—चौं रे चम्पू!हाथ में इत्ती पर्चीन्नै लिए घूम रह्यौ ऐ, का ऐ इन पर्चीन में?
—चचा, मैंने अपने मुखपुस्तक यानी फेसबुक के दोस्तों के बीच ऐसे ही मन की एक बात लिख कर पोस्ट कर दी थी। जो जवाब आए उनकी ये पर्चियाँ बना लीं। दरअसल, उस वक्त जो मैं सोच रहा था, दोस्तों को यूँ ही लिख कर बता भी दिया, ’कुछ लिखने की तड़प है, किस विषय पर लिखूँ?’ एक घंटे के अंदर साठ-सत्तर सलाहकार सामने आ गए। इतनी तरह की सलाह मिलीं कि यदि सबकी मान कर लिखना शुरू करूँ तो लिखने के लिए कम से कम सात जनम चाहिए। आभा दुबे और अरविंद कुमार ने कहा कि लिखने के लिए ‘लिखने की तड़प’ से अच्छा विषय कौन सा होगा? इसी पर लिखिए। अंशुमान भागवत कहते हैं कि ज़िंदगी के पन्ने पलटिए, लिखने को बहुत मसाला मिल जाएगा।
—सई बात कही।
—सही कही होगी, पर मैं तो फड़फड़ा कर रह गया। ज़िंदगी के कितने पन्ने फड़फड़ाऊँ कि कुछ निकाल कर लाऊं! इसके लिए तो अनेक महाकाव्यों या महा उपन्यासों की शृंखला लिखनी पड़ेगी। सात सौ शब्दों के कॉलम में क्या-क्या लिख सकता हूँ? ज़िंदगी के सफर में कितने लोग साथ आए, कब कौन कहाँ किस ओर मिला, किस छोर मिला, कितनी डोर टूटीं, कितनी जुड़ीं, कितनी राहें कब कहां और क्यों मुड़ीं, बताना आसान है क्या? पिछले हफ्ते टीवी पर एक पुरानी कव्वाली आ रही थी, हमें तो लूट लिया मिल के हुस्न वालों ने.... धुन दिमाग में चढ़ी हुई थी चार मिसरे मैंने भी गढ़ दिए!
—सुना सुना, हमाई तौ सुनिबे की तड़प ऐ।
—जब तलक साथ मज़ा देता जिंदगानी में, तब तलक राहगीर साथ चलते देखे हैं। उम्र भर साथ निभाने की बात कौन करे, लोग अर्थी में भी कंधे बदलते देखे हैं।
—भौत खूब, भौत खूब!और कौन से बिसय सुझाए?
—विनीत राजवंशी, आदि शर्मा, ज्योति शर्मा और राम अकेला ने कहा आम आदमी और करप्शन पर लिखिए। धीमान भट्टाचार्य, अनिरुद्ध तिवारी, प्रशांत कक्कड़ टू जी या आदर्श बिल्डिंग सोसायटी पर लिखवाना चाहते हैं। मनोज और हीरा लाल सुमन का कहना है कि टीवी पर बढ़ती अश्लीलता को विषय बनाया जाए। चेतन ने खुली छूट दे दी कि आप कुछ भी लिखिए हमें पढ़ने की तड़प रहेगी। अब चुनौती ये है कि चेतन की तड़प को कैसे मिटाया जाए। नवनीत पंत की पर्ची पर लिखा है कि फैशन बदल रहा है, बदलते फैशन के अनुसार खुद को कैसे बदला जाए इस पर कलम चलाइए। अरे भैया नवनीत! ज़िंदगी बिलोने के बाद मैंने भी ये नवनीत निकाला है कि नए फैशन के साथ चलने में ही सार है। अगर तुमने बदलाव और फैशन के सवाल पर बच्चों को कोसना शुरू किया तो वे तुम्हें पोसना और परोसना बंद कर देंगे। अकेले रह जाओगे, भूखे मर जाओगे, इसलिए बच्चों के सुर में सुर मिलाओ। अपनी बात भी कहो लेकिन उन्हें भरोसे में लाओ।
—बच्चन के सुर में सुर मिलाइबे में ई सार ऐ!
