—चौं रे चम्पू! कल्ल मैंनैं इत्ती बार फोन मिलायौ, उठायौ चौं नायं?
—चचा, मैंने बताया था न कि तिरुअनंतपुरम में ’उत्तरआधुनिकता और हिंदी साहित्य’ और मैसूर में ’हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में कारक चिह्न’ विषयों पर संगोष्ठियां हैं, नौ दिन के लिए दक्षिण की यात्रा पर जा रहा हूं।
—तौ दक्खिन में का मोबाइल नायं बजै!
—क्यों नहीं चचा, बजा होगा, ज़रूर बजा होगा, यही तो एक ऐसा वाद्य है जो पूरे भूमंडल पर बज रहा है। बालकवि बैरागी जी के गीत की एक पंक्ति है ‘चौपाटी से गौहाटी तक और केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा’। गोविंद व्यास ने उसमें ‘अटक से कटक’ तक भी जोड़ा।कटक तो मालूम है, अटक का पता नहीं कि कहां है, बहरहाल, इतना फैला हुआ हमारा देश विविध संस्कृतियों का एक महान देश है। अलग भाषाएं, अलग वेश-भूषाएं, अलग आभूषण, अलग खानपान और अलग तीज-त्यौहार, पर कान पर वही एक नोकिया। हाथ में दूसरा मोबाइल रिलायंस का भी हो सकता है, शौकिया।
—तौ उठायौ चौं नायं, कहां अटक गयौ?
--सुनाई देता तब तो उठाता। मलयाली भक्ति-संगीत अनहद नाद की तरह पूरे त्रिवेंद्रम में बज रहा था। डबल-आदमक़द स्पीकर-कॉलम्स हर पचास फिट पर खड़े थे। शीशे चढ़ी कार में भी लग रहा था जैसे अंदर फुल वॉल्यूम में म्यूज़िक-प्लेयर चला रखा हो। मैंने देखे थे आपके मिस्ड कॉल, रात में। फिर सोचा आप ठहरे जल्दी सोने वाले, अब क्यों मिलाऊं?
--छोड़! तेज म्यूजिक चौं बजि रह्यौ ओ रे?
—हमारा सौभाग्य देखिए कि जब हम तिरुअनंतपुरम पहुंचे तब अट्टुकल पोंगल महोत्सवम की तैयारियां चल रही थीं। किसी एक मौके पर, किसी एक स्थान परमहिलाओं की ऐसी विराट उपस्थिति संसार भर में नहीं होती है। आपको यह जानकर शायद भरोसा हो जाएगा कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसका उल्लेख है। पूरे संसार में सर्वाधिक महिलाओं की उपस्थिति त्रिवेन्द्रम में ही होती है। लार्जैस्ट एनुअल गैदरिंग ऑफ़ वीमैन इन द वर्ल्ड! वन पॉइंट फाइव मिलिअन चचा, वन पॉइंट फाइव मिलिअन!
—अरे हमें तौ हिन्दी में बता।
—पन्द्रह लाख औरतें जमा हुई थीं। मलयाली कुम्भम महीने का यह महिला कुम्भ मेला था। कोई स्थान नहीं बचा चचा, पूरे त्रिवेन्द्रम में। सड़कों के फुटपाथ, सरकारी कार्यालयों के प्रांगण, पार्क, पगडंडियां जहां स्थान पाया वहां उन महिलाओं ने डेरा जमाया। उन्हें तो अट्टुकल भगवती अट्टुकलम्मा के लिए एक साथ पोंगल बनाकर चढ़ाना था।
—एक संग कैसै बनायौ रे?
—फोटू खैंचे?
—हां खींचे। घर आओ, दिखाऊंगा। चचा, यह भी एक सत्य है कि केरल में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक हैं। बाहर के प्रांतों में पलायन भी होता है। और हम देखते ही हैं कि भारत में चौपाटी, गौहाटी, करगिल घाटी या अटक-कटक कहीं के भी अस्पताल में चले जाइए, वहां आपको सेवाभावी नर्सें मिलेंगी तो अधिकांश केरल की ही मिलेंगी।
—चल चम्पू, बीमार परि जायं थोरे दिनां कूं।