Sunday, April 17, 2011
युवा का उल्टा वायु
(युवा हवाओं और धाराओं के विपरीत चलकर भी मंज़िल पाते हैं।)
युवा का उल्टा वायु
वायु माने हवा,
हवा का उल्टा वाह
बस यही युवा की चाह।
चाहिए
वाह, वाह, वाह।
दिल के अरमानों के
पंख निकल आए हैं,
उड़ना सीख लिया है
यों पर फैलाए हैं।
बादल के ऊपर जो
फैला नीलगगन है,
उड़ने की मस्ती में
मन हो रहा मगन है।
अच्छा लगे न सूरज
गर वो देता कोई सलाह।
वाह जी
वाह, वाह, वाह।
धरती की गोदी से
निकली तरुणाई है
बाहर आकर खुल कर
लेती अंगड़ाई है।
संकल्पों की माला
इसने आज पिरोई,
बहता ये पानी है
रोक न पाए कोई।
मुश्किल है जो मंज़िल
इसने पकड़ी है वो राह।
बोलिए
वाह, वाह, वाह!
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8 comments:
मुश्किल है जो मंज़िल
इसने पकड़ी है वो राह।
कोई भी नहीं सकता
इसको हरा ( राह का उल्टा )
वाह वाह वाह ..बहुत सुन्दर रचना
चाह का उल्टा हचा,
वस यहीं बवाल मचा।
हर चीज़ का उल्टा-पुल्टा नहीं होता, पर आप क्षमतावान हैं कर सकते हैं।
धरती की गोदी से
निकली तरुणाई है
बाहर आकर खुल कर
लेती अंगड़ाई है।
संकल्पों की माला
इसने आज पिरोई,
बहता ये पानी है
रोक न पाए कोई।
मुश्किल है जो मंज़िल
इसने पकड़ी है वो राह।
बोलिए .. बहुत सुन्दर रचना भावों को अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई
युवा -वायु , हवा -वाह , चाह -हचा --
इस कड़ी को आगे बढाया जाए तो मज़ा आ जाए ।
हम तो अब तक मलयालम को ही उलटा-पुलटा करने के चक्कर में रहे यहां चक्र अन्य शब्दों को देख कर दंग[गंदऽऽऽ नहीं] रह गए :)
यह सब भास्कर में सुबह पढ़ा था। यहाँ तो री-ठेल है। मगर है चुटीला।
सरल भाषा, सहज अभिव्यक्ति,
बिना आडम्बर के गहन बात को
सपाट बयानी कर देना तो कोई
आप से सीखे। मानस मन पर
प्रभाव डालने वाली रचना।
धन्यवाद।
आनन्द विश्वास
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