—चौं रे चम्पू, तू भौत दिनान ते स्याम जी कूं टरकाय रह्यौ ऐ, उनके पिरोगराम में जावै चौं नायं?
—चचा, एक तो उनकी अकड़, दूसरे पारिश्रमिक के नाम पर ठैंगा। बुला कर जैसे अहसान कर रहे हों, ऊपर से उलाहना। अच्छा, हमसे भी लिफाफे की उम्मीद! हमने तुम्हारे पिताजी को कितनी ही बार अपने घर बुलाया, अच्छा भोजन कराया, उन्होंने कभी कोई तमन्ना नहीं रखी। ये लीजिए, पिताजी का संदर्भ देकर यह तीसरा वार कर दिया। चौथा, और सबसे धांसू और रौबदार प्रहार यह कि रिश्ते में तुम हमारे भतीजे लगे चम्पू। उम्र में मुझसे दो-तीन साल छोटे ही होंगे, पिताजी से दोस्ती का दावा करते हुए बन गए चाचा! मैं तो अब उनका फोन उठाता ही नहीं हूं।
—ऐसौ मत कर लल्ला! दिल के बुरे नायं स्याम जी।
—दिल तो दुखाते हैं! अपने व्यावसायिक आयोजनों में रिश्तों को भुनाते हैं और मुझे व्यावसायिक बताते हैं। मन कैसे करे जाने का? देखो चचा, या तो मिले चकाचक मानदेय या सामने वाला पर्याप्त मान देय। अरे, हमें हमारा बाज़ार भाव ना दे तो कम से कम भावना दे। ये क्या कि सिर्फ उलाहना दे।
—चल जैसी तेरी मरजी, हाल-फिल्हाल कहां गयौ ओ? मानदेय वारी जगै कै मान वारी जगै?
—पिछले तीन-चार कार्यक्रम तो मान-सम्मान वाले ही थे, लेकिन सब जगह आनंद आया। काका हाथरसी पुरस्कार समारोह में कवि प्रवीण शुक्ल को सम्मान दिया गया, वहां मैंने काका जी पर एक पावरपॉइंट प्रस्तुति दी। उसमें मेहनत का मज़ा मिला। एक जगह कम्प्यूटर में हिंदी को लेकर व्याख्यान दिया, सार्थकता-बोध हुआ और सुकून मिला! एक समारोह में मुझे सम्मानित किया गया था ‘किशोर कुमार मैमोरियल क्लब’ की ओर से। स्मृति-चिन्ह के रूप में हिज़ मास्टर्स वॉइस वाला पीतल का ग्रामोफोन भोंपू मिला। लिफ़ाफ़ा कहीं नहीं मिला, गांठ का धन ही लगा, पर ख़ुशियों को इजाफ़ा मिला। उस कार्यक्रम में कुछ किशोर और युवा गायकों से किशोर के सुरीले और चटपटे फिल्मी गीत सुनने को मिले।
—कमाल कौ गायक हतो किसोर कुमार।
—किशोर कुमार की खण्डवा से उठती हुई आवाज़ सीधे अन्दर जाती है और हमारे हृदय के हर तार को छेड़ कर अंदर के खण्ड-खण्ड पाखण्ड को दूर कर देती है। कहते हैं कि वे स्वयं संगीत-शास्त्र के ज्ञाता नहीं थे, पर बड़े-बड़े शास्त्रीय संगीतज्ञ उनकी नैसर्गिक क्षमता का लोहा मानते थे। अखण्ड हंसी बिखराने वाले किशोर कुमार ख़ुद कितने खण्ड-खण्ड थे, ये बात भी जानने वाले जानते हैं। तीन पत्नियां एक-एक करके छोड़ गईं, क्योंकि उन्हें वे लगातार नहीं हंसा पाए। फक्कड़ थे तो अक्खड़ भी थे। तीनों भूतपूर्व पत्नियाँ अभूतपूर्व सहृदय अभिनेत्रियाँ और अपने समय की अभूतपूर्व सुंदरियां थी। रूमा देवी, मधुबाला और योगिता बाली। उन्होंने फक्कड़ से प्रेम किया, अक्खड़ को छोड़ गईं। हँसाने वाले को स्त्रियाँ पसंद करती हैं, लेकिन ये नहीं जानतीं कि सबको हँसाने वाला, खुद रोना और निकटवर्तियों को रुलाना भी अच्छी तरह जानता है। चौथी पत्नी भी सुंदर अभिनेत्री मिली, लेकिन तब तक किशोर दा ने अतीत से सबक लेकर अक्खड़ता छोड़ दी थी। पिछले हृदय आघातों के कारण जीवन भी जल्दी छोड़ दिया, हालांकि लीना के साथ जीना चाहते थे। लीना ने भी दिखा दिया कि निभाना जानती हैं।
—इमरजैंसी में किसोर के गीतन पै बैन चौं लगायौ गयौ ओ?
