—चक्कर तो वही लोग जानें चचा! मुझे तो मुल्ला नसीरुद्दीन का एक किस्सा याद आ रहा है।
—मुल्ला नसीरुद्दीन, जाके किस्सा एक ते एक हसीन।
—हां चचा, उन पर आरोप भी लगाए जाते थे संगीन। दरबार में सारे के सारे मनसबदार, शायर, सूफ़ी, अलग़ज़ाली, इब्ने सिन्ना, अलबरूनी, आलिमोफाज़िल, सब के सब सरदार, सिपहसालार, ओहदेदार मुल्ला से चिढ़े-कुढ़े रहते थे। क्योंकि मुल्ला उन्हें अज्ञानी और झूठा मानते थे। सबने मिलकर बादशाह से शिकायत कर दी कि मुल्ला नसीरूद्दीन हुकूमत के लिए खतरा बन चुका है आलमपनाह। सो जी उन पर राजदरबार में मुकदमा चलाया गया। दरबार में बादशाह ने मुल्ला से कहा— मुल्ला नसीरुद्दीन! पहले तुम अपनी बात दरबार के सामने रखो। मुल्ला ने कहा— कुछ कागज़ और कलम मंगा लीजिए। कागज़-कलम मंगा लिए गए। मुल्ला ने कहा कि अब दस बुद्धिमान लोगों को एक-एक कागज़ और कलम दे दीजिए। ऐसा ही किया गया। अब दसों से मुल्ला ने कहा कि अपने-अपने कागज़ पर इस सवाल का जवाब लिख दें कि रोटी क्या है?
—फिर का भयौ?
—सबने जवाब लिख दिए और् दरबार में राजा और जनता के सामने पढ़कर सुनाए गए। पहले ने लिखा— रोटी भोजन का सामान है। दूसरे ने लिखा— यह ईश्वर का वरदान है। तीसरे ने लिखा— यह आटे और पानी का घोल है। चौथे ने लिखा— कहीं चपटी, कहीं गोल है। पाँचवे ने लिखा— रोटी की वजह से ही खुशहाल घर और घरौंदा है। छठवें ने लिखा— यह एक पकाया हुआ आटे का लौंदा है। सातवें ने लिखा— रोटी न मिले तो इंसान रो देता है। आठवें ने लिखा— इसके आगे सब कुछ को खो देता है। नौवें ने लिखा— यह पौष्टिक आहार है और दसवें ने लिखा— कुछ कहा नहीं जा सकता इसकी महिमा अपार है।
—सबन्नै सही बात लिखी!
—लेकिन मुल्ला ने भरे दरबार में कहा— अगर इतने विद्वान और गुणी लोग इस पर एकमत नहीं हैं कि रोटी क्या है तो वे यह कैसे कह सकते हैं कि मैं अपनी हंसाने वाली बातों से लोगों को गलत राह दिखाता हूं, लोगों की मति भ्रष्ट करता हूं। मुल्ला का मुकदमा ख़ारिज़ हो गया।
—यानी तेरौ ऊ मुकद्दमा खारिज है जायगौ?
—मेरी बात छोड़िए, पर इतना तय है कि रोटी न मिले तो मति को कर सकती है भ्रष्ट, दे सकती है अपार कष्ट और कर सकती है नष्ट। मिलती रहे तो मां होती है, न मिले तो हत्यारी होती है। अच्छी है या बुरी है, रोटी ही दुनिया की धुरी है।
—वाह भई वाह!
—मैंने फेसबुक पर अपने मित्रों के बीच में सवाल दागा कि रोटी क्या होती है। लगभग सौ लोगों ने अपनी-अपनी तरह से रोटी की व्याख्या की। एक से एक लाजवाब।
अशोक गोयल ने लिखा कि रोटी वो चीज है जो पेट में जाने के बाद परांठे की हवस को जन्म देती है।
तरुण भारद्वाज ने लिखा, रोटी किसी के लिए खाना है, किसी के लिए खज़ाना। अमित कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि रोटी भूख का अंत और लालच की शुरुआत है। बिन्दु अरोड़ा बोले कि पैसे से रोटी तो बन सकती है मगर पैसे की रोटी नही बन सकती। नन्दलाल भारती ने कहा कि रोटी का असली मतलब तो वही जानता है, जिसका चूल्हा पसीने से गरमाता है। अंशु माला ने बड़ी मार्मिक बात कही— अमीर का बच्चा जिसे चुपके से कूड़ेदान में डाल आता है गरीब कूड़ा बीनने वाला बच्चा चुपके से कूड़ेदान से उठा लाता है। मुल्ला नसीरुद्दीन का सवाल इंटरनेट की मेहरबानी से हजारों लोगों तक पहुंच गया।
—तू का लिखतौ?
—मैं क्या लिखता! रोटी खुद ही एक सवाल है। मेरी चंद पंक्तियां सुन लीजिए— गांव में अकाल था, बुरा हाल था। एक बुढ़ऊ ने समय बिताने को, यों ही पूछा मन बहलाने को— ख़ाली पेट पर कितनी रोटी खा सकते हो गंगानाथ? गंगानाथ बोला— सात! बुढ़ऊ बोला— गलत। बिलकुल गलत कहा, पहली रोटी खाने के बाद पेट खाली कहां रहा? गंगानाथ, यही तो मलाल है, इस समय तो सिर्फ़ एक रोटी का सवाल है।