--चौं रे चम्पू! अब मुसर्रफ कौ होयगौ रे?
--चचा! वही होगा जो एक भिखारी के साथ होता है। भीख न मिलने पर पेट में घुटने दबाकर फुटपाथ पर सोता है। तानाशाह की परिणति या तो आरी से कटने में होती है या कद भिखारी तक घटने में होती है। ताज्जुब की बात तो ये है कि चुनाव के बाद इतने दिन तक टिका भी कैसे रहा। वजह ये थी कि फौजी वर्दी के अन्दर वो एक जम्हूरियत के बन्दर की तरह अपने गलफड़ों में रसद इकट्ठी करता रहा और कट्टरता और आंतकवाद से लड़ाई नाम की दो डालों पर जब मन आया फुदकता रहा। अमरीका के पैसे से आवाम को विकास का झूठा नज़ारा दिखाता रहा। जनता कंफ्यूज़ हो गई। कारगिल में घुसपैठ करके भारत विरोधी भावनाओं को तुष्ट किया और फिर पट्ठा आ गया भारत से हाथ मिलाने।
--अब होयगौ का वाके साथ, जे बता?
--कुछ ख़ास नहीं होगा चचा, होता उसके साथ है जिसके पास कुछ होता है। न आर्मी, न अमरीका, न अवाम, साथ छोड़ गए तमाम। नवाज़-ज़रदारी के सामने पद के भिखारी ने सौ नाटक किए। नवाज़-ज़रदारी गठबंधन इतिहास को दोहराना नहीं चाहता था कि लोग समझें कि पाकिस्तान में सिर्फ तख़्ता-पलट होता है या बदले की भावना से काम लिया जाता है। अब पाकिस्तान के नए हुक्मरानों की समझ में ग्लोबल-गणित आता है। चल थोड़े दिन बना रह भइया, तेरी चला-चली तो होनी है। भली तरह से मान जा वरना इतिहास को दोहराने में भी क्या देर लगती है। बेनज़ीर के जाने के बाद वे जम्हूरियत की नई नज़ीर लाना चाहते थे। सो कटोरे में दया का सिक्का नहीं पड़ा। अल्लाह का हवाला देकर कट्टरपंथी मौलानाओं की दाढ़ी के नीचे कटोरा रखा तो दो टूक जवाब मिला-- आगे बढ़ और लाल मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठ जा, वहां परवरदिगार का दीदार कर। भीख में भरोसे की एक भी दीनार नहीं दी मौलवियों ने। व्हाइट हाउस के दरवाज़े पे अल्लाह का नाम लिए बिना कटोरा फैलाया। तो अन्दर से बुश ने मुश से कह दिया-- आगे बढ़ भइया। लौटकर अपनी आर्मी के नए सिपहसालारों के आगे कटोरा फैलाया-- हुक्म मानने के वचन की भीख़ दोगे? आर्मी ने भी मुंडी हिला दी-- आगे बढ़, आगे बढ़। कटोरा घूमता-घूमता पहुंचा जुडीशरी के आगे। जज हज़रात पहले से ही बिर्र थे, एक स्वर में बोले— बर्र के छत्ते में कटोरा दे रहा है मवाली, जम्हूरियत में हो चुकी है हमारी बहाली। महाभियोग के हत्थे चढ़ गया, तो कटोरे का टोपा बना के फंदे पर चढ़ा देंगे। ये सुनहरे ख़्वाब देखने वाली सुनहरे फ्रेम की ऐनक उतार दे और गद्दी से अपने आप उतर जा। तुझे अब हुकूमत की भीख नहीं मिलने वाली, आगे बढ़। चचा, मुशर्रफ पूरा तानाशाह नहीं था। तानाशाह होता है बांस की खपच्चियों से बना लकड़ी का रावण, जो झुकता नहीं है, फुंकता है। ये तो रबड़ का गुड्डा था, जिसके साथ अमरीका ने मनोरंजन किया। पर इसने भी आतंकवादी ब्रश से बुश का ऐसा मंजन किया कि अमरीका के दांत काले हो गए। धरती के भोले-अनपढ़-निरीह मुसलमान उसके निवाले हो गए। इसने आतंकवाद को कोसा भी और पोसा भी।