—पंगा ले लिया था उस वक़्त, संजय गांधी और विद्याचरण शुक्ल से। मान या मानदेय का ही चक्कर रहा होगा। संजय के पांच-सूत्री अभियान के सिलसिले में आयोजित एक कार्यक्रम में आने से मना कर दिया था, सज़ा भुगती डेढ़-दो साल। उनके संगीत-प्रेमियों ने उनका और उनकी अकड़ का साथ दिया। विद्याचरण शुक्ल को माफ़ी मांगनी पड़ी थी। हास्य कलाकार के अंतर्जगत को समझना हंसी-खेल नहीं है चचा। वह शास्त्र-ज्ञाता होने का दावा नहीं करता पर गहरा शास्त्रज्ञ होता है। अपमानित होने पर अकेले में रोता है। वह अपनी दुर्लभ क्षमता के पूरे पैसे वसूलता है लेकिन पैसे से मोह नहीं रखता। कौन जानता है कि किशोर दा ने कितने लोगों की कैसे-कैसे मदद की। कितने ही यार-दोस्तों के लिए मुफ्त में गा दिया। कोई भरोसा करेगा आज कि उन्होंने ‘पाथेर पांचाली’ बनाने में सत्यजित राय की अच्छी ख़ासी आर्थिक सहायता की थी।
—अपनी बता! स्याम जी के पिरोगराम में जायगौ कै इमरजैंसी लगवाय दऊं?
—श्याम जी को याद दिला देना कि विद्याचरण शुक्ल को माफी भी मांगनी पड़ी थी।
Wednesday, November 17, 2010
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8 comments:
सार्थक लेख अशोक जी ... बहुत बहुत धन्यवाद किशोर दा की याद ताज़ा करने के लिए ... कई बार इंसान वक़्त की साजिशों का शिकार हो जाता है , किस्मत की लकीरों में उलझ जाता है .. कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ ...
वो आज भी अपनी कला के ज़रिये हमारे एहसास में जीवित है .. और हमेशा रहेंगे ...
धन्यवाद
किशोर जी की बात ही कुछ और है... इस तरह के विरले मनमौजी रोज़ पैदा नहीं होते जो सलीके के नाम पर ठेंगा दिखा शिखर पर जा विराजते हों !
Kishore kumar ko kendra me rakhkar bahut maaarmik baat kah gaye shreeman,
सबको हँसाने वाला, खुद रोना और निकटवर्तियों को रुलाना भी अच्छी तरह जानता है
Achchha laga
http://swarnakshar.blogspot.com/
`कवि प्रवीण शुक्ल को सम्मान दिया गया'
क्यों रे चम्पू! केवल सम्मान ही दिया या कुछ सामान भी दिया :)
तो य्यों तो बताओ के शयाम जी की अकड ढीली भ्हई के नाँय!
Maan gaye Chakradhar saheb (etraj to nahi !). Shaandaar hai..!kahin pe nigahen.......,
adarniy kakajee ke programme men ham bhi the jahan sri praveen shukl ko award mila tha.aapki prastuti bahut achchi lagi.bageshwarijee ko dekhkar bahut khushi hui.aap dono ko mera sader pranam.
मान और मानदेय के माध्यम से किशोरजी एवं इमरजेंसी का खूब शानदार हवाला दिया आपने .
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