Wednesday, June 09, 2010

धन फॉर रन एंड रन फॉर फ़न


—चौं रे चम्पू! का हाल ऐं रे तेरे?
—फिट, एकदम फिट हैं चचा।
—चौं रे, जे फिट की परिभासा का ऐ? कोई आदमी फिट कैसै मानौ जायगौ?
—अगर उसकी जरूरतें पूरी हो रही हैं, वह मस्त है, तो फिट है।
—जरूरत का ऐं इंसान की? वोई रोटी, कपड़ा और मकान।?
—लेकिन पूछिए कि रोटी को किस चीज़ की ज़रूरत है। पुराना ज़माना होता तो कहते— नून, तेल, लकड़ी। अब खाते हैं पित्जा और सलाद में खीरा-ककड़ी। कपड़े के लिए भूल गए हम मार्कीन और लट्ठा। अब सूत न कपास, लेकिन कम्पनियों में लट्ठमलट्ठा। मकान के लिए चाहिए न ईंट, न गारा। बस लोन, एक तेरा सहारा। चचा, अब ज़माना बदल गया है हमारा। कैसे भी करके अगर ये तीनों ज़रूरतें हासिल कर लीं तो ज़िन्दगी की वैतरणी पार, लेकिन नाव में लदा हुआ है तनाव। शहरी मध्य वर्ग के लिए इस समय रोटी, कपड़ा और मकान बुनियादी जरूरत नहीं रह गई हैं।
—फिर का ऐं भैया?
—अब ज़रूरत है फिटनैस की। मध्य वर्ग का शहरी फिट रहना चाहता है।
—सब टीवी सनीमा कौ असर ऐ।
—सही फ़रमाया चचा! आजकल के हीरो और हीरोइन ख़ुद को फिट रखते हैं। अभिनय कौशल के साथ फिटनैस भी चाहिए। अनंत अभिनय क्षमता के बावजूद आज मीनाकुमारी, आशा पारेख नहीं चल पाएंगी। करीना-कैटरीना चाहिए जो फिगर दिखाती हैं। आप बताइए, किसी ने देवानंद, दिलीप कुमार, राज कपूर के भुजदंड देखे? पहले फिटनैस सौंदर्य का पैमाना नहीं होती थी। अब आमिर, शाहरुख, सलमान खान अपनी बनियान उतारकर फिटनैस दिखाते हैं। आज का युवा इन जैसा ही बनना चाहता है। फिगर-चेतना के बारे में फिगर्स तो मेरे पास नहीं हैं, लेकिन आज युवा मन की ज़रूरतें हैं— वेट का कंट्रोलीकरण, एनर्जी-संचय और स्टेमिना-वर्धन। पहले ज्यादा खाओ फिर चर्बी कम करने के लिए खड़ी ट्रेड मिल पर दौड़ लगाओ। बाज़ार में फिटनैस के लिए विटामिन, टॉनिक और स्वास्थ्यवर्द्धक औषधियों का बोलबाला है। बचपन में आरोग्यधाम जैसी इक्का-दुक्का स्वास्थ्य संबंधी पत्रिकाएं देखने में आती थीं। अब आपको योगा, बॉडी एंड सोल, हैल्थ, मसल एण्ड फिटनेस, स्टे फिट, मैन्स हैल्थ, प्रीवेन्शन…. सैकड़ों मैगज़ीन मिल जाएंगी।
—सब अंग्रेजी में!
—मध्यवर्ग अब एक नव-अंग्रेज़ी समाज है। इस समाज में अच्छा दिखने की ललक बड़ी तेजी से बढ़ रही है। सास-बहू के सीरियलों को देखने के बाद हर समय सजे-धजे रहने की कामनाएं बलवती हो रही हैं। सासें चाहती हैं कि बहुएं किचिन-सुन्दरी बनी रहें और वे ज़्यादा कंटान और चकाचक फिट-टिचिन सुन्दरी बनी रहें। एक सास बहू को ताना मारते हुए कह रही थी जब से जिम जाने लगी हूं, तेरे पापा जी की नज़र तो मुझसे हटती ही नहीं है। बहू ने लाड़ से कहा और आपका बेटा भी तो एकटक निहारता ही रहता है मुझे, जबसे मैंने जिम ज्वॉइन किया है।
—तौ आजकल सास-बहू दोनों मिल कै जिम जायं का?
—हां, एक साथ मिल कर जीमेंगी नहीं, पर जिम जरूर जाएंगी। पहले स्वास्थ्य-सजग सीमित लोग ही सुबह-शाम टहलने जाते थे, लेकिन अब जिधर देखिए पार्कों , जिमों और ब्यूटी-पार्लरों की बहार है। बहुमुखी आनन्ददायी स्वास्थ्य गतिविधियां बढ़ गई हैं। नौजवान पीढ़ी में खेल, नृत्य, एरोबिक्स, दौड़ना, साइकिल चलाना, टेनिस खेलना और जिम जाना सामाजिक प्रतिष्ठा की बात है। बच्चे पहले सिनेमा की टिकट के लिए पैसे मांगते थे, अब जिम के लिए मांगते हैं। मां-बाप पहले खुश थे कि सिनेमा की टिकट के पैसे कम देने पड़ते थे, जिम के लिए चाहिए हज़ारों में।
—अब लल्ला, पैसा आवैगौ तौ खर्च ऊ होयगौ।
—हां, इसीलिए तो दनादन खुल रहे हैं जिम। अब छोटे-छोटे शहरों में भी ईवैन्ट मैनेजमेंट के लोग मैराथन दौड़ कराते हैं। मिलता है धन फॉर रन! लेकिन कहते हैं— रन फॉर फ़न। दौड़ो!! फिटनेस विद फन। अब व्यक्ति खेल के मैदान में सिर्फ दर्शक बनकर नहीं जीना चाहता, वह अपने लिए मैदान तलाश करता है। नई कॉलोनियों के विज्ञापनों में बताया जाता है कि हमारी सोसायटी में जिम है, स्विमिंग पूल है, गोल्फ है। ओलम्पिक साइज़ की सारी सुविधाएं हैं। फिर भी दुविधा! दुविधा कि इस सबके बावजूद तनाव।
—तौ तनाव का इलाज का ऐ?
—चचा मेरा दोस्त अनिल सीतापुरिया बोला— तनाव न हों तो ज़िन्दगी बोरियत से भर जाए और खुश रहने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है, इसलिए फिट रहो।
—ठीक है लल्ला।

