Wednesday, February 09, 2011

स्वप्न-संगीत-सम्मेलन का धांसू गायन

—चौं रे चम्पू! सास्त्रीय संगीत की काई महफिल में गयौ ओ का?
—चचा, तुम्हारा चम्पू इतना व्यस्त हो गया है कि सुकून के पल निकालना बड़ा भारी पड़ता है। मन तो करता है कि जाऊं, पर जा नहीं पाता। शास्त्रीय संगीत अच्छा बहुत लगता है। हां, पिछले दिनों सपने में एक संगीत-सम्मेलन में धांसू गायन सुना।
—कौन्नै गायौ?
—गायक थे पं. बौड़म सौरसिया और उन्होंने सुनाई राग स्विस कल्याणी की एक बंदिश। पहले व्याख्याकार ने भूमिका बनाई कि हमारी पुरानी बंदिशें प्राय: राधा-कृष्ण, सास-ननदियाया प्रेम के विरह अथवा संयोग पर आधारित हैं, आज के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक हालात पर आधारित नहीं हैं। इन दिनों हर अख़बार में स्विस बैंक में जमा काले धन पर चर्चा हो रही है, इसी के मद्देनज़र हमारे वरिष्ठ गायक पं. सौरसिया आपके सामने एक नई बंदिश सुना रहे हैं। तो हो जाए पंडिज्जी! पं. सौरसिया ने गाना शुरू किया— ’आयो कहां से धन स्याम?’ घनस्याम की जगह धन स्याम करते ही मज़ा आ गया। पहली पंक्ति पर ही सभागार में क्या तालियां बजीं चचा!‘बता री सखि, आयो कहां से धन स्याम?’ फिर चचा उन्होंने अंतरा गाया— ‘यार से या हथियार से आयो, ड्रग ट्रैफिक व्यापार से आयो, तस्करिया गलियार से आयो, पायो कहां से धन स्याम?’ इसके बाद व्याख्याकार ने व्याख्या करी कि ये सारा काला धन अवांछित मैत्रियों और अवांछित हथियारों से आता है, जिससे पूरे संसार का अहित हो सकता है। मादक द्रव्यों का कारोबार काले धन का बड़ा ही उत्पादक स्रोत है। तस्करिया गलियारों में हीरे-पन्ने के व्यापारी टहलते-टहलते ही अपार धन एकत्र कर लेते हैं। हीरे का मोल तो पारखी जानते हैं, पर पारखी होते कितने हैं? अपार पैसा दे जाते हैं जो स्विस कल्याणी बैंक में चला जाता है।
—रुक चौं गयौ? बता,सौरसिया नै आगे का सुनायौ?
—हां, पंडिज्जी! आगे गाइए। ‘नेता से या अभिनेता से आयो, लेता से आयो कि देता से आयो, लोकतंत्र के प्रणेता से आयो, लायो कहां से धन स्याम?’ व्याख्याकार ने व्याख्या करी। पहले स्याम धन पाने की बात की गई थी अब यहां लाने की बात की जा रही है। तू किससे लाया? उस नेता से जिसने काली कमाई करी! उस अभिनेता से जिसने बरजोरी-करचोरी करी! लेता से आयो कि देता से आयो का मतलब है कि हवाला के ज़रिए स्विस कल्याणी में लाया गया। और बता सखी कि लोकतंत्र के किन प्रणेताओं से लाया गया?
—राग में सखी कौन ऐ रे?
—सखी सरकार है और कोर्ट सखी पूछ रही है। गायक गा रहा है। ’कोरट ने अरदास लगाई, सीवीसी चुप आरबीआई, बात पते की नहीं बताई, खायो कहां से धन स्याम?’ अब ये जो कोर्ट सखी है ये सरकार सखी से पूछ रही है कि हमारी अरदास पर सीबीसी और आरबीआई की चुप्पी क्यों? हम बार-बार पूछ रहे हैं कि उनका पता तो बताओ। पर तुम पते की बात ही नहीं करते। तो हे सखी खायो कहां से धन स्याम। इतना बड़ा उदर तू कहां से लाई कि पूरे श्याम धन को पचा गई। हे सखी ‘ना कोई कुर्की, ना कोई नालिश, ना कोई बंदिश, ना कोई जुंबिश, स्विस कल्याणी की ये बंदिश, गायो कहां से धन स्याम?’ पं. बौड़म सौरसिया जी ने इस बार गायकी पर भी सवाल उठाया है कि इतने धन के बावजूद न तो कोई कुड़की हुई, न कहीं किसी ने किसी को कोई घुड़की दी, न कोई नालिश हुई, बल्कि चेहरों पर पालिश हो गई, चमक गए चेहरे। न किसी पर कोई बंदिश है, न कोई हरकत या जुंबिश है। निःशब्द कैसे गायो? अंत में वे सारा रहस्य बताते हैं, सुनिए— ‘अंतर्यामी ये धन रब-सा, अविगत अंतर्लोक अजब सा, हम पर ये अन्याय गज़ब सा, ढायो कहां से धन स्याम, बता दे सखि, ढायो कहां से धन स्याम।’ अंतिम बंदिश में ही सार है चचा! व्याख्याकार ने बताया कि असल अन्याय तो उस आदमी पर है जिसका गोरा धन श्याम हो जाता है। वही अन्याय ढाता है, लेकिन ये श्याम धन अद्भुत अंतर्यामी विधाता है। बड़ा अजब अंतर्लोक है। अविगत गति कछु कहत न आवै, ज्यों गूंगौ मीठे फल कौ रस अंतर्गत ही पावै। गूंगे का गुड़ है चचा, वही जानता है जिसने चखा है। दूसरे क्या जानें धन स्याम की माया!
—भौत सई लल्ला। आगै बता।
—आगे क्या बताऊं! सपना ख़तम!