—सुरेखा की चिंता है की लेखनी बदनाम हो रही है क्योकि लोग अच्छा नहीं लिख रहे हैं। ठीक कह रही हैं सुरेखा। मुन्नी बदनाम क्यों हुई इसके सारे कारण तो नहीं जानता, लेकिन लेखनी क्यों बदनाम हो रही है, इसका थोड़ा-बहुत अंदाज़ा है। कोशिश करूँगा कि अपनी तरफ से लेखनी बदनाम न हो। मनोज गोसांई ने लिखा है कि तड़प है तो श्रृंगार पर लिखिए। ओम पुरोहित जी कहते हैं विषय विकार पर लिखिए। अंशुमान रस्तोगी ने सलाह दी कि जो समझ में आए वो लिखिए, स्वरूप जी ने ताना मारा कि क्या अब आप सर्वे कराने के बाद लिखा करेंगे? लेकिन अमरीका की रेखा जैन की सलाह सबसे बढ़िया लगी और मैं समझता हूं कि इससे बढ़िया कोई तड़प नहीं हो सकती। उन्होंने लिखा है कि जब बच्चे छोटे होते हैं तो उनकी तड़पती हुई आंखें मां को फ़ौलों हैं और जब बड़े हो जाते हैं तो मां की तड़पती हुई आंखें बच्चों को फ़ौलों करती हैं। सबकी सलाह सर माथे, पर मैं आज रेखा जी से सहमत हूं कि सच्ची तड़प अगर कहीं होती है तो मां के हृदय में होती है। इस तड़पती हुई तड़फ को सलाम!
—चल मां की तड़प पै ई लिख!
Thursday, November 25, 2010
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13 comments:
मुखपुस्तक के मुखपृष्ठ पर सुदर्शन सा मुखदर्शन ही काफी है :)
मुखपुस्तक !वाह क्या नाम दिया है ।आपके लेख बचपन से पढती आ रही हूँ पता नहीँ क्योँ ,आपके लेख मायके सा आभास कराते हैँ
वाह भौतहिं मजेदार लगी चम्पू की सबरी हाय माया और दुबिधा!
कबऊँ नैक भौत समै सो निकार के हमारे माँउ अईयों!
’सच में’http://www.sachmein.blogspot.com/
कलम अपना काम करता रहे तो ही इसकी सार्थकता बनी रहेगी.....और पहल आप जैसे कलम के योद्धा से हो तो अच्छा हो. एक प्रयास छोटा सा व्यंग्य के रूप में यहाँ प्रस्तुत है...मार्गदर्शन के लिए जरूर पधारिये...
http://swarnakshar.blogspot.com/
अशोक जी ;
आपने बिलकुल सही निष्कर्ष निकला .
बीच में जो चार पंक्तियों में साथ निर्वाह की बात बताई वह भी सही सच्चाई ही है.
Guru shresth ko pranaam
Mukh -pustak paricharcha bhi khoob rahi guru ji,
lekin jab salah maange par hi itna khoob surat lekh uski paricharcha par ban skata he to fir kahe ki tadap guru ji, yuh hi puchhte rahiye, aur hamse share karte rahiye,
hing lage na fitkari rang chokho aaye,
imaan se guru ji bahut hi majo aayo manne to.. aap kuch na likho , yun likhte raho....
26/11 ko raipur mein apko sunne ka soubhagya prapta hua ? Lekin yeh tadap kab khatma hogi
raipur kab aana hoga phir se abhi kuch kami si rah gayi hai sun ne mein aur suanane mein.....isliye to tadap tadapti hi rah gayi shayad
मुखपुस्तक... क्या शब्द है
सही कहा आपने ...
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
गुरु जी हमें नहीं लगता आपको लिखने के लिए मुखपुस्तक या चेहराकिताब की भीत या दीवार पर लिख कर सुझाव लेने की आवश्यकता है...
:)
sunder ,ati sunder hai aap ki ye abhivyakti .badhai
sadhuwad
aapko samne baith kar bhi suna aapko pada bhi achha laga
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