waah waah sabse jaldi pachne wali cheese ke to kya kahne...........iska to koi jawab hi nhi.
यदि जूते भी पचनीय हो जायें तो अगला हथियार पत्थर ही बचता है! चित्र बहुत शानदार है, कविता के साथ ऐसे फिट हो रहा है जैसे तेंदुलकर के साथ सेहवाग!
mast mahol! thnx pra ji! o ji tussi great ho!!
चकल्लस मेंचप्पलों से भेद भावऔर खड़ाऊंआऊं आऊं ।
ग़लत बात अशोक जी! जल्दी नहीं पचता पत्रकार का जूता. अपच कर जाता है, अकसर.
bahut hee khubsurati se baate rakhate hai..........aapka koee jabaab pure desh me nahi hai.............
hamesha ki tarah lajawab!
देश क्या संध्या जीविदेश में भी नहीं हैन किसी और ग्रहअथवा तारे मेंक्या कहें चक्रधर के चक्कर के बारे में।
waah waah
ReplyDeletesabse jaldi pachne wali cheese ke to kya kahne...........iska to koi jawab hi nhi.
यदि जूते भी पचनीय हो जायें तो अगला हथियार पत्थर ही बचता है! चित्र बहुत शानदार है, कविता के साथ ऐसे फिट हो रहा है जैसे तेंदुलकर के साथ सेहवाग!
ReplyDeletemast mahol! thnx pra ji! o ji tussi great ho!!
ReplyDeleteचकल्लस में
ReplyDeleteचप्पलों से भेद भाव
और खड़ाऊं
आऊं आऊं ।
ग़लत बात अशोक जी! जल्दी नहीं पचता पत्रकार का जूता. अपच कर जाता है, अकसर.
ReplyDeletebahut hee khubsurati se baate rakhate hai..........aapka koee jabaab pure desh me nahi hai.............
ReplyDeletehamesha ki tarah lajawab!
ReplyDeleteदेश क्या संध्या जी
ReplyDeleteविदेश में भी नहीं है
न किसी और ग्रह
अथवा तारे में
क्या कहें चक्रधर के
चक्कर के बारे में।