Friday, March 28, 2008

दूध का पानी और पानी का दूध



--चौं रे चम्पू! नास्ता-पानी है गयौ?
--हां चचा, नाश्‍ता-पानी हो गया।
--पानी तौ ठीक ऐ, नास्ता में का पायौ?
--चचा, तुम्‍हारी तरह जलेबी कचौड़ी तो दबा नहीं सकते। तुम तो इस उमर में भी चकाचक गुंजिया-पेड़े पचाते हो, अपन ठहरे नए ज़माने के अधेड़। बीमारियों के पुलिंदे। ये खाओ तो ये बीमारी वो खाओ तो वो बीमारी। पानी के अलावा थोड़ा सा दूध पिया, कटोरी भर अंकुरित चने, और बस तुम्‍हारे पास आ गए।
--तौ दूध पियौ और पानी पियौ! नास्ता में दूध कौ दूध कियौ और पानी कौ पानी! वाह राजा जानी!
--चचा दूध का दूध और पानी का पानी तो पाकिस्‍तान में हुआ है। अब बताओ, न्‍याय देने वालों को भी अगर तुम बंद कर दोगे तो इस राजसत्ता में कैसा जनतंत्र? तानाशाही इंसाफ से डरती है चचा! पर वाह रे गिलानी, तूने आते ही खुश कर दिए पाकिस्‍तानी।
--लल्ला, बात खुलासा करौ।
--चचा प्रधान मंत्री बनते ही यूसुफ रज़ा गिलानी ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ़्तिख़ार मोहम्मद चौधरी और साठ अन्य जजों को तत्‍काल आदेश से बरी करा दिया। इसको कहते हैं दूध का दूध और पानी का पानी।
--सब कहिबे की बात ऐ। दूध चौबीस घंटा में खराब है जायौ करै। पहलै ऐसौ होतौ ओ, भोर में कोई अपराध भयौ, सांझ ढले पंचायत बैठी। बताय दियौ कित्तौ दूध, कित्तौ पानी।
--क्या बात कह दी चचा! देर हो जाए तो दूध फट जाता है या जम जाता है। जनतंत्र की न्यायपालिका मठा से न्याय का मक्खन निकालती हैं। दूध का पानी कर देती हैं और पानी का दूध बना देती हैं। विलंब से मिला न्याय अन्याय के बराबर है। न्‍यायालयों में सालों तक मुकदमे घिसटते रहते हैं लेकिन इन्‍हें तो चार महीने ही हुए थे। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चौधरी साहब बाल्कनी से जनता को दर्शन दे रहे हैं। समर्थन के लिए धन्यवाद दे रहे हैं। अरे न्यायाधीश कभी जनता से मिलते हैं? अकेले रहते हैं। न्‍यायाधीश न धन्‍यवाद दे सकता है और न किसी का धन्‍यवाद ले सकता है। समर्थन के लिए धन्‍यवाद देगा तो फिर न्‍याय कैसे कर पाएगा। न्‍याय एकांत में हृदय से होता है और विचारक का काम करती है आत्‍मा। चचा, पास्कल ने कहा था कि बलरहित न्‍याय असमर्थ होता है और न्यायरहित बल अत्याचार होता है। क्‍या किया मुशर्रफ ने? अब मुशर्रफ मियां अपनी खैर मनाएं उनका दूध फटने वाला है।
--चम्पू! न्याय तौ जनता करै है। पाकिस्तान की जनता नै न्‍याय कर दियौ, अब न्यायाधीस कानून की लकीर पीटौ करें, वाते का?।
--चचा! न्‍याय बड़ी पेचीदा चीज़ है। मेरे नाना कहा करते थे कि तुम उसको क्‍या सज़ा दोगे जो ऊपर से देखने में तो ईमानदार है लेकिन मन का चोर है, तुम उसे क्‍या सज़ा दोगे, जो बाहर सिर्फ एक हत्‍या करके रोज़ अपनी आत्‍मा को मारता है। तुम उसे क्‍या सज़ा दोगे जिसके अपराध कम और पश्‍चाताप ज़्यादा हैं। चचा, कानून लकीर का फकीर है और लकीर न तो पानी पर टिकती है न दूध पर। कैसे करोगे दूध का दूध और पानी का पानी। कैसे करोगे दूध पानी के बीच में लकीर। जनता का समर्थन पाए हुए जज अब जीती हुई जनता का पक्ष लेंगे, न्याय का पक्ष न भी लें तो चलेगा। लो एक ताजा कवित्त सुन लो--
ओ रे मुश अभिमानी, तूने करी मनमानी,
अब याद कर नानी, तेरा सिर है दुनाली पे।
दांव पे है ज़िन्दगानी, बुश करे आनाकानी,
तेरी कुर्सी चूहेदानी, लात लगी तेरी थाली पे।
उठ चुका दाना-पानी, ख़त्म होगी सुल्तानी,
आरी जिसपे फिरानी, तू तो बैठा उस डाली पे।
वाह रे गिलानी, तेरा काम है तूफ़ानी
खुश हुए पाकिस्‍तानी, साठ जजों की बहाली पे।

6 comments:

समयचक्र said...

ओ रे मुश अभिमानी, तूने करी मनमानी,
अब याद कर नानी, तेरा सिर है दुनाली पे।
दांव पे है ज़िन्दगानी, बुश करे आनाकानी,
तेरी कुर्सी चूहेदानी, लात लगी तेरी थाली पे।
उठ चुका दाना-पानी, ख़त्म होगी सुल्तानी,


दादा मजा आ गया बहुत बढ़िया abhaar

रवीन्द्र प्रभात said...

बढिया है सर , आनंद आ गया !

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया.

Abhishek Ojha said...

क्या बात कही है आपने न्याय के बारे में... मज़ा आ गया.

Shailendra said...

इस चक्कालास के लिए इतना इंतजार क्यों करना पड़ता है चचा

Ankit Mathur said...

आदरणीय अशोक जी,
सादर प्रणाम।
मैं भडास नामक ब्लाग पर यदा कदा कुछ
लिखता रहता हूं। आज आपके ब्लाग पर आने
का सु अवसर प्राप्त हुआ और आपकी साईट पर भी।
आपकी साईट पर एक कविता " हम तो करेंगे"
मुझे अच्छी लगी और मैने उसे भडास पर
सभी पाठकों के लिये चिपका दी है।
समय मिलने पर आप इस लिंक को देखें।
http://bhadas.blogspot.com/2008/04/blog-post_3146.html

http://bhadas.blogspot.com/

धन्यवाद...
अंकित माथुर...