--चचा! कौए कम होते जा रहे हैं, इसमें कोई शक नहीं। आदमी की उम्र और आबादी दोनों बढ़ रही हैं। उसका आचरण बदल रहा है, इसलिए कौए कम हो रहे हैं। आप तो जानते है कि कौआ यमदूत भी होता है। यमराज को लगा होगा कि काम कम है और स्टाफ ज़्यादा है, सो उन्होंने सोचा होगा पहले इन्हें ही निपटाओ। कौए शायद यमराज से सैलेरी बढ़ाने की भी मांग भी कर रहे होंगे। कुछ कौए हो सकता है आमरण अनशन में जाते रहे हों।

पहले बच्चे खुले आंगन में बैठ कर रोटी खाते थे तो कागराज छीन कर ले जाते थे। बच्चा रोता था, मां मुस्काती थी। कौए को प्यार से डपटते हुए बच्चे को दूसरी रोटी लाकर देती थी। कौए का पेट भर चुका होता था इसलिए धन्यवाद की मुद्रा में बड़े प्यार से अपनी इकलौती आंख से बच्चे को निहारता था। बच्चे की भी कौए से दोस्ती हो चुकी होती थी। मुस्काता हुआ बच्चा जब अपनी दूसरी रोटी कौए की तरफ बढ़ाता था तब मां खिलखिलाती हुई बच्चे को गोदी में लेकर अपनी मढ़ैया में आ जाती थी।
--निर्धन जी कौ गीत याद ऐ का?
--हां चचा! ‘हम हैं रहबैया भैया गांव के, फूस की मढ़ैया भैया बरगद की छांव के, कागा की कांव के, हम हैं रहबैया भैया गांव के’। क्या ही मस्ती से गाते थे। कौआ किसी मुंडेर पर आकर बैठ जाए तो खुशी होती थी कि आज कोई मेहमान आएगा। अनचाहे मेहमानों से डर भी लगता था। मेरा भी एक कवित्त सुन लो चचा!

--सुना, सुना! तू ऊ सुनाय लै।
--घरवाली को ज़मीन की कुड़की के लिए अमीन की आने का अंदेशा है। अपने घर वाले से कहती है--
कुरकी जमीन की, जे घुरकी अमीन की तौ
सालै सारी रात, दिन चैन नांय परिहै।
सुनियों जी आज पर धैधका सौ खाय,
हाय हिय ये हमारौ नैंकु धीर नांय धरिहै।
बार-बार द्वार पै निगाह जाय अकुलाय,
देहरी पै आज वोई पापी पांय धरिहै।
मानौ मत मानौ, मन मानैं नांय मेरौ, हाय
धौंताएं ते कारौ कौआ कांय-कांय करिहै।
--चचा कौआ हंसाता था, रुलाता था, खुश करता था या डराता था, लेकिन आता था। कौए को दिवाकर भी कहते हैं क्योंकि मनुष्यों को जगाने की ज़िम्मेदारी मुर्ग़े के साथ आधी उसकी भी थी। इस चंडाल पक्षी को चिरायु भी कहते हैं पर ये नाम तो अब गलत हो गया। यमदूत, आत्मघोष, कर्कट, काक, कोको, टर्रू, बलिपुष्ट, शक्रज, के अलावा अरिष्ट भी कहते हैं इसको। दवाइयों में इसका उपयोग कैसे होता था यह तो बाबा रामदेव जानें पर एक दवाई सुनी होगी आपने अशोकारिष्ट। अरिष्ट लगने से न जाने कितनी आयुर्वेद की दवाइयां बनी हैं। पर अरिष्ट के साथ ऐसा अनिष्ट हुआ कि चिरायु की आयु ही कम हो गई चचा।
--चौं भई?
--भूख और कुपोषण चचा। प्यासा कौआ घड़े में कंकड़ डाल तो सकता है पर भूख लगने पर कंकड़ खा तो नहीं सकता। अब आलम ये है कि जो इंसान बेहद ग़रीब है वो रोटी के टुकड़े को तब तक कलेजे से लगा कर रखता है जब तक वह उसके कलेजे के टुकड़े के मुंह में न चला जाए। जिसके पास ज़रा सा भी पैसा आ गया वो बड़ी फास्ट गति से फास्ट फूड खाता है। कौए टापते रह जाते हैं। सड़े फास्ट-फूड का विषैला कचरा खाकर मर जाते होंगे। खेतों में भी बुरा हाल है। इस प्रकृति-प्रदत्त कीटनाशक को मलभुक भी कहा जाता है, किसानों की सहायता करता था, लेकिन यह प्रजाति तेज़ी से लुप्त हो रही है। खेतों में पड़ने वाले रासायनिक कीटनाशकों के कारण यह प्राकृतिक कीटनाशक समाप्त हो रहे हैं।

अपना जन्म बुलन्दशहर संभाग के खुर्जा शहर में हुआ था। नरेश चन्द्र अग्रवाल की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बुलन्दशहर ज़िले में सन दो हज़ार तीन में कौओं की तादाद दस हज़ार थी, अगस्त दो हज़ार आठ की गणना के अनुसार अब सिर्फ दो हज़ार चार सौ उनासी कौए बाकी रह गए हैं।
--ऐसी परफैक्ट गिनती कैसै कल्लई?

--चचा! जब यमलोक में मनुष्यों की गणना परफैक्ट है तो मनुष्य भी तो यमदूतों की ठीक-ठीक गणना रख सकता है। मुझे तो लगता है कि यमलोक के इन कांइयां कर्मचारियों ने फाइलों में हेराफेरी करके अपना पुनर्जन्म मनुष्य लोक में निर्धारित करा लिया। इसलिए धरती पर कौए तो कम हो गए पर कांय-कांय बढ़ती जा रही है।