Tuesday, June 16, 2009

उस शहर का सूरज ज़रूर देखना

—चौं रे चम्‍पू! तू तौ ठीक ऐ न?
—मैं तो ठीक हूं चचा! पिछली गाड़ी में था। कविवर ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड़ सिंह गूजर जिस गाड़ी में थे वो हमसे पांच मिनिट आगे थी, लेकिन उन्हें वो गाड़ी हमसे बहुत दूर ले गई।
—भयौ का जे बता!


—विदिशा में वर्षों से वार्षिक बेतवा उत्सव होता आ रहा है। कई दिन तक बहुरंगी कार्यक्रम होते हैं, अंतिम दिन होता है कविसम्मेलन। तेरह कवि थे, तीन कवियों के लिए वह दिन अंतिम हो गया। रात में दस बजे शुरू हुआ कार्यक्रम सुबह पौने चार बजे समाप्त हुआ था। उसके बाद कवियों ने किया भोजन।
—जे कोई भोजन कौ टैम ऐ?
—यही तो विडम्बना है चचा। मंच के कवि प्रस्तुति-कलाकार होते हैं, परफौर्मिंग आर्टिस्ट! कोई विशेष मेक-अप नहीं करते। कई दिन से यात्राओं में हों तो उन्हीं कपडों से काम चला लेते हैं, पर चेहरे पर चमक बनी रहे इस नाते कार्यक्रम से पहले भोजन नहीं करते। भूखा रहने से चेहरे पर अलग तरह की चमक आ जाती है। आदमी भूखा हो तो आवाज़ कंठ से नहीं दिल से निकलती है। भूखा आदमी फिर देश के भूखे आदमी के बारे में ईमानदारी से बात करता है।


—आगे बोल!
—भोजन की पैक्ड प्लास्टिक थालियां रात में ही लाकर रखी होंगी। पूर्णिमा के चंद्रमा ने उन्हें सुबह तक शीतल कर दिया था। मौसम की गर्मी ने भी भोजन से छेड़छाड़ की होगी। आदित्य जी बोले— ‘दाल मत खाना, उतर गई है’। मैंने कहा— ‘पनीर मत खाना, चढ़ गया है’। वे बोले— ‘चलो दही खाते हैं’।


मैंने कहा— ‘खट्टी है’। वे बोले— ‘चलो, भोपाल पंहुच कर होटल में खाएंगे। वैसे ये गुलाबजामुन ठीक हैं’। मेरी गुलाबजामुन पहले ही नीरज पुरी ये कहते हुए खा चुके थे कि आपके साथ तो पहरेदारी के लिए बेटी आई है भाई साहब, आप तो खाएंगे नहीं। बीवी-बच्चे चंडीगढ़ में हैं। यहां कौन टोकेगा? कवियों में सद्भाव इतना है कि साला कल मरता हो तो आज मर जाए। ओम व्यास कहने लगे— ‘आज मंच पर मरने की बात कुछ ज़्यादा ही हो चुकी है, अब मत करो। अभी गुलाब जामुन खा लो कल जामुन पीस कर खा लेना’।


—मंच पै मरिबे की का बात भई रे?
—संचालन में ओम ने आनंद लिया था— ‘तेरह कवि हैं मेरे पास। एक से तेरहवीं तक का पूरा इंतज़ाम है (तालियां)। ये जो श्री ओम प्रकाश आदित्य बैठे हैं, ये कविसम्मेलन उद्योग के कुलाधिपति हैं। कवियों में सबसे बुजुर्ग हैं, हालांकि ये ख़ुद को बुजुर्ग मानते नहीं हैं (तालियां)। मित्रो, पैकिंग कैसी भी कर दी जाय, अगर पुराना सामान है तो पुराना ही निकलता है (तालियां)। आप और कवियों को सुनें न सुनें, पर इनको जीभर कर सुनियेगा, हम तो अगले साल भी आ जाएंगे (एक पॉज़ के बाद तालियां)’। आदित्य जी पीछे से ठहाका लगाते हुए बोले— ‘मारूंगा’ (तालियां)। ओम जारी रहे— ये वो नस्ल है मित्रो, जो ख़त्म होने जा रही है (तालियां)। उसका ये एक मात्र बीज सुरक्षित है (तालियां)। उसे और ज़्यादा सुरक्षित रखेंगी आपकी ज़ोरदार तालियां (ज़ोरदार तालियां)’। उसके बाद ओम ने नीरज पुरी, देवल आषीश, विनीत चौहान, सरिता शर्मा, पवन जैन,लाड़ सिंह गूजर, मदन मोहन समर,जॉनी बैरागी, संतोष शर्मा,प्रदीप चौबे, और मेरे लिए ज़ोरदार तालियां बजवाईं।


