वाह! आज"संदर्भ 8वां विश्व हिन्दी सम्मेलन" के बारे में आप का ऐलान पढ कर मजा आ गया।:( आप ने बिल्कुल सही संकेत दिया है.यह हिन्दी सम्मेलन ऐसा ही कोरा था। इन के सम्मेलनों से कुछ होता तो है नही और ना ही इनके बारे में कुछ लिखने को ही है..कि कुछ लिखा जाए..:(...वैसे अभिनय जी ने आप को सही कमेन्ट किया है...अब जब हम भी यहाँ आ गए तो तो कोरा कागज देख कर ...समझ गए की पोस्ट में कॊइ गड़्बड़ आ गई होगी...:(....आप का नाम ही हमें बहुत हिम्मत बढाता है।
एकदम कोरा रहा
ReplyDeleteइस पोस्ट की तरह.
कोरे गये, कोरे आये,
निरे रुपईया खरच कराये
वाह! आज"संदर्भ 8वां विश्व हिन्दी सम्मेलन" के बारे में आप का ऐलान पढ कर मजा आ गया।:( आप ने बिल्कुल सही संकेत दिया है.यह हिन्दी सम्मेलन ऐसा ही कोरा था। इन के सम्मेलनों से कुछ होता तो है नही और ना ही इनके बारे में कुछ लिखने को ही है..कि कुछ लिखा जाए..:(...वैसे अभिनय जी ने आप को सही कमेन्ट किया है...अब जब हम भी यहाँ आ गए तो तो कोरा कागज देख कर ...समझ गए की पोस्ट में कॊइ गड़्बड़ आ गई होगी...:(....आप का नाम ही हमें बहुत हिम्मत बढाता है।
ReplyDeleteकौन कहता है की व्यंग लिखा जाता है?
ReplyDeleteकौन कहता है की व्यंग बोला जाता है?
कागज़ कोरा छोडना , अरे !ये तो विरोध की परम्परा है,
ReplyDeleteतो क्या चक्रधर जी आप भी विरोध....? किसका ...?
क्यों कि आप तो प्रमुख.... !!!!!!
चलो जाने भी दो यारो ..
हूं अच्छा विवरण।
ReplyDeleteजैसा कि हमने समझा :(
चक्रधर जी, हम तो वर्षों से आपके प्रशन्सक हैं, पर आप का यह व्यंग सबसे तीखा है और बहुत ही subtle है।
ReplyDelete...
ReplyDelete.
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ReplyDeleteबिल्कुल ऐसा ही वहां का कवि सम्मेलन
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