—‘जय हो’ की जयजयकार हमेशा हुई है चचा! कोई नई बात नहीं है। ‘जय हो’ भारत की पुरानी भावना है। ऐसा आशीर्वाद है, जो बड़ों ने छोटों को दिया और छोटों ने बड़ों को। ‘महाराज की जय हो’ से लेकर जनतंत्र की ‘जय हो’ तक जनता अपनी शुभेच्छाएं सदियों से व्यक्त करती आ रही है।
—हम तौ कांग्रेस की ‘जय हो’ की बात कर रए ऐं!
—वही तो बता रहा हूं। मैंने कांग्रेस के प्रचार के लिए अतीत में बनाए गए आठ गाने सुने। भला हो सुमन चौरसिया का, जिन्होंने अपने ‘ग्रामोफोन रिकार्ड संग्रहालय’ से मुझे ये गीत उपलब्ध कराए। सब गानों में किसी न किसी रूप में ‘जय हो’ या ‘जयजयकार’ शब्दों का या भाव का प्रयोग किया गया था। आशा भोंसले और महेन्द्र कपूर की आवाज में एक गीत था— ‘नेहरू की सरकार रहेगी, हिंद की जयजयकार रहेगी।’ इस गाने में एक पंक्ति आती है— ‘अपने दिल की बात सुनेंगे, जिसे चुना था उसे चुनेंगे।’

आप देखिए, पंद्रहवीं लोकसभा के चुनावों में भी अधिकांश मतदाताओं ने दिल की बात सुनी। क्षेत्रीयता के बिल में रहने वाले जीवधारियों को जनता ने कमोवेश नकार दिया। शंकर जयकिशन के संगीत और रफी के स्वर में, क़ाज़ी सलीम के एक गाने का मुखड़ा था— ‘कभी न टूट पाएगा ये उन्नति का सिलसिला, ये वक्त की पुकार है कि कांग्रेस की जय हो।

’ आशा, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर और मुकेश जैसे महान गायकों ने ये गीत गाए थे। शंकर जयकिशन के ही संगीत में हसरत जयपुरी का लिखा हुआ और मुकेश द्वारा गाया हुआ एक गीत है— ‘भेद है, न भाव है, ये प्यार का चुनाव है, कांग्रेस की जय हो, कांग्रेस की जय हो।’ इस गाने में आगे कहा गया है— ‘जीतनी हैं मंज़िलें, दूर की हैं मुश्किलें, हर जगह सजाई हैं, तरक्कियों की महफ़िलें।’ चचा, गाने में यह नहीं कहा गया कि ‘जीत ली हैं मंज़िलें’। ऐसा नहीं कि इंडिया शाइनिंग हो गया, अब फील्गुड करो भैया। प्रचार में बड़बोलापन और अहंकार हमारी जनता को कभी नहीं पचा। न तो अहंकार चाहिए और न सोच में नकार। कांग्रेस के ‘जय हो’ गीतों में न तो कोई बड़बोलापन था और न कोई नकारात्मकता। प्रचार की कमान संभाले हुए आनंद शर्मा, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश और विश्वजीत ने श्रेय आम आदमी को दिया और उसके हर बढ़ते कदम से भारत की बुलंदी की उम्मीद जगाई।
—उल्टी बात, बोलिबे वारे पै उल्टी पड़ौ करै भैया!
—हां चचा, आज़ाद भारत में अब तक के चुनाव प्रचारों का ये इतिहास है कि जिस भी दल ने नकारात्मक अभियान चलाया, वह जीत नहीं पाया। कांग्रेस ने भी एक बार ऐसा किया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। गाना था— ‘हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई से ना जिनको प्यार है, वोट मांगने का ऐसे ही लोगों को अधिकार है।’

गाने में दूसरी पार्टियों पर व्यंग्य था कि विरोधी झूठ बोलते हैं, उन्हें कुर्सी का रोग है और उन्हीं के कारण देश बीमार है। बात भले ही सही रही हो पर जनता को नहीं पची। इधर भाजपा के प्रचार को देख लीजिए, ‘जय हो’ का ‘भय हो’ करके क्या संदेश दिया? न तो हास्य था, न व्यंग्य और न भय। एक प्रकार का विद्रूप था। ‘कहं काका कविराय’ के अंतर्गत काका हाथरसी की शैली में जो रेडियो जिंगल चलाए उनमें विपुल मात्रा में छल-छंद का निषेधी स्वर था और छंदों में भयंकर मात्रा-दोष। दूसरी तरफ़ ए आर रहमान की धुन पर पी. बलराम और सुखविंदर द्वारा गाए हुए, परसैप्ट कंपनी के अजय चौधरी द्वारा बनाए हुए ‘जय हो’ गीतों ने मन मोह लिया। चचा, पुराने ग्रामोफोन रिकॉर्डों में एक स्वागत गीत भी था— ‘राजीव का स्वागत करने को आतुर है ये सारा देश, प्रथम अमेठी करेगा स्वागत, बाद करेगा प्यारा देश।’इस गाने में ‘राजीव’ को ‘राजिव’ गाया गया था क्योंकि छंद में एक मात्रा बढ़ रही थी। अब राजीव के स्थान पर राहुल रख देंगे तो गायकी में बिलकुल ठीक आएगा, सनम गोरखपुरी के गीत में संशोधन किया जाना चाहिए।

—और ‘जय हो’ कौन्नै लिखौ?
—तुम्हारे इस चंपू की कलम काम में आई चचा। शब्दों का कुछ जोड़-घटाना सुखविंदर ने भी किया
—चल, अब ‘जय हो’ कौ नयौ अंतरा लिख, गुलजार के भतीजे।