Saturday, May 10, 2008

जायज़ नाराज़ी

चक्र सुदर्शन
जायज़ नाराज़ी
बाजी पल्टी कोर्ट में, लौटे वेणु गुपाल,
एम हुआ पूरा, उधर, एम्स बजे घड़ियाल।
एम्स बजे घड़ियाल, मरीज़ों की क्या चिन्ता,
अहंकार का युद्ध, कराहें कोइ न गिन्ता।
चक्र सुदर्शन, जायज़ है उनकी नाराज़ी,
क्यों होने दी, अस्पताल में आतिशबाज़ी?
-अशोक चक्रधर

9 comments:

Rajesh Roshan said...

सही कहा आपने. इस अंहकार की लड़ाई में मरीजो की कहा कोई सुनता है. चाहे ये पटाखे चलाएंगे या फ़िर हड़ताल कर देंगे, मरीज का मर्ज कोई नही देखेगा

अविनाश वाचस्पति said...

वे पटाखे चलायेंगे
जोर से
मरीज चिल्‍ला भी
न पायें
गौर से.

कल कहीं हड़ताल न हो जाए
आतिशबाजी पर हल्‍ला मचाने
के विरोध में
फिर कहेंगे आतिशबाजी चला लो चाहे
पर हड़ताल न करना
करते रहना पड़ताल
मरीज बजायेंगे खड़ताल
सिक्‍यूरिटी की कदमताल
ताल ताल तेताला.

राजीव रंजन प्रसाद said...

आपकी भाषा, व्यंग्य और कथ्य का कायल होते हुए इस प्रकरण पर द:ख भी जताना चाहता हूँ।

***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com

Udan Tashtari said...

करारा तीर है आपका भाई साहब!!! बधाई.

Abhishek Ojha said...

आपका तो कोई जवाब ही नहीं

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह-वाह

HARSHIT GUPTA said...

wah-wah ashok ji what poems you write always.

राजीव तनेजा said...

तीखा कटाक्ष....

ja jhad ke said...

ka kahi dada raur batiye aisane hola.
tani ekro dekhin jajhadke.blogspot.com