Saturday, July 12, 2008

भूमण्डली-भभक धरा-धधक


चौं रे चम्पू!


—चौं रे चम्पू! देर कैसे भई? कहां अटक गयौ ओ रे?

अटक जाता हूं चचा। रोक लेते हैं कभी पड़ोस के बच्चे, कभी उनके चच्चे, कभी लोगों के सवाल सच्चे और मेरे अनुभव कच्चे। माना जाता है कि मैं हूं हिन्दी का ज्ञाता। पर सचाई ये है चचा कि कुछ भी नहीं आता। इन दिनों अमरीका से एक मित्र बच्चों के साथ आए हुए हैं। बच्चों को हिन्दी सिखवाना चाहते हैं। फोन पर बोले—‘सनी पूछ रहा है कि ग्लोबल वार्मिंगकी हिन्दी क्या है’? उत्तर देना चाहा कि ग्लोबल वार्मिंगकी हिन्दी ग्लोबल वार्मिंग। यह उत्तर वे स्वीकार न कर पाते। मेरी तत्काल खोपड़ी शब्द-शिकार पर निकल पड़ी। हम हिन्दी वालों ने विभिन्न आयोगों में अपना अनुवाद-कौशल दिखा कर कितने ही अगम्य दुर्भेद्य और क्लिष्ट-संश्लिष्ट पारिभाषिक शब्द बना डाले हैं, ‘ग्लोबल वार्मिंगकी हिन्दी करने में क्या है? मैंने कहा- देखो दोस्त, चलन में तो ग्लोबल वार्मिंगही है लेकिन हिन्दी में ढेर सारे शब्द-युग्म हो सकते हैं, नोटरो-- भूमण्डली-भभक, धरा-धधक, अवनि-अगन, अचला-आतप, स्थिरा-संतप्ति, धरित्री-दाघ, विश्व-विदाह, भूगोल-भट्टिका, जगत-ज्वलन, भुवन-भट्टी, क्षिति-संताप, भूमा-भभूका, वसुमति-ताती, पिरथी-प्रतापन, भूतल-ताप, ऊर्वी-उत्तापक, पृथिव्या-प्रचंड, संसार-सेक, थली-तपिश, पृथ्वी-प्रतप्ति, मही-दहक... ये तो हैं यार आसान-आसान, बच्चे थोड़ा सा मुश्किल सीख सकें तो उन्हें बताना- भूमण्डलीय ऊष्मीकरण या वैश्विक-ऊष्मा-विस्तार। कोई टोटा है हिन्दी के पास शब्दों का!

—वाह रे चम्पू! हिन्दी की ताकत दिखाय दई।

—लेकिन चचा! ताकत दिखाने की व्यर्थ में ज़रूरत क्या है? ग्लोबल वार्मिंगको ही हिन्दी में ले लो न। ज़्यादा से ज़्यादा ये कह दो कि ग्लोबल गर्मी बढ़ रही है। अलग से कोई शब्द क्यों बनाया जाए? बचपन से भूगोल में ग्लोब दिखाया गया है। भूगोल के अध्यापक ग्लोब घुमा-घुमा कर अमरीका-अफ्रीका दिखाते थे। ग्लोब के लिए हिन्दी में कोई शब्द नहीं लाया गया, फिर ग्लोबल के लिए क्यों ला रहे हो? चचा सोचने वाली बात ये है कि जब ये ग्लोब हमारे देश में ईजाद ही नहीं हुआ तो हम उसका अनुवाद क्यों करें? जब से ग्लोब बना, तब से पूरी दुनिया उसे ग्लोब ही कहती आ रही है। हमारे यहां ग्लोब के लिए भूमण्डल बिलकुल उपयुक्त शब्द था। सौरमण्डल में मण्डल से गोलाकार आकृति का बोध होता है या नहीं? ग्लोबल के लिए भूमण्डली या भूमण्डलीय हो सकता था, हुआ भी, लेकिन ज्ञान के आदान-प्रदान की प्रक्रिया में शब्द अपने अर्थ बदलते जाते हैं। जब से हम भौगोलिक क्षेत्रों को मंडल कहने लगे, क्षेत्रीय मंडल, आगरा मण्डल, तब से मण्डल शब्द के लिए थ्री-डाइमैंशनल आकृति बनना बन्द हो गई। सपाट हो गया मण्डल का स्वरूप।

—चम्पू! जादा कौसल मती दिखा, ‘ग्लोबल वार्मिंगकौ कोई एक विकल्प बता?

—चचा! भूमण्डली भट्टीकरण। इससे न केवल अर्थबोध होता है बल्कि चेतावनी भी मिलती है कि हे भूलोक वासियो, भूमण्डल यदि भट्टी बन जाए तो क्या हालत होगी रे तुम्हारी।

—हम्म.... काबुल में दूतावास के आगे कौन से गर्मी हती रे?

—वह तो आतंकातप है यानी आतंक का आतप। ये गर्मी भूमण्डल की गर्मी नहीं भूलोक पर निरंतर बढ़ती हुई गर्मी है। इसे भूलोकल गर्मी कहा जा सकता है। इसी लोक की है इसलिए लोकल।

—लो कल्लो बात।

10 comments:

राकेश जैन said...

ati uttam !!!

manas bharadwaj said...

gr8 work sir

bahut hi acha vyanga hai .....

plz read my poems on
www.manasbharadwaj.blogspot.com
and give ur comment there
thax

अमित माथुर said...

भोतेयी बढ़िया है अशोकजी, दुआ करते हैं ग्लोबल वार्मिंग का सही शब्दार्थ और भावार्थ भारतवासियों को समझ आएगा और शायद हमारी धरती भट्टी बनने से बच जायेगी. -अमित माथुर amitmathur.ht@gmail.com

OM said...

Sir

You have shown that Hindi is really glowing with strength ( Glow + Bal) and is fully arming ( W + arming)to take up any challenge .
Excellent
O. P Nautiyal
Pl. also visit my blog for my Hindi Poems
http://opnautiyal.blogspot.com/

tannu2 said...

respected ashok sir,main aaj hi aapke blog se judi hoon.aapki global warming ki defination se mujhe iska sahi arth pata chala thanks.great work sir!!!!

pallavi trivedi said...

mast chalkallas hai aapki....pahle bhi padh asuna hai aapko. jaari rakhiye ...

gurmeet said...

बहुत बढ़िया चक्रधर जी। ऐसे अनुवादों ने ही तो हिंदी का भट्टा बैठाया है। काश आपकी इस पोस्ट को हमारे लौह पथ गामिनी वाले हिंदी के पंडित पढ़े और कुछ सबक ले पाए तो हिंदी का बहुत उद्धार हो पाए।
गुरमीत
चंडीगढ़

gurmeet said...

बहुत बढ़िया चक्रधर जी। ऐसे अनुवादों ने ही तो हिंदी का भट्टा बैठाया है। काश आपकी इस पोस्ट को हमारे लौह पथ गामिनी वाले हिंदी के पंडित पढ़े और कुछ सबक ले पाए तो हिंदी का बहुत उद्धार हो पाए।
गुरमीत
चंडीगढ़

Ashok Chakradhar said...

आपने अपना बहुमूल्य समय निकाल कर मेरे लेख पर प्रतिक्रिया दी, बहुत-बहुत धन्यवाद
लवस्कार अशोक चक्रधर

संजीव कुमार said...

चक्रधर जी आपकी कवितायों को सुनने के लिए मै बहुत दूर - दूर तक जाया करता था, अब आपके ब्लॉग से ही कम चल जाता है . बहुत अच्छा है आपका ग्लोबल वार्मिंग .