अपने लिए कहा— ‘मैं इन तेरह कवियों की परोसदारी करने आया हूं, मुझ पर दया आती हो तो मेरे लिए भी बजा दें (घनघोर तालियां)। पर तालियां न तो बीज को सुरक्षित पाईं और न कविसम्मेलन के दो और फलदार डालों को। ओम जीवन-संघर्ष कर रहे हैं। उनके उर्वर मस्तिष्क में इस समय अनेक प्लॉट्स की जगह अनेक क्लॉट्स हैं। ड्राइवर का बुरा हाल है। चचा, कविसम्मेलन के कवियों के लिए एक कहावत है कि जिस जगह जलवा दिखाओ, अगले दिन उस जगह का सूरज न देखो। अगली सुबह सारी तालियां थक कर सो जाती हैं। आते वक़्त कवियों को जो सूरज-भर सम्मान मिलता है वह लौटते वक़्त किरण-भर नहीं रह जाता। सुबह चार और पांच के बीच ड्राइवर को आती है झपकी। वह भी तालियां बजाने के बाद बासी भोजन करके आया होता है। मैं तो कवियों से कहूंगा कि तुम्हारी वाणी में बड़ा बल है कवियो! मंच पर मृत्यु का उपहास मत करो ! अगले दिन उस शहर का सूरज ज़रूर देखो ताकि मृत्यु आंखें फाड़-फाड़ कर अंधेरी सड़क पर तुम्हारा इंतज़ार न करे।

16 comments:

Unknown said...

hi ashok ji

this is nice blog


Anand
anand.shriwas@gmail.com

Unknown said...

bahut yaad aayegi adityaji ki.
main to aadityaji je baare mein aapke blog ka kabse intzaar kar raha tha.

unke sammaan mein har saal ek kavi sammelan hona chhahiye.

aadityaji aur baki sabhi ko lakhon shardhanjli.

Unknown said...

manch k sare kavi anek dinon tak dare dare rahenge

ye vo ghaav hain jo bahut dinon tak
hare rahenge

VINAMRA SHRADDHANJALI

Ajay Chandel said...

लय में जो सोता था वो जागता था छन्द में,
बड़ी छोटी सारी बातें कहता था छन्द में !
खिड़की पे बैठा हुआ चिड़ा-चिड़ी देखता था,
पंडित एक प्रकांड हुआ करता था छन्द में !
कहता था मस्त रहो हृदय से जवान से था जो,
रोज-रोज उगता है 'रवि'(आदित्य)कहाँ कवि व्रन्द में!

मसिजीवी said...

बहुत दर्दनाक है इन कवियों का जाना ! बहुत क्रूरता और नाटकीयता है नियति के इस खेल में ! मृत्यु की इस निर्मम लीला के आगे हम सब मात्र असहाय दर्शक ही तो हुए !

डॉ टी एस दराल said...

काव्य जगत में आदित्य जी अवम अन्य कवियों की क्षति अपूर्णीय है. इस समय समस्त कवि परिवार शोकाकुल है और श्री ओम व्यास की शीघ्र अति शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं.

Udan Tashtari said...

अति दुखद!! श्रृद्धांजलि दिवंगतों को!!

ओम व्यास जी की शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ये समाचार बहुत दुखद है ..दीवँगत कवियोँ को याद करते हुए, श्रध्धा सुमन अर्पित कर रही हूँ ....एक्सीडन्ट की वारदात से, दिल सहम गया ..
- लावण्या

पंकज सुबीर said...

बुजुर्ग जन अक्‍सर कोई बुरी बात कहते समय या मृत्‍यु की बात करते समय चपत लगा देते थे । कहते थे कि दिन भर में एक बार हमारी जबान पर सरस्‍वती बैठ जाती है और दिन भर में एक बार हमारी कही हुई बात सच हो जाती है । बुजुर्ग सच कहा करते थे । शायद उस दिन मंच पर वही क्षण था जब कवियों की जिह्वा वे मां शारदा बैठी थीं और जो कुछ कवि कह रहे थे उसे सच करने की स्‍वीकृति देती जा रहीं थीं । ओम जी जैसे भले और सज्‍जन व्‍यक्ति और एक बहुत ही प्‍यारे मित्र, अग्रज, के लिये मन ही मन दुआ मांगता रहता हूं । वे उस नगरी के हैं जहां पर कालों के काल महाकाल का राज है शायद महाकाल ही पिघल जायें और अपनी बगिया के इस सबसे सुरभित पुष्‍प को असमय मुरझाने से बचा लें । जो क्षति हो गई सो हो गई किन्‍तु अब आगे न होने पाये ये ही ईश्‍वर से प्रार्थना है । ओम जी के स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में कुछ विस्‍तार से जानकारी प्रदान करेंगें तो हम सब आभारी होंगें । चूंकि आप अपोलो हास्पिटल के डाक्‍टरों के सबसे जियादह संपर्क में हैं अत: ओम जी के बारे में आप ही ठीक ठीक बता सकते हैं ।

12sdsds said...

आदित्य जी भौत याद आयेंगे.. कवी परंपरा अब समाप्त होते जा रही है.. सचमुच ये प्रजाति विलुप्ति की और है..
आप युवा है .,, कुछ की जिए ताकि हास्य कवी केवल हसोड़ लाफ्टर चैलेन्ज वाले ना रह जाए.,, जीने हँसाने के पीछे कोई फ़साना नहीं होता है

प्रिया said...

