—चौं रे चम्पू! चेहरा चमकीलौ, चाल में फुर्तीबाजी, का चक्कर ऐ?
―चचा! एक दिव्य प्रवचन दे कर आ रहा हूं।
―कौन सी चैनल पै?
―चैनल पर नहीं चचा, म्युनिस्पैलिटी के नल पर। पानी नहीं आ रहा था। लोग अपने-अपने सब्र का घड़ा लेकर बैठे थे। समय का जल-गुड़ुप-योग चल रहा था। हमने समय का गुडुपयोग यानी गुड उपयोग करने के लिए प्रवचन देना शुरू कर दिया। ऐसी नीली-पनीली बातें कहीं, जैसे— ‘द लाल सलाम’ को बीजेपी ने ‘दलाल सलाम’ कर दिया है। शब्दों को तोड़ो-मरोड़ो या घुमाओ-फिराओ तो चचा बड़ा मज़ा आता है। भले ही दमदार बात न हो पर बात में दम आ जाता है। जैसे तुमने अभी कहा कि फुर्तीबाज़ी की चाल से आ रहा हूं, तुम्हारी इसी बात को मैं घुमा कर कह सकता हूं कि चचा! ये ज़माना फुर्तीबाज़ी की चाल का नहीं है, बल्कि चालबाज़ी में फुर्ती का है। बाईस को रब्बा-ईस नहीं बचाएंगे सरकार, सरक-यारों की फुर्ती बचाएगी। प्रवचन में मैंने इसी तरह की पांच बात बताईं।
—बता, बता! हमैं ऊ बता !
—मैंने कहा— हे जल-प्रतीक्षार्थियो! नभ का नहीं पता पर थल के आगे उ और पु है।
—उ और पु का?
—उथल-पुथल! पहली बात ये सुनो कि केस को क्राइम मत बनाओ, क्राइम पर केस करो। दूसरी बात, भेस को सन्यासी मत बनाओ, सन्यास को भेस करो। तीसरी बात, रेस को जीवन मत बनाओ, जीवन में रेस करो। चौथी बात, ऐश के, यानी राख के महल मत बनाओ, जहां रहते हो उसी महल में ऐश करो। और पांचवीं बात ये कि फ़ेस पर चेंज मत लाओ. चेंज को फ़ेस करो।
―चम्पू उदाहरन दिए कै नांय?।
―उदाहरण दिए चचा! मैंने कहा आरुषि मर्डर को बीहड़ क्राइम बना दिया पुलिस ने, इतनी तरह के बयान, बिना अनुसंधान के अनुमान। केस को ऐसा क्राइम बना डाला ऐसा कि भगवान जी के भी आंसू निकल आए। तलवार को लटकाया नहीं पर तलवार तो लटका ही दी थी। क्राइम पर केस होना चाहिए था जैसा कि सी.बी.आई. ने किया। दूसरी बात, सन्यासियों के भेस में कितने सन्यासी हैं, बताना ज़रा। सन्यासियों को भेस की ज़रूरत नहीं है, सोमनाथ चटर्जी को देख लो। तीसरी बात, आजकल नौजवान रेस को जीवन समझ कर जीवन से हाथ धो बैठते हैं। कल एक युवक एक रियलिटी शो में पानी में बैठ गया। रेस इस बात की कि कौन कितनी देर तक पानी में बैठ सकता है। बेहोश हो गया पानी में। अरे जीवन में जीते हुए रेस करनी पड़ती है मुन्ना। ऐसे थोड़े ही कि रेस के चक्कर में जीवन गंवा बैठो। चौथी बात नेपाल के राजा के लिए है, जहां रहो उसी को महल समझ कर ऐश करना प्यारे। अब लास्ट एण्ड फाइनल बात ये कि फ़ेस को चेंज मत करो, चेंज को फ़ेस करो। माना कि तुमको पच्चीस करोड़ का प्रस्ताव मिला, तुम्हारे चेहरे पर बल पड़ गए कि इतने से रुपयों में क्या छौंक लगेगा? मुद्रा-स्फीति और महंगाई के इस दौर में पच्चीस करोड़ क्या मायने रखते हैं । तो हे सांसद भैया, इस चेंज को फ़ेस करो। थोड़ा बारगेन करो। बारगेन से बार-बार गेन कर सकते हो।
—तौ ये प्रवचन दियौ तुमनै! बंडरफुल!!!
13 comments:
बंडरफुल!!!
अति सुन्दर रचना।
change ko face mat karo,face ko change karo.bar-bar gain karo,........kya kehne,
bahut umda!
अशोक जी,
मैं तो ज़माने से आपका मुरीद हूँ। आपके बारे में लिखना सूरज को दिया दिखाने के समान है... और आपकी लेखनी के बारे में लिखना.... इस लायक नही हुआ अभी... भगवान् बचाए ऐसे पाप से। मैं तो अदना सा शिष्य समान हूँ।
बहुत खूब परवचन दिये हैं आप !अच्छे अच्छे स्वामियों को मात दे डाली !
advitiya tippani
आपकी रचनाए कयामत ढाती है, कितने थोड़े शब्दो मे आप इतना कुछ कह जाते है, सच यह अपने आप मे बेमिशाल है...
शरद मिश्रा
बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय
बनारस
wah wah
chakradhar ji, kavita mein to vyangya ke teer chhodte hi hain, par 'CHAKKALLAS' mein to vyanga ka khajana bhara hua hai.
itna achha aap kaise likh lete hai thoda mujhe bhi asirwaad dijye.
Apni kuchh rachnaon k liye aapse asirwad chahunga...
dhanyawaaad
http://yesjee79.blogspot.com/
आपने अपना बहुमूल्य समय निकाल कर मेरे लेख पर प्रतिक्रिया दी,
धन्यवाद अभिषेक जी
धन्यवाद शोभा जी
धन्यवाद अनिल जी
धन्यवाद समीर भाई
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।
लवस्कार
अशोक चक्रधर
हमेशा की तरह शानदार,मज़ेदार कथन हैं आपके, कुछ ज्ञान,कुछ जानदार बातं। लिखते रहिए
शुभकामनाएँ
विजया सती
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