--बडौ बेआबरू है कै निकरौ।
--बेआबरू होकर वह निकलता है, जिसकी कोई आबरू बची हो। पाकिस्तान के हर शहर में सड़कों पर मिठाई बंट रही है। ऐसा पाकिस्तान में पहले कभी नहीं हुआ। मुशर्रफ के ख़िलाफ़ गुस्सा है न रहम, क्योंकि बचा ही नहीं कोई दम। सुमरू मियां कार्यवाहक राष्ट्रपति बन चुके हैं और सुमरूतलैया के सामईन एक ही गाना सुनना चाहते हैं—‘जा जा जा रे जा मुशर्रफवा’। तुझे कोई नहीं मारेगा। फुटपाथ पर कोई नशेड़ी ड्राइवर तेरे ऊपर ट्रक चढ़ा दे उसकी कोई गारंटी नहीं।
--जैसे सबके दिन फिरे, वैसे मुसर्रफ के कबहुं न फिरैं।
--चचा! वही होगा जो एक भिखारी के साथ होता है। भीख न मिलने पर पेट में घुटने दबाकर फुटपाथ पर सोता है। तानाशाह की परिणति या तो आरी से कटने में होती है या कद भिखारी तक घटने में होती है। ताज्जुब की बात तो ये है कि चुनाव के बाद इतने दिन तक टिका भी कैसे रहा। वजह ये थी कि फौजी वर्दी के अन्दर वो एक जम्हूरियत के बन्दर की तरह अपने गलफड़ों में रसद इकट्ठी करता रहा और कट्टरता और आंतकवाद से लड़ाई नाम की दो डालों पर जब मन आया फुदकता रहा। अमरीका के पैसे से आवाम को विकास का झूठा नज़ारा दिखाता रहा। जनता कंफ्यूज़ हो गई। कारगिल में घुसपैठ करके भारत विरोधी भावनाओं को तुष्ट किया और फिर पट्ठा आ गया भारत से हाथ मिलाने।
--अब होयगौ का वाके साथ, जे बता?
--कुछ ख़ास नहीं होगा चचा, होता उसके साथ है जिसके पास कुछ होता है। न आर्मी, न अमरीका, न अवाम, साथ छोड़ गए तमाम। नवाज़-ज़रदारी के सामने पद के भिखारी ने सौ नाटक किए। नवाज़-ज़रदारी गठबंधन इतिहास को दोहराना नहीं चाहता था कि लोग समझें कि पाकिस्तान में सिर्फ तख़्ता-पलट होता है या बदले की भावना से काम लिया जाता है। अब पाकिस्तान के नए हुक्मरानों की समझ में ग्लोबल-गणित आता है। चल थोड़े दिन बना रह भइया, तेरी चला-चली तो होनी है। भली तरह से मान जा वरना इतिहास को दोहराने में भी क्या देर लगती है। बेनज़ीर के जाने के बाद वे जम्हूरियत की नई नज़ीर लाना चाहते थे। सो कटोरे में दया का सिक्का नहीं पड़ा। अल्लाह का हवाला देकर कट्टरपंथी मौलानाओं की दाढ़ी के नीचे कटोरा रखा तो दो टूक जवाब मिला-- आगे बढ़ और लाल मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठ जा, वहां परवरदिगार का दीदार कर। भीख में भरोसे की एक भी दीनार नहीं दी मौलवियों ने। व्हाइट हाउस के दरवाज़े पे अल्लाह का नाम लिए बिना कटोरा फैलाया। तो अन्दर से बुश ने मुश से कह दिया-- आगे बढ़ भइया। लौटकर अपनी आर्मी के नए सिपहसालारों के आगे कटोरा फैलाया-- हुक्म मानने के वचन की भीख़ दोगे? आर्मी ने भी मुंडी हिला दी-- आगे बढ़, आगे बढ़। कटोरा घूमता-घूमता पहुंचा जुडीशरी के आगे। जज हज़रात पहले से ही बिर्र थे, एक स्वर में बोले— बर्र के छत्ते में कटोरा दे रहा है