Wednesday, June 02, 2010

कठिन अवसरों में कूल

—चौं रे चम्पू! खबर पढी ऐ कै एयर इंडिया कौ एक जहाज पांच हज्जार फीट ताईं गोता खाय गयौ? हवाई जहाजन के बारे में जे कैसी-कैसी खबर आय रई ऐं रे?
—चचा, सारथी चाहे बैलगाड़ी का हो चाहे हवाई जहाज का, अपने वाहन पर ध्यान नहीं देगा, सो जाएगा या कहीं खो जाएगा तो कुछ भी हो जाएगा।
—सो बात गल्त। बैलगाड़ी कौ गाड़ीवान सो ऊ जाय तौ बैल घर पहुंचाय दिंगे।
—कौन से घर चचा? मुझे बचपन का एक सच्चा किस्सा याद आ रहा है। मेरे मामा के एक दोस्त मामा की बैलगाड़ी से मामा की ससुराल गए। अपनी किसी हरकत के कारण पिट कर लौट रहे थे, हड्डियां टूटी हुई थीं, मुंह सूजा हुआ था, किसी तरह बैलों को दौड़ाया और सो गए। मामा के बैलों की मामा की ससुराल में अच्छी ख़ातिर हुई थी। बढ़िया दाना-पानी मिला था। उन बैलों ने मामा के दोस्त को वापस वहीं पहुंचा दिया। बैलों की और मामा के दोस्त की दोबारा से अच्छी ख़ातिरदारी हुई।
—तेरे सच्चे किस्सा सच्चेई मजेदार होंय। पर तू बैलगाड़ी की नायं, जहाजन की बता।
—एयर इंडिया एक्सप्रेस दो सौ बारह में एक सौ बारह यात्री और चालक दल के छ्ह सदस्य सवार थे। पायलट स्वचालित प्रणाली के भरोसे लघुशंका को चला गया। विमान काफी नीचाई तक गोता खा गया। अगर दीर्घशंका को बैठ जाता तो इसमें शंका नहीं कि एक सौ अठारह लोग जीवन से उठ जाते। और भी कई घटनाएं हो गई इस दौरान। दिल्ली से श्रीनगर वाली फ्लाइट के पहियों में भी कुछ ख़राबी आ गई थी। मुश्किल से दोबारा लैण्ड हुआ। अभी दो-तीन दिन पहले दो हवाई जहाज आमने-सामने की टक्कर से बच गए। कई बार वीआईपी मूवमेंट के कारण जहाजों का ईंधन खत्म हो जाता है और पायलेट को किसी और हवाई अड्डे पर विमान उतारना पड़ जाता है। देवेन्द्र जी बता रहे थे।
—कौन से देवेन्द्र जी?
—बताया तो था पिछली बार! जो मुझे बीस साल पहले मिले थे! उस जहाज में, जिसके पहिए नहीं खुले थे। देवेन्द्र जी ने चेन्नई-हैदराबाद आईसी चार सौ चालीस के बारे में बताया कि ईंधन की कमी के कारण कैप्टन भल्ला को खेत में विमान उतारना पड़ा था। बैंगलोर जाते वक़्त देवेन्द्र जी के साथ पूर्णिमा जी से भी मुलाकात हुई। उन्होंने वीरता से भरी हुई अपनी अनुभव गाथा सुनाई।
—पूर्णिमा जी कौन हैं?
—पूर्णिमा जी एक वरिष्ठ विमान परिचारिका हैं। उन्होंने बताया कि वे टीयू एक सौ चउवन रूसी विमान में हैदराबाद से दिल्ली आ रही थीं। फ्लाइट का पायलट भी रूसी था। फॉग के कारण विजिबिलिटी ज़ीरो थी। रूसी को कुछ दिखाई नहीं दिया लेकिन उत्साह में आकर विमान को लैंड कर दिया। एक पहिया कच्चे में, एक पक्के में। डगमग डगमग मंडराता हुआ, एक पंख तुड़वाता हुआ हवाई जहाज एकदम उल्टा हो गया। अब सारी सीट ऊपर, यात्री बेल्ट से बंधे हुए। कुछ टपक गए, कुछ लटके रहे। मरा कोई नहीं, लेकिन पूर्णिमा जी ने जो काम कर दिखाया वह भी ग़ज़ब था। उन्होंने अनेक यात्रियों को सीट-बेल्ट खोल कर नीचे उतारा। जो यात्री अपने वज़न के कारण कुर्सी सहित नीचे आ गए थे, उन्हें खड़ा किया। विमान से अंतिम यात्री के बाहर निकल जाने तक पूर्णिमा जी सबकी मदद करती रहीं। विमान में आग लग चुकी थी, लेकिन उन्होंने मानव सेवा से आगे अपनी जान की परवाह नहीं की। इस साहसिक कारनामे के लिए उनको ‘नीरजा भनोट पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। नीरजा भनोट का नाम तो आपने सुना होगा? वह भी एक एयरहोस्टेस थीं, जिन्होंने करांची हवाई अड्डे पर आतंकवादियों को रोकने के लिए सीने पर गोली खाई और यात्रियों को बचाया। तो चचा उस दिन एक साथ दो विभूतियों के दर्शन हुए। मैंने दोनों से उनका अता-पता लिया। देवेन्द्र जी से तो फोन पर बातें होती रहती हैं आजकल। पूर्णिमा जी भी दिव्य हैं। मैंने उनसे ई-मेल आईडी पूछा तो उन्होंने बताया— पूर्णिमा कूल एट द रेट ऑफ पता नहीं क्या था, याहू, रेडिफ, जीमेल या कुछ और, लिखा हुआ है मेरे पास। चचा, वे लोग प्रणम्य होते हैं जो कठिन अवसरों में कूल रहते हैं। दुर्घटना की संभावना में और दुर्घटना के बाद कूल रहना जरूरी है।
—चल ई-मेल करै तौ हमारी ऊ राम-राम लिख दीजियो।
—ज़रूर चचा।

