Tuesday, June 15, 2010

दो कर छोड़ कर दिखाओ सौ कर



-- चौं रे चम्पू! आस्ट्रेलिया पहौंच कै ना तौ तैनैं फोन मिलायौ और ना ई मेरौ फोन उठायौ, का भयौ?
—माफ करना चचा, आपका फोन मैं शोर-शराबे में सुन नहीं पाया। उस वक्त मैं सिडनी में फुटबाल का मैच देख रहा था और बज रहे थे सुबह के तीन। मैच साउथ अफ्रीका के डरबन शहर में चल रहा था और फीफा का बुखार यहां दिखाई दे रहा था। ये मैच होना था जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया के बीच, इसलिए भी सिडनी में इतने तड़के इतनी रौनक थी।
—टीवी पै ई तौ देखते हुंगे।
—हां टीवी का प्रसारण ही देखते हैं, पर घर में बैठ कर देखने में क्या मज़ा! रैस्टोरेंटों और पबों में हल्ला-गुल्ला करते हुए देखते हैं। जैसे दर्शक-दीर्घा में बैठे हों। डार्लिंग हार्बर पर ’सिडनी इंटरनेशनल फीफा फैन फेस्ट’ ने समुद्र के पानी में चार जम्बो स्क्रीन लगाए और तट पर बनी सीढ़ियों पर बैठ कर हज़ारों लोगों ने ठंड में कुड़कुड़ाते हुए मैच देखा।
—सुबह के तीन बजे?
—हां चचा, पर हम वहां नहीं गए थे। न्यू टाउन में घर के पास ही एनमोर थिएटर है। सत्तर-अस्सी साल पुराना। उसका मालिक फुटबॉल प्रेमी है। बड़े परदे पर प्रोजेक्शन से खेल दिखाता है। पूरा वातावरण मैदान जैसा ही बना देता है। खेल शुरू होने से पहले, मैं तो वहां चलते हुए दूसरे खेल देख रहा था।
—दूसरे कैसे खेल लल्ला?
—हर दरवाज़े से उल्लास का शोर अंदर आ रहा था। कुछ लड़के और लड़कियां ऑस्ट्रेलिया की टीम के कपड़े पहनकर, हॉल में बजते सगीत पर थिरकते हुए मगन थे, लेकिन कोई किसी के आनन्द की परिधि में घुसने की चेष्टा नहीं कर रहा था। धीरे-धीरे हॉल भरने लगा। खेल शुरू होने से पहले एक उद्घोषक ऑस्ट्रेलिया का झण्डा लिए हुए निकला तो दूसरा जोड़ा जर्मनी का झण्डा दिखाता हुआ निकल गया। हमारे यहां क्या कोई ऐसा कर सकता है कि किसी दूसरे का झण्डा लेकर क्रिकेट के मैदान में निकल जाए?
—आस्ट्रेलिया खेल-प्रेमी देस ऐ!
—इस खेल के प्रेमी पूरी दुनिया में हैं, लेकिन हम हतभागी हैं। फुटबॉल के वर्ल्ड कप में कभी पहुंच पाते हैं भला? क्रिकेट के आगे किसी और खेल को तरजीह ही नहीं देते। आज पूरी दुनिया का खेल है फुटबाल जिसे सौकर भी कहते हैं। अब पूछो ’सौकर’ इसका नाम क्यों पड़ा! मेरे दिमाग में एक बात आ रही है।
—बता! अपने दिमाग की बात जरूर बता।
—देखो चचा! इंसान की सारी क्षमताओं का केन्द्र उसके दो हाथ होते हैं न! एंगिल्स ने भी कहा कि बन्दर से आदमी बनने की प्रक्रिया में हाथों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हाथों के कारण ही दिमाग विकसित हुआ और हाथों के जरिए ही उसकी सारी प्रगति हुई। ये खेल इंसान की उस केन्द्रीय शक्ति को बाधित कर देता है। यानी हाथों की गतिविधि को न्यूनतम कर देता है। दो कर छोड़ कर पूरे शरीर में लगे सौ कर इस्तेमाल करो। पैर जिनसे सिर्फ चलने का काम लिया जाता है उनसे सर्वाधिक काम करके दिखाओ।
—आगे बता।
—खेल शुरू होने से पहले सट्टे के रेट स्क्रीन पर आ रहे थे। जर्मनी पर दाव लगाओगे तो एक का डेढ़ मिलेगा और ऑस्ट्रेलिया पर लगाओगे तो एक के साढ़े पांच मिलेंगे। ऑस्ट्रेलियाई टीम की जीत की संभावना सटोरियों ने पहले ही समाप्त कर दी थी। जुआ यहां लीगल है चचा! सट्टा सरेआम होता है, पबों पर, अलग-अलग बूथों पर, ख़ास खिड़कियों पर, आप कहीं भी जुआ खेल सकते हैं। अमेरिका में जुआ बैन है, लेकिन इंटरनेट के ज़रिए वहां के लोग ऑस्ट्रेलिया में दाव लगाते हैं। ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने सोच-समझ कर निर्णय लिया है कि दबे-ढके आर्थिक अपराधों से तो अच्छा है कि उन्हें कानूनी बना कर होने दो और सरकारी खजाना बढ़ाओ। सरकार जानती हैं कि जुआ लीगल करने से जुआ बढ़ेगा नहीं, घटेगा। क्योंकि व्यक्ति अपनी सामाजिकता, अपने सामाजिक सरोकारों और अपनी हैसियत के हिसाब से खेलेगा। कुछ लोग कंगाल हो भी जाएं तो थोड़ा सा बेरोज़गारी भत्ता देने से काम चल जाएगा। घाटा नही है। भारत में क्रिकेट पर अरबों रूपए का सट्टा लगता है लेकिन सब काले धन में तब्दील हो जाता है। अपने देश में सौ तरह के कर लगा लो, तब भी कानून टूटेंगे।
—वाह रे सौकर और सौ कर और सौ कर।

9 comments:

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

FIR AAYA ASHOK DADDA KA DUNIYA GHUMANE WALA LEKH...FIR GOAL...!!SUNDER RCHNA

Anonymous said...

सौ कर के माध्यम से सच्ची और अच्छी बात कह दी आपने.

माधव( Madhav) said...

बहुत सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह...बहुत सटीक बात कह दी

डॉ टी एस दराल said...

क्रिकेट और सौकर में अंतर -- सौकर में सौ नहीं , क्रिकेट में कर नहीं ।
बहुत बढ़िया लिखा है अशोक जी ।
आभार ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सर जी, लोग तो हजारों लाखों करोड़ों कर लेते हैं सौ कर में...

Unknown said...

i had always been an admirer of your thaughts & it is yet another fabulas creation of your great self.
may god bless our country otherwise our system will definately sunk the nation to deepest depth of the dirt.

प्रदीप मानोरिया said...

राष्ट्रीय कवि की कलम से निकला अन्तराष्ट्रीय व्यन्ग बहुत सुन्दर है
एक गाँव के कवि का राष्ट्रीय विषय आधारित कविता पढने आप्को आमन्त्रण है

Jitendra Yadav said...

आलसी और अनुद्योगी रहकर सौ साल जीने के अपेक्षा दृढ उद्योगी के एक दिन का जीवन श्रेष्ट है.