मवाली, जम्हूरियत में हो चुकी है हमारी बहाली। महाभियोग के हत्थे चढ़ गया, तो कटोरे का टोपा बना के फंदे पर चढ़ा देंगे। ये सुनहरे ख़्वाब देखने वाली सुनहरे फ्रेम की ऐनक उतार दे और गद्दी से अपने आप उतर जा। तुझे अब हुकूमत की भीख नहीं मिलने वाली, आगे बढ़। चचा, मुशर्रफ पूरा तानाशाह नहीं था। तानाशाह होता है बांस की खपच्चियों से बना लकड़ी का रावण, जो झुकता नहीं है, फुंकता है। ये तो रबड़ का गुड्डा था, जिसके साथ अमरीका ने मनोरंजन किया। पर इसने भी आतंकवादी ब्रश से बुश का ऐसा मंजन किया कि अमरीका के दांत काले हो गए। धरती के भोले-अनपढ़-निरीह मुसलमान उसके निवाले हो गए। इसने आतंकवाद को कोसा भी और पोसा भी।
--बडौ बेआबरू है कै निकरौ।
--बेआबरू होकर वह निकलता है, जिसकी कोई आबरू बची हो। पाकिस्तान के हर शहर में सड़कों पर मिठाई बंट रही है। ऐसा पाकिस्तान में पहले कभी नहीं हुआ। मुशर्रफ के ख़िलाफ़ गुस्सा है न रहम, क्योंकि बचा ही नहीं कोई दम। सुमरू मियां कार्यवाहक राष्ट्रपति बन चुके हैं और सुमरूतलैया के सामईन एक ही गाना सुनना चाहते हैं—‘जा जा जा रे जा मुशर्रफवा’। तुझे कोई नहीं मारेगा। फुटपाथ पर कोई नशेड़ी ड्राइवर तेरे ऊपर ट्रक चढ़ा दे उसकी कोई गारंटी नहीं।
--जैसे सबके दिन फिरे, वैसे मुसर्रफ के कबहुं न फिरैं।
9 comments:
बड़ी तबियत से मुश चाचा की धुलाई कर दी आपने...
चौं चक्रधर जी, या मुसर्रफ ने आपको कहा बिगाड़ोओ. बलकि बाईके सासन में आपऊ पाकिस्तान है के आए. ई तौ रांग है.
बहुत खूब चक्रधर जी, वैसे कोई पूरी पोस्ट खांटी ब्रज भाषा में लिखिए. पढ़ने में बड़ा मजा आएगा.
लवस्कार.
देवेश वशिष्ठ 'खबरी'
http://deveshkhabri.blogspot.com
मुशरर्फ हमारे समझदार कट्टर दुश्मन थे. इसका फायदा भी था और नुकसान भी. मगर अब लोकतंत्र है वहाँ तो हर बार देखना होगा, ऊँट किस करवट बैठता है.
तानाशाहों का अंत जैसा होता है, मुशर्रफ का तो वैसा हुआ भी नहीं. भाग्यशाली है बन्दा :)
ये खिचाई थी या धुलाई,
जैसा भी थी, बधाई
Sanjay ki baat se sehmat.
बेहतरीन लिखा है आपने
namashkar sir
ajib khel hai raajniti ka bhi
jiskar sar topi uske aage piche log general se jamuriyat or phir jamuriyat se bhikhari
sab kuch ulta palta
aapne bahut accha likha sir
ek sir aapke liye
or musharraf ji ke gujre kal ke liye
( MAT KAR GUMA ITNA EK DIN SHISA BANKAR TUT JAAYEGA SAMETENGE TUJHAI TAB HAM HI JAB TU APNA NAAMO NISHA BHUL JAAYEGA )
AGAR UNHONE BHI APNI NA SOCH KAR LOGO KO SOCHI HOTI TO AAJ YUN GHAR SE BEGHAR NAHI HOTE
JAIDEV KUMAR JONWAL
आपकी रचना पढ़ खुल गई बत्तीसी
पहचाना... जी गुरुदेव मैं सीसी
AADARNEEY GURUVAR!
BLOGGER KE IS SANSAR ME APNA AASHEERVAAD DEKAR MERA SWAGAT KAREN.
SUMIT TOMAR KI CHHUTKI BAHAN.
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