8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बात तो सही है की कठिन अवसरों पर कूल रहना चाहिए....पर जब ज़िंदगी पर ही फुल स्टाप लग जाये तब काहे का कूल ??????

बढ़िया व्यंग....वैसे आपके लेख पर टिप्पणी करना भी गर्व की बात है

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

कूल और करारा दोनो मजा मिल गया जी...। बहुत-बहुत धन्यवाद। थोड़ा रेग्यूलर लिखते रहिए इस पन्ने पर भी।

Sumit Pratap Singh said...

यदि पूर्णिमा जी की भांति हर मुसीबतों का सामना कूल हो कर किया जाये तो हर मुश्किल का समाधान निश्चित है...

Ashok Chakradhar said...

धन्यवाद संगीता, सिद्धार्थ और सुमित धन्यवाद

Manas Khatri said...

बहुत खूब,
पहले तो पूर्णिमा जी का योगदान,
और बाद में हमारे चक्रधर जी की जुबान.

मौका मिलेगा तो कभी अपने विमान की landing इधर भी कीजिये गा-
www.manaskhatri.wordpress.com

Harshkant tripathi"Pawan" said...

मैंने उनसे ई-मेल आईडी पूछा तो उन्होंने बताया— पूर्णिमा कूल एट द रेट ऑफ पता नहीं क्या था, याहू, रेडिफ, जीमेल या कुछ और, लिखा हुआ है मेरे पास. bahutt khub achha laga padhkar............

kuldeep said...

hello Sir,
bahut accha vayng likha hai.
mai kuldeep sharma Agra se aapko bahut bahut badhai deta hoon

सुरेश यादव said...

चक्रधर जी ,आप के व्यंग्य तो धारदार होते ही हैं यहाँ भी आप ने इस धार को बनाये रखा है.ब्रिज भाषा में लिखकर आप इस धार को गहरा देते हैं और ब्रिज भाषा का परचम फहरा देते हैं.हार्दिक बधाई.