8 comments:

रजनीश तिवारी said...

'अंतर्यामी ये धन रब-सा, अविगत अंतर्लोक अजब सा, हम पर ये अन्याय गज़ब सा, ढायो कहां से धन स्याम, बता दे सखि, ढायो कहां से धन स्याम।’ राग स्विस-कल्याणी में ये बंदिश सुनकर/ पढ़कर भाव विभोर हो गया । धन्य है धन की महिमा।

सादर नमस्कार एवं शुभकामनाएँ

G.N.SHAW said...

sir laaj-bab swapn. jabab nahi. mere sapano ko bhi denkhe.aap ka swagat hai.pahali baar aap ka post net me mila hai. aap ko aur kulakshrest ji ko bahut dhanyabad.
जंगल राज ---ब्यंग.

Ravi Shankar said...

सर जी !

राग स्विस-कल्याणी तो खूब रही। बिना बन्दिश की लूट पर ऐसी बन्दिशें लाजवाब हैं। किसी दिन "राग राष्ट्रमंडलम" और "बंदिश-ए-2G स्पेक्ट्रम" की तान मिल जाये तो चम्पू की मौज हो जाये !

नमन !

Dr. Manish Kumar Mishra said...

आप को सूचित करते हुवे हर्ष हो रहा है क़ि आगामी शैक्षणिक वर्ष २०११-२०१२ के जनवरी माह में २०-२१ जनवरी (शुक्रवार -शनिवार ) को ''हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं '' इस विषय पर दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इस संगोष्ठी को संपोषित किया जा सके इस सन्दर्भ में औपचारिकतायें पूरी की जा रही हैं. के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजन की जिम्मेदारी ली गयी है. महाविद्यालय के प्रबन्धन समिति ने संभावित संगोष्ठी के पूरे खर्च को उठाने की जिम्मेदारी ली है. यदि किसी कारणवश कतिपय संस्थानों से आर्थिक मदद नहीं मिल पाई तो भी यह आयोजन महाविद्यालय अपने खर्च पर करेगा.

संगोष्ठी की तारीख भी निश्चित हो गई है (२०-२१ जनवरी २०१२ ) संगोष्ठी में अभी पूरे साल भर का समय है ,लेकिन आप लोगों को अभी से सूचित करने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है क़ि मैं संगोष्ठी के लिए आप लोगों से कुछ आलेख मंगा सकूं.
दरअसल संगोष्ठी के दिन उदघाटन समारोह में हिंदी ब्लागगिंग पर एक पुस्तक के लोकार्पण क़ी योजना भी है. आप लोगों द्वारा भेजे गए आलेखों को ही पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा . आप सभी से अनुरोध है क़ि आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें .
आप सभी के सहयोग क़ी आवश्यकता है . अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें


डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय
गांधारी विलेज , पडघा रोड
कल्याण -पश्चिम
pin.421301
महाराष्ट्र
mo-09324790726
manishmuntazir@gmail.com
http://www.onlinehindijournal.blogspot.com/ http://kmagrawalcollege.org/

Dr. Manish Kumar Mishra said...

