आपका, -विज
or dekhiye Vaam-Dalo ney congress ko choda,congress ney jinko paheley choda tha unoney hi sarkaar ko bachaney key liye apna din-imman choda......... aakhir kab tak hum bachou ki tarah kheltey rahengey..
Ashok Ji, Bahut Badhiya likha hai..par aap likhna mat chodiyga...
कौन है वो!! :)
ReplyDeleteअशोक जी..
ReplyDeleteआपकी कविता का बेसब्री से इंतज़ार था। व्यंग्य-हास्य और दर्द क्या कुछ नहीं है इस रचना में। भावनाओं को शब्द देने की आपकी कला अचरज में डालती है....आपकी लेखनी को नमन।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत बढ़िया ....स्वागत है आपका
ReplyDeleteब्लॉग पर काफी अच्छी छोड़ी है सर आपने!
ReplyDeleteहाँ, कमबख्त छोड़ेगा
ReplyDeleteयह सोच उसे छोड़ा नहीं,
अब उनसे छोड़ते हुए कुछ नहीं छोड़ा
और कहता है, मझधार में तो छोड़ दिया और क्या छोड़ूं? :)
मस्त चकलस है जी. आनन्द आया.
देख कर अच्छा लगा, चकल्लसों की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteये "छोड़्ना" अच्छी रही.
ReplyDeleteवाह, वाह, वाह, वाह
ReplyDeleteअशोक चाचा बचपन से मै आपकी कविताएँ सुनती आई हूँ क्या छोड़ते है आप.. डॉक्टर वैसे भी यदि हँसाने वाला हो तो आधे मरीज अपने आप ठीक हो जाते है...
ReplyDeleteसुनीता(शानू)
तू सुनता था
ReplyDeleteऔर मै छोड्ता
लेकिन तू पकडता रहता
और मै छोडता
अब कैसे कहता है
कुछ नही छोडा
गर नही छोडा तो
ये कहा से सुनाया
अरे ये वाह वाह
और इतनी टिप्पणिया
कहा से लाया
गुरुदेव क्षमायाचना सहित
आपका
पंगेबाज
Bahut Badhiya Guruvar....
ReplyDeleteBadhiyaa hai Ashok ji
ReplyDelete'वाह-वाह' कहे बिना दिल माना नहीं अशोक जी।! आपकी इस छोटी सी कविता ने हमें छोड़ा तो नहीं पर आपका बना दिया है और कसम से अब आपको नहीं छोड़ूंगा।
ReplyDeleteअशोक अंकल! मज़ा आ गया। आपकी नई रचना का इंतेज़ार रहेगा।
ReplyDeleteवाह, क्या बात है!! अब फिर इंतजार है. :)
ReplyDeleteप्रणाम सर,
ReplyDeleteऐसा गम्भीर हास्य,व्यंग सिर्फ आपकी ही कलम से निकल सकता है यह तथ्य सर्वसत्य है..और कविता मस्त है.ब्लॉग जगत धन्य हो गया आपके आने से..
धन्यवाद के साथ
आपका,
-विज
चक्रधर जी यह रचना पढकर मैं आपका फैन हो गया। सच कह रहा हूँ , छोड नहीं रहा।
ReplyDeleteचलो फ़िर भी एक बात अच्छी रही कि चलते चलते उसने अपने साथ चलने के लिये नही कहा...
ReplyDeleteजान है तो जहान है... अशोक जी :)
waah mazaa aa gaya...padhkar
ReplyDeletechalo oochee occhee chhoden
ReplyDeleteमरते मरते भी पंगा लगा गया, कम्बख़्त।
ReplyDeleteवाह वाह, क्या छोडा है.
ReplyDeletebahut hi badhiya/
ReplyDeleteor dekhiye Vaam-Dalo ney congress ko choda,congress ney jinko paheley choda tha unoney hi sarkaar ko bachaney key liye apna din-imman choda.........
ReplyDeleteaakhir kab tak hum bachou ki tarah kheltey rahengey..
Ashok Ji, Bahut Badhiya likha hai..par aap likhna mat chodiyga...