Wednesday, July 21, 2010

गुद्दे पर मुद्दे और गुदगुदी कुर्सी

—चौं रे चम्पू! सिडनी ते लौटतेई भोपाल चलौ गयौ, भोपाल ते लौटौ ऐ तौ मुम्बई जाइबे की तैयारी ऐ, पकड़ में ई नांय आवै। बे-लगाम है गयौ ऐ। गल्त कहि रह्यौ ऊं का?
—चचा मेरी लगाम किसी एक के पास नहीं है, और लगाम जब ज़्यादा लोगों के पास हो तो सबके इशारों पर चलना पड़ता है। परसों वीरभूम ज़िले में एक रेल बे-लगाम हो गई थी पर तुमने बे-लगाम कहा तो मुझे बेलगांव याद आ गया। वहां के हालात भी बे-लगाम हैं।
—का भयौ?
—बेलगांव, महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा पर है, कर्नाटक में। वहां भाषाई आधार पर दोनों प्रांत झगड़ रहे हैं।
—भाषा झगरिबे की चीज थोड़ैई ऐ लल्ला!
—यही तो अभी तक लोगों की समझ में नहीं आया। भाषाएं एकदूसरे को जोड़ने के लिए हैं न कि नाता तोड़ने और सिर फोड़ने के लिए। माना कि भाषा से एक संस्कृति की पहचान बनती है। एक भाषा-भाषी एक समान सांस्कृतिक आधार रखते हैं, लेकिन संस्कृतियां टकराने के लिए नहीं बनी हैं। संस्कृतियां घुलन-मिलनशील होकर मनुष्यता को आगे बढ़ाने के लिए होती हैं।
—तौ मसला का ऐ?
—मसला ये है कि कर्नाटक के बेलगांव, कारवाड़, बीडर और गुलबर्गा चार ज़िलों के आठ सौ पैंसठ गांवों में काफ़ी संख्या में मराठी रहते हैं। भाषाई अस्मिता के नाम पर महाराष्ट्र चाहता है इन चारों जिलों के आठ सौ पैंसठ गांव महाराष्ट्र में सम्मिलित कर लिए जाएं। सीमा का यह विवाद सीमा से ज्यादा बढ़ गया है चचा। ….और कहते हैं कि जब तक फैसला न हो, तब तक इस क्षेत्र को केंद्र शासित घोषित कर दिया जाय।
—बड़ी अजीब बात ऐ रे!
—हां चचा, दिल्ली का उदाहरण देता हूं। आर.के.पुरम में ज़्यादातर लोग दक्षिण के हैं, आज अगर भाषाई अस्मिता के नाम पर कर्नाटक-तमिलनाडु ये दावा करने लगें कि आर.के.पुरम हमें दे दो, कोई मानेगा क्या? चितरंजन पार्क में बंगाली अधिक रहते हैं तो क्या इसका मतलब ये हुआ कि चितरंजन पार्क पश्चिम बंगाल को सौंप दिया जाय। पटेल नगर पंजाब को, नजफ़गढ़ हरियाणा को, होडल-पलवल ब्रजभाषा के आधार पर उत्तर प्रदेश को देने का निर्णय लो और जब तक निर्णय न हो तब तक इन्हें यूनियन टैरेटरी घोषित कर दो। ऐसा तो सपना भी नहीं देख सकते।
—तू बेलगाम की बता।
—मराठी माणूस पीढ़ियां पहले कर्नाटक आए थे, यहां उन्नति की सीढ़ियां चढ़ते-उतरते गए। सहजता से कन्नड़ भाषा सीख ली। कारोबार कन्नड़ में, पारिवारिक लोकाचार मराठी में। बहरहाल, कर्नाटक के जन-जीवन में घुल-मिल गए। बेलगांव के वडगांव नामक इलाके में कितने ही कन्नडिगा बुनकर परिवार हैं जो पैथानी साड़ी बनाते हैं। पैथान नाम का कस्बा बेलगांव से सिर्फ सौ किलोमीटर दूर होगा, जो कि महाराष्ट्र में है। इस साड़ी पर कर्नाटक के लोग गर्व करते हैं पर नाम मराठी है। बुनकर और साड़ी के कारोबारी मराठी भी हैं, कन्नड़ भी हैं। बड़ी शानदार साड़ी है। उसमें ज़री के तार और कपास महाराष्ट्र के तो रेशम कर्नाटक की होती है। कहीं का ताना कहीं की भरनी दोनों के तारों से बुनी चदरिया। ये लोग अपनी बनाई हुई साड़ी से ही प्रेरणा नहीं लेते। क्या दिल के तारों की बुनी हुई मिली-जुली संस्कृति की साड़ी को पहन-ओढ़ नहीं सकते। उस संस्कृति की साड़ी को पहनेंगे तो अगाड़ी जा सकते हैं। चीरा-फाड़ी रोकें, हिंसा रोकें।
—जे हिंसा-फिंसा तौ नेता लोग करायौ करें लल्ला!
—क्या अरब-खरब टके की बात कही है चचा। आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए बहुत सारे स्थानीय नेता जो राष्ट्रीय स्तर का नेता बनने के लिए और अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाने के लिए ही ऐसा करते हैं। मुद्दों की कमी है। ले देकर भाषा और क्षेत्रीयता का मुद्दा बचता है। सो भाषा के आधार पर लड़ाते हैं। जनतंत्र के निरीह भोले जनों को इनके इरादों के भालों का क्या पता। इनका शिकार हो जाते हैं। नई पीढ़ी अंतर्प्रांतीय-अंतर्क्षेत्रीय विवाह कर रही है, सबसे बड़ी समस्या उसकी है। नेपथ्य की राजनीति उनका पथ्य छीन रही है चचा।
—नेतन कूं तौ मुद्दा चइऐ!
—सत्ता की कुर्सी बनाने के लिए पेड़ चाहिए। पहले नफ़रत के बीजों से मुद्दों का पेड़ उगाएंगे, फिर उसके गुद्दे पर बैठेंगे और इन बेमतलब मुद्दों से गुदगुदी कुर्सी के मजे पाएंगे।
—पतौ नायं कब हमारी जनता इन फालतू के मुद्दन के गुद्दन कूं काट कै ओछे नेतन के ताईं खाट बिछाऐगी?

2 comments:

  1. Guru ji ko Jonwal ka Parnaam
    bahut bhaaya aapka
    gudde par mudde or gudgudi kurshi ka
    sangram
    charan sparsh
    apka
    Jaidev Jonwal

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  2. agar apko hindi ke jagah par kannad me school ke exam dene lagaya
    kam ke liye hindi ki jagah par kannad me exam dene ko bola
    koi bhi sarkari kam kannad me main likh kar do bola
    to tumhara jo hal hoga vohi hal unka ho raha hai

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