—चचा, यह सवाल तो बहुत व्यापक है। करने योग्य बहुत सारी चीजें हैं और जो नहीं की जा सकतीं, ऐसी भी बहुत हैं।
—तू कोई एक बता यार। घुमावै चौं ऐ?
—चचा, प्रकृति का विरोध किया जा सकता है, लेकिन उसे सम्पूर्ण रूप से पराजित नहीं किया जा सकता।
—बात तौ सई कई ऐ रे!
—लेह में बादल फट गए। हम प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के हज़ार प्रयत्न कर लें, पर प्रकृति के कोप की तोप के प्रकोप के आगे कोई स्कोप नहीं। यूरोप के पोप बचा सकते हैं न कान्हा के गोप। जो लोप हो गए अब उनकी होप भी कम है।
—बादर फटे कैसै?
—बंगाल की खाड़ी से उठने वाली भाप बादलों में बदल गई। घन इतने सघन हो गए कि टकराने लगे। धरती के एक टुकड़े पर धांय से गिर पड़े। इसे कैसे रोकेंगे, बताइए! बादल फटने से पहले माना कि प्रकृति ने बिजली कड़का कर टैलीग्राम भेजा था कि संभल जाओ, लेकिन हम कब उस चेतावनी को इतनी गंभीरता से लेते हैं। खूब बिजली कड़कीं लेह में, ऐसी कड़कीं जैसी वहां पर पहले कभी न कड़की होंगी। गांव वाले अपने घरों में दुबक गए। जब ऊपर नभ से पानी का कुंभ औंधा हुआ तो यहां के सारे घड़े टूट गए घड़ी भर में। लेह की रेह जैसी मिट्टी निर्मोही मेह के कारण दलदल में बदल गई। वह दलदल न जाने कितनी देहों को लील गया।
—तौ लेह में मेह लील गई देह!
—उनमें सेना के हमारे जवान भी थे। सीमा पर तैनात, शत्रु पर कड़ी नजर रखे हुए, लेकिन मिट्टी, कीचड़, पानी में बहते-बहते पहुंच गए पल्ली पार। अब भारत सरकार पाकिस्तान से मांग कर रही है कि उस मिट्टी में से हमारे सैनिकों को निकालने में हमारी सहायता करे। बताइए, जो सैनिक लड़ने के लिए खड़े थे सीमा के इस ओर, उनके शवों को निकालने में उनकी दिलचस्पी क्यों होगी भला?
—अरे नायं रे, इत्तौ बुरौ नायं पाकिस्तान, मौत-मांदगी में तौ दुस्मन ऊ मदद करै। चौं नाय निकारिंगे?

—पिरकिरती कूं परास्त नायं कर सकै कोई।
—उसे धैर्य से ही परास्त किया जा सकता है। अन्दर की प्रकृति हो या

—चल तौ मैं ऊं चलुंगो तेरे संग। बता कब चलैगौ?
8 comments:
यह प्रकृति भी निराली है, कभी सूखे की मार झेलनी पड़ती है तो कभी बाढ़ की विभीषिका और कभी बदल फटने से उत्पन्न होने वाली आपदा| लेह जैसी जगह जहा पर वर्षा वैसे ही दिखती है जैसे हमरे नेताओ के अन्दर ईमानदारी| इसीलिए ऐसी स्थिति के बाद राहत कार्यों में व्यवधान तो आना ही है| सैनिको के साथ साथ विदेशी पर्यटकों की जान जाना भी देश के लिए खेद का विषय है| आमिर खान जी ने जो पहल की है वह सराहनीय है|
गुरु जी वास्तव में बहुत ही दुखद घटना थी.समाचारों में लेह के हालात देख कर आँखें भर आती हैं.
इसी दुर्घटना पर लिखा आपके द्वारा प्रशंसित हाइकू प्रस्तुत है...
बादल फटा
हुआ विनाश
जीवन घटा.
leh mein jo hua..vo kalpna se kain jyada hai..mujhe to ab pata chala ki badal fatne se itni badi trasdi ho sakti hai...bahut dukhad hai ye..par haan "rancho" ki school bachane ki muhim vakai sarahniy hai :)
यह चक्रधर की चकल्लस नहीं। प्रकॄति की विकराल विभीषिका है । इसे देख कर मन द्रवित है।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सुरूर-ए-गुरूर हुआ काफूर 'मजाल',
कुदरत ने आजमाया तो औकात याद आई
अति दुखद एवं हृदय विदारक घटना.
NICE POST...
dhire se aapne dil ki bat keh di,
ki leh ko is smayae pure hindustaan ki abshyakta he
bahut hi touchy Sir ji
pranaam "chcha ji"
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