Tuesday, April 29, 2008

भज्जी की गांधीवादी संतई

चौं रे चम्पू! कोई हल्लेदार बात बता?

चचा गांधी के देश में लोग गांधीवादी सिद्धांतों को भूल गए आम आदमी गलत करे तो कोई बात नहीं अब तो संत लोग भी गलती करन लगे।

--खुलासा बताऔ, कौन से संत की बात है रई ऐ?

--श्रीसंत की। गाल पर एक थप्पड़ खाने के बाद दूसरा आगे कर देना चाहिए था। मार ले। पर चूक गया। गांधीवाद आहत हुआ। उससे बड़ा गांधीवादी तो हरभजन सिंह है। माना कि उसने थप्पड़ मारा पर वो ज़्यादा बड़ा गांधीवादी है। मैं तो कहूंगा कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म का अनुयायी।

--सो कैसे?

--चचा, वो क्षमा मांगना जानता है। जैसे ही उसे पता चलता है कि गलती हो गई। माफी मांग लेता है। गांधी जी ने ये नहीं कहा कि गलती मत करो, करो, जानबूझ कर मत करो। हो जाए तो चरण पकड़ लो। चचा हरभजन हरि का भजन करने वाला शांतिप्रिय प्राणी है। क्रोध तो उसका आभूषण है। ज़रा देर के लिए आता है और चला जाता है। माफी उसका औज़ार है।

--यानी के वाके पास हर बार गलती करिबे कौ लैसंस ऐ। बहुत खूब भईया। तौ माफी कब-कब मांगी वाने?

--दारू कम्पनी रॉयल स्टैग के एक विज्ञापन में भज्जी ने बाल खोल के फोटो खिंचवा लिया। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने विरोध जताया। कहा कि सिखों की भावनाएं आहत हो रही हैं। भज्जी बोला अपना पुत्तर मानते हो तो सीधे बताते कमेटी तक क्यों गए। पट्ठे ने माफी मांग ली।

--ठीक कियौ।

--गुरु चैपल के ख़िलाफ़ गांगुली के फेवर में कुछ ऐसी कह दी कि गुरु हो गए गरम। भज्जी पैंतरा बदल के नरम। माफ कर दो गुरु। बात खतम। फिर आस्ट्रेलिया में साइमंड्स को बिग मंकी बोल दिया। हालांकि ये गाली नहीं है, पर कंगारूओं को लग गई। भज्जी फौरन माफी मांगने को तैयार, पर मामला देश की इज्जत का था। हमारी टीम ने कहा, भज्जी माफी नहीं मांगेगा। कंगारू भी अड़ गए। तीन मैच के लिए पाबंदी लगा दी। माफी मांगने देते तो मामला दब जाता, पर बेचारे गांधीवादी की सौम्यता को सामने नहीं आने दिया। उल्टे उन्हीं को धमकी दे दी- साइंमड्स को निकालो, वरना हम वापस जाते हैं। कंगारूओं ने हथियार डाल दिए। पैसा तो विज्ञापनों के ज़रिए हिन्दुस्तान से ही आता है, सो लगाया बैन उठा लिया। चचा अगर याद हो तो गांधी जी ने भी साइमन कमीशन के समय ‘निकालो’ का नारा दिया था। इससे पता चलता है कि हमारा भज्जी तो गांधी जी से भी ज़्यादा बड़ा गांधीवादी है। उसने ऐसा कहा ही नहीं। अब हल्ला हो रहा है श्रीसंत के मामले का।

--जे सिरीसंत कहां के संत ऐं?

--काहे के संत हैं? रो दिए। कबड्डी में खो-खो में गुल्ली-डंडा में कितनी ही बार हम भी पिटे हैं। खेल के मैदान की मारा-मारी तो खेल का हिस्सा है। पर मीडिया अपना घिस्सा लगाए बिना थोड़े ही मानेगी। भज्जी ने संत से माफी मांग ली। संत ने भी आंसू पोंछ के कहा कि भज्जी मेरे ‘पा’ यानी बड़े भाई। बात हो जाती आई-जाई पर मीडिया ने नहीं पचाई। नौबत ये कि भज्जी पा फिर से बाहर हो सकते हैं। माफी नहीं है काफी। खेलते तुम ज़रूर हो लेकिन मैदान हमारा है। मार-पिटाई अगर कैमरा के सामने आई तो खेल में पड़ जाएगी खटाई।

--खेल में खटाई पडैगी कै खेल खटाई में पड़ जांगे?

--एक ही बात है चचा।

15 comments:

  1. सर, क्या खूब कही। मजा आ गया।

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  2. वाह ! वाह ! वाह !

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  3. वाह सर!! भज्जी और गान्धी कि तुलना बहुत अच्छी लगी. लेकिन अफ़शोस हुआ ये देखकर कि गान्धी के देश मे एक गान्धीवादि को सजा मिल गयी.

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  4. वाह काका जी वाह ...भई खुब कही आपने मजा आ गया ,,,,

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  5. दादा ; प्रणाम
    शब्द के खिलाडी तो आप ठेठ से हैं हीं लेकिन इस पोस्ट में तो विज़्युअल भी करामाती है । भज्जी ने जो किया उसे हमारे मालवा में कहते हैं भाटो फ़ेंकी ने माथो मांड्यो (पत्थर फ़ैंक ख़ुद उसके नीचे खडे हो गए)

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  6. खासुलखास "चक्रधर" स्टाइल में खबर ली है सर आपने, एकदम झकास…

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  7. अच्छा है.

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  8. बेहतरीन!!!

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  9. गजब ढाय दियो चचा

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  10. बहुते बढिया.. :)

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  11. वाह वाह !!

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  12. good one..lovely use of words...

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  13. bhai ji kya hindi batai ..khub dharti tapai..global informing ke liye badhai. yayawarashwini.

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  14. chakradhar ke chakkar ne
    kai bar chakraya
    par is bar jo paya
    maja pahle kabhi na aaya

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