आलेख लिखने के लिए उप विषय
हाल ही में जो पोस्ट मैंने प्रस्तावित ब्लागिंग संगोष्ठी के सन्दर्भ में लिखी थी ,उसी सम्बन्ध में कई लोगों ने आलेख लिखने के लिए उप विषय मांगे .मूल विषय है-''हिंदी ब्लागिंग: स्वरूप,व्याप्ति और संभावनाएं ''
आप इस मूल विषय से जुड़कर अपनी सुविधा के अनुसार उप विषय चुन सकते हैं
जैसे क़ि ----------------
१- हिंदी ब्लागिंग का इतिहास
२- हिंदी ब्लागिंग का प्रारंभिक स्वरूप
३- हिंदी ब्लागिंग और तकनीकी समस्याएँ
४-हिंदी ब्लागिंग और हिंदी साहित्य
५-हिंदी के प्रचार -प्रसार में हिंदी ब्लागिंग का योगदान
६-हिंदी अध्ययन -अध्यापन में ब्लागिंग क़ी उपयोगिता
७- हिंदी टंकण : समस्याएँ और निराकरण
८-हिंदी ब्लागिंग का अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य
९-हिंदी के साहित्यिक ब्लॉग
१०-विज्ञानं और प्रोद्योगिकी से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग
११- स्त्री विमर्श से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग
१२-आदिवासी विमर्श से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग
१३-दलित विमर्श से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग
१४- मीडिया और समाचारों से सम्बंधित हिंदी ब्लॉग
१५- हिंदी ब्लागिंग के माध्यम से धनोपार्जन
१६-हिंदी ब्लागिंग से जुड़ने के तरीके
१७-हिंदी ब्लागिंग का वर्तमान परिदृश्य
१८- हिंदी ब्लागिंग का भविष्य
१९-हिंदी के श्रेष्ठ ब्लागर
२०-हिंदी तर विषयों से हिंदी ब्लागिंग का सम्बन्ध
२१- विभिन्न साहित्यिक विधाओं से सम्बंधित हिंदी ब्लाग
२२- हिंदी ब्लागिंग में सहायक तकनीकें
२३- हिंदी ब्लागिंग और कॉपी राइट कानून
२४- हिंदी ब्लागिंग और आलोचना
२५-हिंदी ब्लागिंग और साइबर ला
२६-हिंदी ब्लागिंग और आचार संहिता का प्रश्न
२७-हिंदी ब्लागिंग के लिए निर्धारित मूल्यों क़ी आवश्यकता
२८-हिंदी और भारतीय भाषाओं में ब्लागिंग का तुलनात्मक अध्ययन
२९-अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी ब्लागिंग क़ी वर्तमान स्थिति
३०-हिंदी साहित्य और भाषा पर ब्लागिंग का प्रभाव
३१- हिंदी ब्लागिंग के माध्यम से रोजगार क़ी संभावनाएं
३२- हिंदी ब्लागिंग से सम्बंधित गजेट /स्वाफ्ट वयेर
३३- हिंदी ब्लाग्स पर उपलब्ध जानकारी कितनी विश्वसनीय ?
३४-हिंदी ब्लागिंग : एक प्रोद्योगिकी सापेक्ष विकास यात्रा
३५- डायरी विधा बनाम हिंदी ब्लागिंग
३६-हिंदी ब्लागिंग और व्यक्तिगत पत्रकारिता
३७-वेब पत्रकारिता में हिंदी ब्लागिंग का स्थान
३८- पत्रकारिता और ब्लागिंग का सम्बन्ध
३९- क्या ब्लागिंग को साहित्यिक विधा माना जा सकता है ?
४०-सामाजिक सरोकारों से जुड़े हिंदी ब्लाग
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Dr. Manish Kumar Mishra said...

आदरणीय अशोक जी,
सादर प्रणाम.
भाई दिनेश बावरा के माध्यम से आप को प्रस्तावित संगोष्ठी क़ी सूचना मिली होगी. मैं आप से मिलने दिल्ली आ रहा था, लेकिन दिनेश जी ने बताया क़ि आप साउथ किसी कार्यक्रम में जा रहे हैं.
गुरुवर हिंदी ब्लागिंग पर २०-२१ जनवरी २०१२ को प्रस्तावित संगोष्ठी के उदघाटन सत्र में आप पधारें यही विनम्र अनुरोध है . आप का ई मेल न होने कारण इसतरह संपर्क करना पड़ रहा है.
कृपया अपना मेल आईडी बताएं जिससे मैं आप को आमंत्रण पत्र भेज सकूं.
मनीष कुमार मिश्रा -०९३२४७९०७२६
manishmuntazir@gmail.com

Khare A said...

wah guru shresth ji
pranaam sabse pehle to
aur gayan padh kar to antraatman tirapt hui gayi!

bhot majo aayo guru ji

Unknown said...

Adarniya Ashok Ji

Meri har koshish mein aapka DD Bharti par " Chale Aao Chakradhar " Programme Dekhta Hu. 20.03.2011 ko aapki Mehman Kaviyatri Sushri Madhu Mohini Upadhyay Ji ke saath vartalap aur unke dwara sunai gai kavita ki complete recording kaha se mil sakti hai
Kripya marg darshan kare

Thanx & Regards

Ravi Maheshwari