कुर्सी दर्शक से हिली, थप्पड़ मारा एक, टीवी ने तकनीक से, थप्पड़ किए अनेक। थप्पड़ किए अनेक, तैश में थे गोविन्दा, राजनीति में खेल चल पड़ा निन्दा-निन्दा। चक्र सुदर्शन, अगर रोकनी मातमपुर्सी, क्षमा मांग ले, वरना हिल जाएगी कुर्सी।
गोविन्द-गोविन्द कर उठे,मार लिया मैदान टीवी की टीआरपी में,सांसद हुये बेजान. सांसद हुये बेजान,रजत शर्मा से की बात दे दी अपनी सफ़ाई,सोचा मैंने दे दी मात. गुरु चक्रधर,चेले ने मिलायी तुकबन्द सही तो वाह्-वाह्,नहीं तो झापड देना रसीद.
अभिनेता से नेता बनने के बावजूद गोविंदा ने जो करतूत किया और उसपर आपने जो सुदशॅन चक्र चलाया, उम्मीद है भविष्य में गोविंदा ऐसी गलती नहीं दुहराएंगे। बहुत अच्छी काव्य पंक्तियों के लिए साधुवाद।
गोविन्दा का नाम लो, बस दिमाग हिल जाय् थप्पड टीवी पर दिखे ,झट् कविता बन जाय् झट् कविता बन जाय, सुनाते फिरे चक्रधर तीन दिनों में पहुंच जायेगी कविता घर घर कहे कुंडली नया नवेला कवि अरविन्दा थप्पड तो चख लिया, गुरु अब भज गोविंदा http://bhaarateeyam.blogspot.com
("हिन्दी का भविष्य और भविष्य की हिन्दी" विषय पर जो गोष्ठी 19 जनवरी को हुई थी, वहां चक्रधर जी ने सुनाई थी, यह कुन्डली.उनके मुताबिक कुंडली जिस शब्द से शुरू होती है, उसी पर ख्त्म भी होती है )
इस चक्रधर के मस्तिष्क के ब्रह्म-लोक में एक हैं बौड़म जी। माफ करिए, बौड़म जी भी एक नहीं हैं, अनेक रूप हैं उनके। सब मिलकर चकल्लस करते हैं। कभी जीवन-जगत की समीक्षाई हो जाती है तो कभी कविताई हो जाती है। जीवंत चकल्लस, घर के बेलन से लेकर विश्व हिन्दी सम्मेलन तक, किसी के जीवन-मरण से लेकर उसके संस्मरण तक, कुछ न कुछ मिलेगा। कभी-कभी कुछ विदुषी नारियां अनाड़ी चक्रधर से सवाल करती हैं, उनके जवाब भी इस चकल्लस में मिल सकते हैं। यह चकल्लस आपको रस देगी, चाहें तो आप भी इसमें कूद पड़िए। लवस्कार!
7 comments:
क्या बात कही है अशोक जी, टीवी वालों ने तो वाकई एक थप्पड़ को इनफाइनाइट लूप में डाल दिया था। आपके चक्रों का जवाब नही
गोविन्द-गोविन्द कर उठे,मार लिया मैदान
टीवी की टीआरपी में,सांसद हुये बेजान.
सांसद हुये बेजान,रजत शर्मा से की बात
दे दी अपनी सफ़ाई,सोचा मैंने दे दी मात.
गुरु चक्रधर,चेले ने मिलायी तुकबन्द
सही तो वाह्-वाह्,नहीं तो झापड देना रसीद.
अभिनेता से नेता बनने के बावजूद गोविंदा ने जो करतूत किया और उसपर आपने जो सुदशॅन चक्र चलाया, उम्मीद है भविष्य में गोविंदा ऐसी गलती नहीं दुहराएंगे। बहुत अच्छी काव्य पंक्तियों के लिए साधुवाद।
लगता नहीं कि ये पंक्तियां उसी अशोक चक्रधर की हैं? चलताऊ तुकबंदी से ऐसा संदेह हुआ।
हिल जायेगी कुर्सी, बचा नही पायेगा पार्टनर
अभिनेता से नेता बना अब जायेगा वापस घर
जायेगा वापस घर पर आप कब जायेंगे
औ" आम मुद्दो पर कविता लायेंगे
समाज मे विराजे है जो विषधर
उनकी सुध कब लेगा अपना चक्रधर
उनकी सुध कब लेगा चक्रधर
गोविन्दा का नाम लो, बस दिमाग हिल जाय्
थप्पड टीवी पर दिखे ,झट् कविता बन जाय्
झट् कविता बन जाय, सुनाते फिरे चक्रधर
तीन दिनों में पहुंच जायेगी कविता घर घर
कहे कुंडली नया नवेला कवि अरविन्दा
थप्पड तो चख लिया, गुरु अब भज गोविंदा
http://bhaarateeyam.blogspot.com
("हिन्दी का भविष्य और भविष्य की हिन्दी" विषय पर जो गोष्ठी 19 जनवरी को हुई थी, वहां चक्रधर जी ने सुनाई थी, यह कुन्डली.उनके मुताबिक कुंडली जिस शब्द से शुरू होती है, उसी पर ख्त्म भी होती है )
अरे अशोकजी तहलका वाले आपकी रचनाओं को टीप रहे हैं। विश्वास नही हो तो नीचे लिंक पर जाएं
http://www.tehelkahindi.com/SthaayeeStambh/ChakraSudarshan/
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