—चौं रे चम्पू!पूरे साठ कौ है गयौ! सीनियर सिटीजन!! कैसौ लगि रह्यौ ऐ रे?
—चचा, सीनियर सिटीजन सुनकर उतना ही बुरा लग रहा है, जितना पैंतालीस की उम्र में किसी दो-तीन साल छोटे ने चाचा कह दिया था, तब लगा था। अन्तर इतना है कि तब मैं उस शख़्स पर उत्तेजित हो गया था, अब बुरा लगने के बावजूद मुस्कुरा रहा हूं। वैसे, पिता जैसा सम्मान देने वाले मेरे बहुत से विद्यार्थी रहे हैं, जिन्होंने बीस इक्कीस की उम्र में ही मुझे पिता का सा बोध करा दिया था। सन बहत्तर में जब सत्यवती कॉलेज में नौकरी लगी थी तब फकत इक्कीस का था। खुद को बड़ी उम्र का मानने में तब तो बिल्कुल बुरा नहीं लगता था। अच्छा लगता था चचा, बहुत अच्छा लगता था। एक हाथ में चॉक-डस्टर और दूसरे में हाजरी का रजिस्टर लिए जब बाहर निकलता था तो पिताजी के भी पिताजी जैसा महसूस करता था।
—जे का बात भई! अच्छौऊ लगै, बुरौऊ लगै, ठीक बता!
—थोड़ा कफ़्यूज़ सा हूं। माफ़ करना मैं बता नहीं सकता कि अच्छा लग रहा है या बुरा।
—लल्ला तू सठियाय गयौ ऐ! साठ कौ हैबे के बाद ऊ खुद कूं सीनियर सिटीजन नायं मान रह्यौ, तौ और का कही जाय, बता!
—तुम भी लठिया लो। तुम्हारी गठिया की दवाई अब नहीं लाऊंगा, बता दिया है, हां।
—देख, हमाई एक्स्पायरी डेट कब की निकरि चुकी ऐ, तौऊ जिंदगी के मजा लै रए ऐं।तेरे ताईं दबाई कौ काम करि रए ऐं कै नायं, बोल!सीनियर सिटीजन है चुकौ ऐ तौ मान जा!
—सीनियर सिटीजन कहलवाते ही आदमी दया का सा पात्र बन जाता है, जो मैं नहीं चाहता। एक-डेढ़ साल पहले मेरे एक सहयोगी ने मेरे लिए जब रेलवे का आरक्षण कराया तो संभवत:टिकिट में छूट पाने के लिए, उम्र साठ लिखा दी और मुझे सीनियर सिटीजन बना दिया। सच बताऊँ चचा बुरा नहीं लगा।लिखने से क्या है, हुआ थोड़े ही हूं!टीटी को बताया कि गलती से लिख गया है, डिफरेन्स ले लीजिए। वे भी मेरा फायदा कराने पर आमादा थे। मुस्कुराते हुए बोले अभी आता हूं और लौटे ही नहीं। अब जब सचमुच साठ का हो चुका हूं तो पूरे पैसे की टिकिट लेकर यात्रा करना चाहता हूं। रेलवे का पुराना बकाया भी है। पर यह ‘सीनियर सिटीजन’ संबोधन हज़म नहीं हो पा रहा।
—तू तौ सांचे ई सठियाय गयौ रे!
—चचा, मेरे मनोभावों को समझने की कोशिश तो करो!आगे के वर्षों में लोगों को ठीकठाक काम करता दिखाई दूंगा, तब शायद यह सोचकर अच्छा लगे कि ’सीनियर सिटीजन’ होने के बावजूद, जवानों से ज़्यादा काम कर रहा हूं। बुढ़ापा दरअसल, बुढ़ापा आने से पहले भी आ जाता है, अगर हम उसे न्यौता दे दें। काम करते रहें तो पास नहीं फटकता। जब पचास का हुआ था तब एक कविता लिखी थी। अब साठ का होने पर भी लिखी है।
—सुनाय दै!
—अख़बार में छप चुकी है, पढ़ लेना!
—नाराज चौं है रह्यौ ऐ, एकाध लाइन तौ सुनाय दै!
