Sunday, June 03, 2007

अशोक चक्रधर की चकल्लस


बड़ा रस है चकल्लस में

6 comments:

  1. अगर चिट्ठाकारी की चकल्लस की बात कर रहे हैं तो सच है। छुटती नहीं है काफिर कीबोर्ड से लगी हुई।

    ReplyDelete
  2. महाशय अब कुछ लिखिए भी!!


    कब तक तडपाएंगे?? :)

    ReplyDelete
  3. ऐसी बात है तो चखना पड़ेगा.

    ReplyDelete
  4. आपको सुचीत करने मे अतिआनंद हो रहा है की संपुर्ण हिंदी मे हिंदी साहित्य, काव्य एंव चर्चा आदी को समर्पीत जालस्थल शुरू हो चुका है|
    आपसे निवेदन है की आप उसे देखें और जुड जायें| जालस्थल का पता
    http://www.hindibhashi.com है|

    यहां पर आप अपना साहित्य, काव्य प्रकाशित कर सकते है| किसी विषयपर चर्चा आमंत्रीत कर सकते है| अन्य लोगोंका साहित्य पढ़ कर उसपर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते है|

    इस जगह सदस्यनाम हिंदीमे ले सकते है तथा अन्य सदस्योंको हिंदीमे संदेश भेज सकते है|

    आप जरूर इस जालस्थल को भेंट दे तथा अपने अन्य मित्रोंको इसके बारें मे बतायें|

    http://www.hindibhashi.com

    धन्यवाद|

    ReplyDelete
  5. अब हम क्या कहें, हमें सबसे बड़ी खुशी तो यह है कि आपके यहाँ आने से हम सीधे आपसे संवाद कर सकते हैं। ब्लॉग ने हमारे आपके बीच की दूरी खत्म कर दी है।

    ReplyDelete
  6. jairam kie jairamjikie
    ashok ji aapko 15 august ki lakh
    lakh vadaayiaan
    kuchh naya ho to sunao
    aur hamare jiwan main hasya ras ka mantra jagaao

    ReplyDelete