Monday, June 28, 2010

रंगल मंगल और दंगल का आनन्द

—चौं रे चम्पू! कहां ऐ तू? एक हफ्ता में कित्ते ई फोन मिलाए, उठावै चौं नांय?
—रुको चचा! मैं मिलाता हूं। ….हलो, हलो, हां! चचा, आप जब भी फोन मिलाते हैं मैं सिडनी में कहीं न कहीं कला, संस्कृति या खेल के रंगल, मंगल या दंगल का आनन्द ले रहा होता हूं। यहां इन दिनों आर्ट बिनाले चल रहा है। आठ स्थानों पर विविध कलारूपों की प्रदर्शनियां लगी हुई हैं। एक बार जब आपका फोन आ रहा था, मैं कोकाटू आयलैंड पर आधुनिक कला की विराट प्रदर्शनी के टर्बाइन हॉल में था। चचा! चित्र-कला, मूर्ति-कला, स्थापत्य-कला तो आप जानते हैं, पर शायद आपने इंस्टालेशन आर्ट के बारे में नहीं सुना होगा। जितनी भी चाक्षुष कलाएं हैं उनमें डिजिटल आर्ट और वीडियो और जोड़ दीजिए। आकार और स्थान की परवाह मत करिए, फिर देखिए आपकी कल्पना कैसा रूप धारण करती है। चीन के एक कलाकार काई गो कियांग ने ’इल्यूज़न’ नामक एक ऐसा एनीमेशन इंस्टॉल किया जिसमें नौ बड़ी-बड़ी कारें तोड़ फोड़ कर हवा में टांग दी गई थीं। विस्फोट का भ्रम देने के बाद कलामुंडी खाती हुई कार धरती पर सकुशल उतर आई।
—हवा में कैसै टांग दईं कार?
—एक विराट छत के नीचे। अब खुद सोच लें कि वह हॉल कितना बड़ा होगा जिसमें वह काम लगाया गया था। दूसरी बार जब आपका फोन आया तब मैं डार्लिंग हार्बर के विराट प्रांगण में विविड सिडनी शृंखला का एक गीत-नाट्य ‘फायर वाटर’ देख रहा था। बंदरगाह के तीन तरफ दर्शक थे और समुद्र की खाड़ी में मंच था। कहानी ये थी कि अठारह सौ तीस में कलकत्ता से पानी के जहाज में बैठ कर एक बारह-तेरह साल की लड़की सिडनी आई थी। वह लड़की ही इस नाटक की सूत्रधार थी। लाइट-साउंड के अभिनव प्रयोग, खूब सारे कलाकार। एक बड़ा पानी का जहाज भी नाटक का हिस्सा था। मैंने पूरी दुनिया घूमी है चचा, पर इतना बड़ा नाट्य-मंच पहली बार देखा। इस नाटक का संगीत निर्देशक एक भारतीय था, बॉबी सिंह। सितार और भारतीय ताल-वाद्यों के साथ यहां के आदिवासी वाद्य डिजरीडू का प्रयोग करते हुए शानदार सांगीतिक रचनाओं में घुले-मिले नृत्य दिखाए गए। देखने के लिए मुंडी पूरी दो सौ डिग्री घुमानी पड़ती थी।
—वाह भई वाह!
—एक बार कटूंबा के विंटर फेस्टीवल में था। चालीस पचास हज़ार लोगों का रेला-मेला। जैसा दिल्ली का सूरज कुंड मेला होता है। उसके बाद जब आपका फोन आया उस समय फुटबॉल फीवर के कारण सिनेमा हाल की धरती कांप रही थी। फोन कैसे उठाता? मैच से पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों को थ्री डी एनीमेशन के ज़रिए जब मैदान में प्रस्तुत किया गया तो सारे दर्शक अपने पैरों से हॉल के फर्श को पीट रहे थे, एक भूकंप सा आ रहा था। उल्लास का भूंकप। फिर जी आए विपक्ष के खिलाड़ियों के एनिमेशन। पूरे हॉल में सियारों जैसी आवाज़ें गूंजने लगीं, जैसी हमारे यहां किसी कवि को हूट करने के लिए निकालते हैं।
—ठीक ऐ ठीक ऐ, और अभी जो फोन मिलायौ ओ?
—एक कंसर्ट में था चचा। सिडनी एंटरटेनमेंट सेंटर में। जैसा अपने यहां दिल्ली में आईजी इंडोर स्टेडियम है न, वैसा। दस हज़ार की क्षमता वाला हॉल खचाखच भरा हुआ था। गायक था यूसुफ। उम्र में मुझसे लगभग तीन साल बड़ा होगा। अद्भुत गायक है। उसका मूल नाम है केट स्टीवेंस। बचपन से ही गाने लगा था। सत्तर के दशक में पॉप स्टार के रूप में उसका बहुत नाम था। खूब सम्पत्ति, खूब यश। सतत्तर में उसने मुस्लिम धर्म कुबूल कर लिया और नाम बदल कर रख लिया यूसुफ़ इस्लाम। भारत में तो दूसरी शादी करने के लिए इस्लाम धर्म कुबूल करते हैं। उसे इस्लाम धर्म अंतर्मन से भा गया। कट्टरपंथियों ने कहा कि इस्लाम कुबूला है तो गाना बंद करना पड़ेगा। और उसने दसियों साल तक गाना नहीं गाया। कमाल है न! सिडनी छत्तीस साल बाद आया था। श्रोता भी सारे पैंतालीस साल से ऊपर के थे, जिन्हें उसके पुराने गाने याद थे।
—फिर गाइबौ कैसै सुरू कियौ?
—दुनिया भर में फैले अपने प्रेमियों के आग्रह पर। अपने नाम से उसने इस्लाम निकाल दिया, सिर्फ़ यूसुफ़ रह गया और गाने लगा। धर्म रखो, कट्टरता निकाल दो तो गाना अपने आप फूट कर बाहर निकल आएगा। क्यों चचा?
—हां, प्रेम तौ हर मजहब ते बड़ौ ऐ लल्ला!

2 comments:

Bhanu said...

good one....read a little of Brijbhasha after a long time..espcially the one that comes from Hathras and around....!!!Would love to read some real poetry from you, the one that smells a little of your fathers works!! The other day i was wondering, has someone ever thought of reviving magazines like Dinmaan,Dharmayug etc. may be you can...!!!:)

Jitendra Yadav said...

Sir, I want to Join "Chale aao Chakradhar Chaman me" Please tell me Where i can chat with you