Wednesday, February 23, 2011

तीन ईंट एक हांडी

चौं रे चम्पू! कल्ल मैंनैं इत्ती बार फोन मिलायौ, उठायौ चौं नायं?

चचा, मैंने बताया था न कि तिरुअनंतपुरम में उत्तरआधुनिकता और हिंदी साहित्यऔर मैसूर में हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में कारक चिह्नविषयों पर संगोष्ठियां हैं, नौ दिन के लिए दक्षिण की यात्रा पर जा रहा हूं।

तौ दक्खिन में का मोबाइल नायं बजै!

क्यों नहीं चचा, बजा होगा, ज़रूर बजा होगा, यही तो एक ऐसा वाद्य है जो पूरे भूमंडल पर बज रहा है। बालकवि बैरागी जी के गीत की एक पंक्ति है चौपाटी से गौहाटी तक और केरल से करगिल घाटी तक सारा देश हमारा। गोविंद व्यास ने उसमें अटक से कटक तक भी जोड़ा।कटक तो मालूम है, अटक का पता नहीं कि कहां है, बहरहाल, इतना फैला हुआ हमारा देश विविध संस्कृतियों का एक महान देश है। अलग भाषाएं, अलग वेश-भूषाएं, अलग आभूषण, अलग खानपान और अलग तीज-त्यौहार, पर कान पर वही एक नोकिया। हाथ में दूसरा मोबाइल रिलायंस का भी हो सकता है, शौकिया।

तौ उठायौ चौं नायं, कहां अटक गयौ?

--सुनाई देता तब तो उठाता। मलयाली भक्ति-संगीत अनहद नाद की तरह पूरे त्रिवेंद्रम में बज रहा था। डबल-आदमक़द स्पीकर-कॉलम्स हर पचास फिट पर खड़े थे। शीशे चढ़ी कार में भी लग रहा था जैसे अंदर फुल वॉल्यूम में म्यूज़िक-प्लेयर चला रखा हो। मैंने देखे थे आपके मिस्ड कॉल, रात में। फिर सोचा आप ठहरे जल्दी सोने वाले, अब क्यों मिलाऊं?

--छोड़! तेज म्यूजिक चौं बजि रह्यौ ओ रे?

हमारा सौभाग्य देखिए कि जब हम तिरुअनंतपुरम पहुंचे तब अट्टुकल पोंगल महोत्सवम की तैयारियां चल रही थीं। किसी एक मौके पर, किसी एक स्थान परमहिलाओं की ऐसी विराट उपस्थिति संसार भर में नहीं होती है। आपको यह जानकर शायद भरोसा हो जाएगा कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसका उल्लेख है। पूरे संसार में सर्वाधिक महिलाओं की उपस्थिति त्रिवेन्द्रम में ही होती है। लार्जैस्ट एनुअल गैदरिंग ऑफ़ वीमैन इन द वर्ल्ड! वन पॉइंट फाइव मिलिअन चचा, वन पॉइंट फाइव मिलिअन!

अरे हमें तौ हिन्दी में बता।

पन्द्रह लाख औरतें जमा हुई थीं। मलयाली कुम्भम महीने का यह महिला कुम्भ मेला था। कोई स्थान नहीं बचा चचा, पूरे त्रिवेन्द्रम में। सड़कों के फुटपाथ, सरकारी कार्यालयों के प्रांगण, पार्क, पगडंडियां जहां स्थान पाया वहां उन महिलाओं ने डेरा जमाया। उन्हें तो अट्टुकल भगवती अट्टुकलम्मा के लिए एक साथ पोंगल बनाकर चढ़ाना था।

एक संग कैसै बनायौ रे?

