कम्प्यूटर से हिन्दी वैश्विक होगी
कम्प्यूटर के जरिए हिन्दी एक वैश्विक भाषा का रूप ले सकेगी और संसार की महत्वपूर्ण भाषाओं के समक्ष सर उठा कर खड़ी हो सकेगी'। यह निष्कर्ष 24 फरवरी 2010 को हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित संगोष्ठी 'कम्प्यूटर की डगर पर हिन्दी' से निकल कर सामने आए।
कार्यक्रम के आरम्भ में 'पावर प्वाईंट' प्रस्तुति के साथ प्रो. अशोक चक्रधर ने कम्प्यूटर और उसमें हिन्दी के प्रयोग का इतिहास प्रस्तुत किया। वर्तमान में कम्प्यूटरों में हिन्दी में अनुवाद, शब्द कोश, बोलकर लिखने की सुविधा की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अब कम्प्यूटर में हिन्दी के प्रयोग को लेकर शंकालू' न होकर 'जिज्ञासू' होने की जरूरत है।
इस संगोष्ठी में हिन्दी कम्प्यूटिंग से जुड़े सभी महत्वपूर्ण लोग प्रो. अशोक चक्रधर, विजय कुमार मल्होत्रा, डॉ. बालेन्दु दाधीच, आलोक पुराणिक, मीता लाल उपस्थित थे। अध्यक्षता डॉ. विमलेश कान्ति वर्मा ने की।
प्रसिद्ध भाषाविद् अरविन्द कुमार की पुत्री मीता लाल ने उनके द्वारा तैयार किए जा रहे साफ्टवेयर 'अरविन्द लैक्सिकन' की प्रस्तुति दी जिसमें हिन्दी के छह लाख से ज्यादा शब्द हैं और जो अंग्रेजी-हिन्दी-रोमन तीनों कमाण्ड में काम करता है। इसके सहारे हम केवल अर्थ ही नहीं उनके वैश्विक अर्थ, अंर्तसांस्कृतिक संदर्भ, समानार्थी और विलोम शब्द भी ढूंढ सकेंगे। यह 'एन्साइक्लोपिडिया' का भी काम करेगा।
हिन्दी अकादमी के सचिव प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव 'परिचय दास' ने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि कम्प्यूटर तकनीक के जरिए हम हिन्दी को भविष्य की भाषा बना सकते हैं। उन्होंने विश्वास दिलाते हुए कहा कि अकादमी 'यूनिकोड' के इस्तेमाल व अन्य सुझावों को पूरा करने की कोशिश करेगी। प्रो. श्रीवास्तव ने यह सूचना भी दी कि माइक्रोसाफ्ट के उत्पादों का सर्वाधिक उपयोग करने तथा हिंदी कम्प्यूटिंग के विकास हेतु उल्लेखनीय शोध-कार्यों के लिए प्रो. अशोक चक्रधर को पिछले तीन वर्षों से लगातार माइक्रोसाफ्ट का 'मोस्ट वैल्यूएबल प्रोफेशनल अवार्ड' मिल रहा है। ज्ञात हो कि इस वर्ष भी प्रो. अशोक चक्रधर, श्री विजय कुमार मल्होत्रा और श्री बालेन्दु दाधीच को मिला है
अजय कुमार शर्मा और महेश्वर
4 comments:
विशेष जानकारी के लिए साभार धन्यवाद्
जानकारी के लिए आभार।
इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिये धन्यवाद
सचमुच कम्प्यूटर के जरिये हिन्दी के क्रान्तिकारी प्रसार का सुअवसर आया हुआ है। इस अवसर का भरपूर लाभ मिले इसके लिये हिन्दी के भाँति-भाँति के कम्यूटिंग औजारों का विकास करना पड़ेगा और उन्हें करोड़ों लोगों तक पहुँचाना पड़ेगा। इंटरनेट के रूप में सहकार (कोलैबोरेशन) का जबरजस्त लाभ उठाकर हिन्दी में ज्ञान-विज्ञान (कन्टेन्ट) का पहाड़ खड़ा किया जा सकता है। इन सबके लिये गहराई से विचार होना चाहिये और कम्प्यूटर पाठ्यक्रम बनाने वालों को इस बात के लिये राजी किया जाय कि हर स्तर पर भारतीय भाषा कम्प्यूटिंग का समुचित पुट हो।
विशेष रूप सेध्यान रखने की जरूरत है कि निजी सॉफ्टवेयरों की अपेक्षा मुक्तस्रोत (ओपेनसोर्स) सॉफ्टवेयरों को बढ़ावा देने की नीति को बढ़ावा दिया जाय। भारत में इंजीनियरिंग कालेजों के प्रतिभाशाली छात्रों को उच्च कोटि के अनुवादक प्रोग्राम, आप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन प्रोग्राम, टेक्स्ट से वाक और वाक से टेक्स्ट प्रोग्राम आदि बनाने के लिये शोधवृत्ति देकर अपनी प्रतिभा दिखाने की चुनौती दी जाय।
Post a Comment