—चौं रे चम्पू! कहीं जाइबे कौ मन ऐ, कहां जायं? तू चलैगौ मेरे संग?
—एक साथ दो सवाल कर दिए, चचा। जवाब में दो सवाल सुन लीजिए। पहला यह कि किस उद्देश्य से जाना चाहते हैं और दूसरा यह कि वहां मेरे साथ की क्या ज़रूरत है?
—देस की भलाई के ताईं कहीं भी…. और तू रहैगौ मेरौ सलाहकार।
—ठीक है, समझ गया चचा! दूर जाने की ज़रूरत नहीं है, पड़ोस के किसी गांव की दलित बस्ती की कोई झोंपड़ी ढूंढ लीजिए, वहां अपनी बगीची की कुछ सब्जियां और गैया के घी का एक डिब्बा लेकर पहुंच जाइए। अपने आपको उनका दूर का रिश्तेदार बताइए। सामान देखते ही वे आपको बहुत निकट का समझेंगे। परिवार के नौजवानों और बहू-बेटियों की दुख-तकलीफ सुनिए। मौसम अच्छा है, न एसी की ज़रूरत है न हीटर की। वहां रह कर गरीबी को समझने की कोशिश कीजिए।
—जे का बात भई? हम गरीबी के सबते करीबी रिस्तेदार ऐं। हम का गरीबी ऐ जानैं नाऐं?
—चचा पूरी बात तो सुनो। आप गरीबी को अच्छी तरह जानते हैं, पर गरीब अपनी गरीबी को नहीं जानता। आपको उसके लिए निदान सोचने हैं। गरीब को अपने श्रम का प्रतिदान नहीं मिलता। कुछ कृपानिधान क़िस्म के लोग कभी कभी दान दे देते हैं और सरकार अनुदान दे देती है। स्थाई कल्याण फिर भी नहीं हो पाता। मेरी योजना है कि किसी तरह श्री राहुल गांधी को उस झोंपड़ी तक लाया जाए। वे इन दिनों दलितों के घर जाकर पूरे मन से गरीबी को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
—विचार नेक ऐ, तू चलैगौ मेरे संग?
—ना, ना चचा। लोग मुझे पहचानते हैं। मेरी काया का शहरीकरण हो चुका है। आप गरीबी में नहाए-धोए लगते हैं। मैं नहीं जाऊंगा, मोबाइल पर आपके साथ रहूंगा। राहुल जी को वहां लाने का काम मेरा है।
—आगे बता।
—जब वे दलित की उस झोंपड़ी में आ जाएं तो वहां सत्यनारायण भगवान की कथा कराइए। कथा में लीलावती-कलावती की गरीबी की व्यथा बताइए। कथा के बीच में जब-जब सत्यनारायण की जय बोली जाय तब –तब कहिए कि आज इस कुटिया में राहुल भैया खुद सत्यनारायण दरिद्रनारायण बनकर आ गए। अब लीलावती-कलावती के पूरे परिवार के दिन फिरेंगे। बीच-बीच में कीर्तन भी कराते रहना।
—कौन सौ कीर्तन?
—जय राहुल भैया, स्वामी जय राहुल स्वामी। तुम पूरे सौ पइसा लाए, नब्भै पइसा लुक्कन खाए। हैं बिचौलिए बड़े कसइया, करौ इंतजामी। स्वामी जय राहुल स्वामी। आगे का कीर्तन भी बना दूंगा। राहुल भइया बड़े कृपालु हैं। जहां ठहरते हैं उसके आस-पास कोई कारखाना या पावर-प्लांट लगवा देते हैं। हालांकि ये बात वे जानते हैं और उनके पिताजी भी कहते थे कि केन्द्र से सौ पैसे भेजे जाते हैं, लेकिन विकास के लिए पन्द्रह पैसे ही पहुंच पाते हैं। चचा, आज भी पिच्चासी, नब्भै या पिचानवै पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। घाट-घाट का पानी पिए घुटे हुए घोटालेबाज़ जब विकास के नए घाट पर ऐय्याशी करते दिखाई देते हैं, बेशर्म रंगरेलियां मनाते दिखाई देते हैं, तो वहां फनफनाते हुए आ जाते हैं नक्सलवादी। असल समस्या घाट-घाट के इन घुटे घोटालुओं की है। आपका काम होगा इलाके के घोटालुओं का उन्हें सही-सही ब्यौरा देना। आप झोंपड़ी में उनके साथ होंगे, बातचीत का पूरा मौका मिलेगा। सारे रहस्य उनके कान में बताना। क्योंकि जिन लोगों के साथ वे आएंगे, उनमें से एक-दो सफेद खादी का खोल पहने हुए घोटालू भी हो सकते हैं। यों राहुल भैया को अच्छे बुरे की गहरी पहचान है पर हर घुटा हुआ घोटालू तिकड़मबाज़ी में महान है। कुछ तो रेलिंग के बाहर माला लेकर खड़े होंगे। आप उस झोंपड़ी के मुखिया के तौर पर उन्हें सारी पोलपट्टी बता देना। बताना कि गरीब इसीलिए पिचा हुआ है, क्योंकि पिचासी-पिचानवै प्रतिशत पचाने वाले उस झोंपड़ी से बहुत दूर नहीं हैं। जो बताना, आत्मविश्वास के साथ बताना। लीलावती-कलावती के व्यापक परिवार की परम व्यापक ग़रीबी का वस्तुवादी ब्यौरा देना। वे अपने सचिव को निर्देश देंगे कि लीलावती-कलावती इलाके को केन्द्र से विकास का कौन सा पैकेज दिलवाना है। मौका देखकर उस परमानेंट डायलॉग से कथा खत्म करा देना।
—कौन सौ डायलौग?
—जैसे इनके दिन फिरे, वैसे हर किसी के फिरें।