—कविता में कुछ ऐसा था कि साठ साल का इंसान ख़ूब वज़न ढो चुका होता है, थककर ख़ूब सो चुका होता है, काफ़ी मेहनत बो चुका होता है, पा चुका होता है खो चुका होता है, अकेले में ख़ूब रो चुका होता है, चुका हुआ नहीं होता, सब कुछ कर-चुका हो-चुका होता है। ठहाके लगाता मुस्कुराता है, ज़माने से मान-सम्मान पाता है, तब लगता है उसे कुछ नहीं आता है। शिकायतों को पीना जानता है, अब आकर जीना जानता है। जवान नहीं होता बच्चा होता है, सोच में कच्चा पर सच्चा होता है। ये झरना ख़ुद झरना नहीं चाहता, ऐसा-वैसा करके मरना नहीं चाहता। वह दूसरी कक्षा में प्रविष्ट होने वाला चन्द्रयान होता हैऔर नए सोच का अभियान होता है। बेल्ट में आगे तक छेद कराता है, ठीक से दाढ़ी नहीं बनाता है। नज़र सौ तरफ गड़ाई होती है, उसकी ख़ुद से ज़्यादा लड़ाई होती है। गुरूर मर जाता है, फिर भी अगर मगरूर होता है, तो बड़ी जल्दी चूर-चूर होता है। रज़ाई में यादें हरजाई सोने नहीं देतीं, सिटीजन को सीनियर होने नहीं देतीं।
—तू सच्चेई सठियाय गयौ रे!
Tuesday, February 15, 2011
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12 comments:
आपने सत्य कहा - बुढ़ापा दरअसल, बुढ़ापा आने से पहले भी आ जाता है, अगर हम उसे न्यौता दे दें। काम करते रहें तो पास नहीं फटकता। चचा लाख कहें पर लल्ला जी बिलकुल नहीं सठियाएँ हैं। आपको सादर प्रणाम एवं हार्दिक शुभकामनाएँ !
behtreen Guru shreshth !
pahile to sathape ki badhai kabule!
aur apni lekhni ki jawani yun hi sheela ki jawani ki tarha barkarar rakhe!
khoob kahi he guru ji!
सीनियर सिटीजन तो आदर का सम्बोधन है।
हा हा हा ! मजेदार पेशकश अशोक जी ।
हमारे यहाँ तो जब कोई ६० साल पर सरकारी नौकरी से सेवा निवृत होता है तो हम कहते हैं कि भाई सरकार की नौकरी बहुत कर ली । अब घर की सरकार की चाकरी करिए ।
सीनियर सिटिज़न के बडे फायदे हैं चचा :)
प्रो.अशोक चक्रधर जी, आप कॊ षष्टिपूर्ति के अवसर पर अनेकानेक बधाइयां। स्वस्थ और हास्यमय जीवन की लम्बी पारी खेलते रहिए॥
रज़ाई में यादें हरजाई सोने नहीं देतीं, सिटीजन को सीनियर होने नहीं देतीं।
is senior citizen ko mera pranam.....bahut khub...
janmdin ki badhayee.
मैं सीनीयर सिटिजन को वरिष्ठ नागरिक नहीं "विशिष्ठ नागरिक" मानता हूँ....
जो कहें चचा सो सचा.
कहीं पढ़ा था- बुढापे और जवानी में इतना फर्क होता है
उधर कश्ती पार होती है, इधर बड़ा गर्क होता है.
मेरे पड़ोस में एक 83 साल के रिटायर्ड डिप्टी कलेक्टर साब रहते हैं. क्या जोश . सुबह बड़ा सा डंडा लिए फूल तोड़ने निकल पड़ते हैं और डोलची में सारे फूल मंदिर में दे आते हैं. बागवानी का सारा काम अपने जिम्मे लिए हुए हैं. मैंने तो नब्बे साल के सीनियर मोस्ट सिटीज़न को साईकिल चलाते देखा है.
षष्ठिपूर्ति पर बधाई और शुभकामनाएँ।
वाह!!
—चचा, सीनियर सिटीजन सुनकर उतना ही बुरा लग रहा है, जितना पैंतालीस की उम्र में किसी दो-तीन साल छोटे ने चाचा कह दिया था, तब लगा था। अन्तर इतना है कि तब मैं उस शख़्स पर उत्तेजित हो गया था, अब बुरा लगने के बावजूद मुस्कुरा रहा हूं।
बहुत बढिया.
60 complete hone par Congrates
Avaneesh
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