Sir,
Bachpan se aapki t.v par dekhti aai hoon... aur kavi sammelano mein suna bhi.... Im very lucky that I got you in blogger's world. Thank You and thanks to Internet too. I've not yet read ur post but sure padoongi fursat mein ..... really happy to see u here

विवेक रस्तोगी said...

ओम भाई के स्वस्थ होने के लिये महाकाल से प्रार्थना है।

Kush Mehta said...

भाई साब , चरण स्पर्श आपके ब्लॉग ने उस निष्ठुर भोर का विस्तार से वर्णन पड़ा ह्रदय द्रवित हे क्या एसा भी होता हे उस करुनामय घटना ने जेसा सारा शरीर निचोड़ लिया हो केसे घटित हो जाता हे ऐसे आदरणीय ओमजी आदित्य को असंख्य बार सुना मुस्कराता चेहरा कहा लुप्त हो गया मीडिया से कसाब और तालिबान की न्यूज़ की ही उम्मीद की जा सकती हे इतने बड़े समाचारों को मिडिया घोलकर पी असंख्य श्रोताओ को इन तीन महाकवि के अब दुनिया में न होने का समाचार न मिल पाया ओमजी के बारे में आपकी लिखी लाइन उम्मीद की किरण जगा गई दो तिन रात नींद भाग गई कोसो दूर और फिर दर्द यह की विस्तार से समाचार नहीं ॐ व्यास जी मेरे बड़े भाई तुल्य, एक ही विद्यालय में बचपन में अध्ययन किया उनके छोटे भाई संजू और हम एक ही क्लास में पड़े संघर्ष को साधना से जीता और अब फिर संघर्ष कर रहे, भाईसाब समय मिले तो उनके बारे में विस्तार से लिखे संजू से करीब रोज बात हो पाती हे किन्तु मन का भय मालिक के विश्वाश पर पूर्णतः टिका हुवा हे आप तो दिल्ली में हे रोजाना व्यस्तता में समय निकाल कर जाते होंगे आप उनकी कुशलता के बारे में रोज लिखे आपका मेल आईडी मेरे पास नहीं मेरी मुलाकात आपकी उज्जैन यात्रा में हमेशा हुई पूज्य बड़े भाई साब जसवानी जी के साथ , मालिक रक्षा करेंगे और मेरे प्रिय ॐ जी मेरे शहर को नई पहचान देने वाले ॐ जी घर आएंगे फिर आपके साथ कविता का आनंद देने अब न करेंगे कोई मोंत की बात मंच पर जीवन की ही होगी बात अब उन रातो में हर उस सुबह तक जिसका सूरज उसी शहर में देख आगे की यात्रा की और रवाना होंगे

कुश मेहता, उज्जैन
kushmehta1@gmail.com

Syed Aijazuddin Shah said...

apne bahut hi accha sansmarran diya hai Ashok ji. yah sach hae ki dada ki jagha koi nahi lae sakta hae. unki kami hamsha rahagi.

Dr.Kumar Vishvas said...

बेतवा महोत्सव की भीषण सड़क दुर्घटना में घयल होने के बाद, एक महीने से मौत से लडाई लड़ रहा , हिंदी हास्य कविता का दुलारा कवि ओम व्यास ओम आज चल बसा। ओम मेरे बेहद करीबी दोस्तों में था। हजारों राते साथ गुजारीं हमने ...बहुत बदमाशियाँ कीं... उसे मेरी कुछ बातें बहुत रिझाती थीं और उसकी कुछ चौबीस कैरेट अदाओं पर मैं फ़िदा था... कुछ वक़्त अलगाव भी रहा.. पर उसमें भी घरेलू यारी बनी रही.... अब भी ९ जून से लगभग रोज मैं उसे आईसीयू में जगाने के लिए झिड़क कर आता था ...वो जमीं फोड़कर पानी पीने वाला अद्‍भुत कौतुकी था ..पता नहीं इस सत्र में और आगे उसकी याद कहाँ कहाँ रुलाएगी ...भाभी ,पप्पू [उसका भाई ], भोलू और आयुष [उसे बेटे ] दीदी सबको ईश्वर शक्ति दे ...उस माँ को क्या कहूँ जिसकी कविता सुनाता-सुनाता वो मसखरा हर रात बिग बी से लेकर कुली तक सबकी आखों से नमी चुराकर ले जाता था। स्वर्ग में ठहाकों का माहौल बना रहा होगा ..चश्मे से किसी अप्सरा को घूर कर।
- डॉ. कुमार विश्वास (कवि,गाजियाबाद)

Aman Kumar Cholkar | Kumar 'Aazad' | said...

such a nice tribute to those poets
who has gone to another world............
whatever you wrote is ameazing and heart teaching.
they will alive in our heart forever.

from :
अमन कुमार चोलकर