Thursday, July 31, 2008

चक्र सुदर्शन

बची हुई है डैमोक्रैसी

डैमोक्रैसी ग्रीक से, निकली सदियों पूर्व,
भारत में यह ठीक से, चलती दिखे अपूर्व।
चलती दिखे अपूर्व, चलाते हैं अपराधी,
जब भी संकट आया, इसकी डोरी साधी।
चक्र सुदर्शन, आम जनों की ऐसी-तैसी,
गर्व
करो तुम, बची हुई है डैमोक्रैसी|

13 comments:

  1. बहुत समय के बाद तत्सम शब्दावली में कोई कविता पढने को मिली है। सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकारें

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  2. गर्व करो.... बस यही करने को रह गया है.... उफ्फ्फ

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  3. अशोक जी आपकी रचना बहुत अच्छी लगी,
    मैने आपको बहुत बार सुना है, आप बहुत अच्छा लिखते है,
    मुझे आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा,
    मेरा ब्लॉग भी देखे और बताए

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  4. सत्य को संक्षिप्त सुंदर शब्दों में व्यंग्य के माद्यम से अभिव्यक्त कर पाने वाले आपके व्यक्तित्व का कोई सानी नही...

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  5. बहुत सुंदर !!

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  6. बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

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  7. सत्य सामयिक बात को लिखा आपने आज
    स्वीकारें शुभकामना, महामना कविराज

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  8. सौ में निन्यानवे बेईमान
    फिर भी मेरा भारत महान ....

    सटीक कहा है आपने!

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  9. प्रिय मित्रो, प्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी को धन्यवाद और लवस्कार।

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  10. प्रजा तंत्र की देस में जा गति मोरे भाय
    चार कदम आगऊँ चलाई,आठऊँ पीछे जाय
    गुरु गंभीरा होय कै देख मतदाताबीर
    दु:सासन के भेस धर जेई हारेंगे चीर .

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  11. प्रजा तंत्र की देस में जा गति मोरे भाय
    चार कदम आगऊँ चलाई,आठऊँ पीछे जाय
    गुरु गंभीरा होय कै देख मतदाताबीर
    दु:सासन के भेस धर जेई हरेंगे चीर .

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  12. गुरुदेव के सम्मुख प्रस्तुत है

    #सुमित का तड़का#

    ओलिम्पिक में बना फ़साना

    बिंद्रा का क्या लगा निशाना

    स्वर्ण पदक मिला देश को

    खुशी से झूमे कवि दीवाना

    मन में जागी यही ललक

    भारत जीते ढेरों पदक।

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  13. भारत में डैमोक्रैसी की है ऐसी-तैसी...

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