7 comments:

honesty project democracy said...

बहुत ही उम्दा प्रस्तुती,सब भ्रष्टाचार और दो नंबर के पैसे का असर है जिसके पास ये दोनों चीज नहीं है
वो इन्सान इन चीजों से बेअसर है ,
और असल में सच्चा इन्सान वही है ,
ये शाहरुख़ व करीना उनके सामने कुछ भी नहीं है |

Rajesh Kumar 'Nachiketa' said...

"साथ में जीमेंगी नहीं मगर जिम साथ जायेंगी". अच्छा लगा...जरूरत बुनियादी चीजो पर सोचने की है.

शिवम् मिश्रा said...

बढ़िया आलेख आभार !



एक नज़र इधर भी :- http://burabhala.blogspot.com/2010/06/blog-post_10.html

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

आदरणीय अशोक जी, आज के समाज खासकर युवाओं की बदलती जा रही मानसिकता पर अच्छा एवम प्रभावशाली व्यन्ग्य। हार्दिक शुभकामनायें।

Sumit Pratap Singh said...

गुरु जी! चलो आधुनिक फ़िल्मी सितारों ने कुछ तो अच्छा सिखाया फिर चाहे वो अपने को चुस्त-दुरुस्त रखने भावना ही सही...इनके लिए उन्हें धन्यवाद तो देना ही चाहिए...

MANU said...

aap jabardast ho ashok jee

MANU said...

aap jabardast ho ashok jee