तीन ईंटों पर एक मिट्टी की या स्टील की हांडी रखकर लकड़ी के ईंधन से सुबह दस बजकर पैंतालीस मिनिट पर लाखों महिलाओं ने एक साथ पोंगल बनाया। परम्परा पता नहीं कब से चली आ रही है। आप तो जानते है कि केरल में महिला साक्षरता शत-प्रतिशत है, लेकिन एक अतिरिक्त अंतर्ज्ञान से दिपदिपाती महिलाओं से जब आपकी बहूरानी ने संवाद किया तो सभी ने बताया कि यह त्यौहार सर्व-सुख के लिए है। परिवार और समाज में शांति, समृद्धि और वैभव के लिए है। किसी एक के लिए नहीं, जैसे करवाचौथ का व्रत सिर्फ पति के लिए रख लिया। अहोई अष्टमी का व्रत सपूत के लिए रख लिया। अट्टुकल देवी से अपने आस-पास पर्यावास की शुद्धि और सुख-शांति के लिए कामना की जाती है। उत्तरआधुनिकतावादी सांस्कृतिक प्रदूषण अभी यहां आया नहीं है। लाखों मटकियां कुम्हारों ने बनाईं। ईंटें देसी भट्टों में पकीं। लकड़ियां थीं जंगल के उच्छिष्ठ की। केले के पत्ते पर पूजा की सामग्री, चावल, नारियल, तुलसी के पत्ते और पुष्प। कोई दिखावा नहीं। हर वर्ग की महिलाएं, ग़रीब से ग़रीब, अमीर से अमीर, वहीं फुटपाथ पर, तीन ईंटों पर अपनी हंडिया में पोंगल पकाते हुए। चेहरों पर एक ज्ञान-दीप्ति, कोई मेकअप, न कोई बॉलीवुडीय प्रभाव।एक साथ धुआं उठा, एक साथ हांडी खदकीं। सेवाभाव यहां की महिलाओं में कूट-कूट कर भरा हुआ है और चेहरे पर अंतर्दीप्ति और मानवता इनका सौन्दर्य है।

फोटू खैंचे?

हां खींचे। घर आओ, दिखाऊंगा। चचा, यह भी एक सत्य है कि केरल में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक हैं। बाहर के प्रांतों में पलायन भी होता है। और हम देखते ही हैं कि भारत में चौपाटी, गौहाटी, करगिल घाटी या अटक-कटक कहीं के भी अस्पताल में चले जाइए, वहां आपको सेवाभावी नर्सें मिलेंगी तो अधिकांश केरल की ही मिलेंगी।

चल चम्पू, बीमार परि जायं थोरे दिनां कूं।

11 comments:

vijai Rajbali Mathur said...

एक अच्छा वृतांत अच्छा सन्देश मिला.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘।कटक तो मालूम है, अटक का पता नहीं कि कहां है,...’

दक्षिण में देख लेते... अट्टकुलम्मा जो है :) हैदराबाद में भी डेरा रह,‘मिलाप’ से पता चला :)

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

बहुत बढ़िया...ये प्रयोजन किसी एक के लिए नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए है...ये हुई ना वो बात....सर्वे भवन्तु सुखिनः....अभी अभी ऊपर श्री विजय माथुर साहब ने पुनर्स्मरण कराया इसका

दीपक 'मशाल' said...

yatra poorn ho jaaye to yahan bhi aa jayen, 10 ko intezaar rahega.

G.N.SHAW said...

good..info..

Dr. Pawan Vijay said...

सुंदर प्रस्तुतीकरण
आपकी इश्टाईल का कहना ही क्या

Khare A said...

guru shresth ji ko pranaam, guru aap itni achhi achhi jankari uplabdh karve hain ki puchhomat, aur beech me chutkale bhi chhod dete hain, kul milakar paricharcha, jisme na lage koi kharcha, aur ban jabe aapki sundar si sukumari rachna!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

दो-चार बार केरल हम हो आए जी, फ़ेर एक लाख महिलाओं को हांडी पै पोंगल पकाते नहीं देखा।
अबकी बार यो ही देखने जाएगें।

Unknown said...

बढ़िया है, वैसे मै आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूँ. यह जानकार अच्छा लगा की आप ही ब्लोगिंग करते है

Ajitharry said...

chacha ka bataye ketna accha laga. magadh se hi keral dikha diye

Udan Tashtari said...

आनन्ददायी वृतांत..