Wednesday, December 15, 2010

चाचाचम्पू डॉट कॉम

—चौं रे चम्पू! जा उमर में मोय कंपूटर पै लगाय दियौ तैनैं, चार दिना ते गूगल सर्च में लगौ भयौ ऊं, जो साइट तैनैं बताई बो तौ मिली ई नायं, कैसी सर्च ऐ रे?
—चचा, कम्प्यूटर तो करे की विद्या है। लगे रहो चम्पू भाई।जो साइट मैंने आपको बताई, वह सीधे ही मिलेगी, गूगल सर्च से नहीं। गूगल सर्च में होगी भी तो पड़ी होगी तीसरे चौथे पेज पर। गूगल सर्च की माया निराली है।
—हमैं ऊ बताय दै, माया की माया।
—सर्च की सर्च करने पर समझ में आती है माया।आंकड़े बताते हैं कि किसी भी नाम या विषय पर कोई खोजक सर्च करे तो वह पहले तीन या चार लिंक्स पर ही जाता है, भले ही सर्च परिणाम आपको बताएं कि इस विषय पर हज़ार पेज और बीस हज़ार लिंक्स हैं। तीन लिंक्स के बाद चौथे लिंक तक खोजक की खुजली मिट चुकी होती है। उसे लगता है कि उसका काम उन्हीं तीन में बन गया। इस तरह शेष और श्रेष्ठ सामग्री से वह वंचित रह जाता है।
—पहली तीन-चार ई सबते अच्छी होती हुंगी!
—यही तो गूगल खोज का खेल है चचा, सबसे अच्छी पिछड़ जाती हैं।ऊपर वही आती हैं जो गूगल को भाती हैं।उसके लिए मुनाफा लाती हैं।
—तेरी बात समझ में नायं आई रे!
—चचा! नुमाइश में दुकानें लगती हैं। वही दुकान ज्यादा कमाती है जिसको मौके की जगह मिले। अगर पिछवाड़े में पड़ गई दुकान तो अच्छा होने के बावजूद बिकेगा नहीं सामान। गूगल की मलाई इसमें है कि वह नुमाइश में प्लॉट देने का ठेकेदार बन गया है। अगर मैं एक वेबसाइट बनाता हूं चाचाचम्पू डॉट कॉमऔर चाचाचम्पू कम्पनी की ओर से मोटी राशि के विज्ञापन गूगल को देता हूं तो सर्च के दौरान पहले तीन लिंक्स में हमारी साइट आ जाएगी अन्यथा बीसवें नम्बर पर चली जाएगी। कर लो आप क्या करोगे।
—फिर पहली तीन चार पै कौनसी साइट आमिंगी रे?

—दुनिया में हज़ारों चम्पू हैं, लाखों करोड़ों चाचा हैं। सबके सब आ जाएंगे। सबसे पहले यू-ट्यूब, जो गूगल की हीलीला है, फिर आएंगी गूगल बुक्स, गूगल म्यूज़िक, गूगल क्रोम की साइट्स, जहां भी चाचा या चम्पू का नाम आया होगा। गूगल बुक्स में हुआ तो किताब बिकने की सम्भावना, गूगल म्यूज़िक में हुआ तो गीत बिकने के चांस। कॉपी राइट की जगह राइट टु कॉपी! चचा, ये पूरा तंत्र एक त्रिभुज की तरह है। आमने-सामने की भुजाओं में एक तरफ ऑथर यानी लेखक, गीतकार, संगीतकारऔरफिल्म निर्देशक दूसरी तरफ पाठक श्रोता दर्शक। जो आधार की भुजा है उसमें प्रकाशक हैं, वितरक हैं, गर्वनमेंट है, संस्थाएं हैं। गूगल जैसी खोज सुविधा देने वाली कम्पनी के आने के बाद आमने-सामने की भुजाओं का तो कोई सम्बंध रहा ही नहीं। ऑथर की रॉयल्टी का अधिकार मार दिया आधार भुजा के बीच के लोगों ने, बीच की संस्थाओं ने, जैसे पीपीएल, आईपीआरएस। ये संस्थाएंबनीं तो इसलिए थीं कि सबके हितों की रक्षा करें, पर अब तक निरीह ऑथर के बजाय प्रकाशकों, म्यूज़िक कम्पनियों और निर्माताओं को ही पोसती रहीं हैं। गूगल ने तीनों भुजाएं तोड़ दीं।
—तौ कोई रखवारौ नाएं ऑथर कौ?

—हैं चचा, कुछ संस्थाएं हैं, जैसे आईपीआरएसकॉपी राइट सोसायटी। संगीत के क्षेत्र में अच्छा काम कर रही है। आपको याद होगा ‘महल’ फिल्म का गीत ‘आएगा आने वाला’। उसके शायर साहब तो नहीं रहे, उस वक़्त उन्हें गीत लिखने के दस-पन्द्रह रुपए मिले होंगे, लेकिन इधर जब ये गाना पब्लिक के बीच गाया गया तो उनकी रॉयल्टी इकट्ठी हुई। आठ हजार का एक चैक लेकर सीआरएस का बंदा ढूंढने निकला कि किसको ये चैक दिया जाए। झोंपड़-पट्टी में उनकी विधवा पत्नी मिल गईं। चैक देखकर निरीह नारी की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। चैक देने वाले ने पूछा कि क्या मरहूम शायर की याद आ गई। बोलीं कि पता नहीं, पर मुझे पहली बार लगा है कि मेरा आदमी मुझे कुछ देकर मरा है।
—जैसे वाके दिन फिरे वैसे हर काऊ के फिरें।
—आईपीआरएसने पारदर्शिता से काम किया होता तो विधवा को रॉयल्टी लाखों में मिलती। लेकिन अब जब सब कुछ गूगल पर फोकट में मिलेगा तो चाचाचम्पू डॉट कॉम के दिन नहीं फिरने वाले चचा। आशा की किरण के रूप में सिद्धार्थ आर्य नाम के एक नौजवान ने कॉम्युनिटी फोर गवर्नेंस ऑफ इंटैलैक्चुएल प्रोपर्टी नाम की फोरम बनाई है, सीजीआईपी। देखें ये क्या कर पाती है।

10 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘हमैं ऊ बताय दै, माया की माया।’

उत्तर परदेस में पडे हो और खोज रहा हो माया की माया:) ई तो सही ना :(

mridula pradhan said...

bahot manoranjak hoti hai aapki baatcheet.

Manas Khatri said...

बड़ा ही मजेदार प्रस्तुतीकरण है| ये चम्पू वाली भाषा शैली मुझे बड़ी ही निराली लगती है|

बाल भवन जबलपुर said...

—जैसे वाके दिन फिरे वैसे हर काऊ के फिरें।
Hamaae bhee

CHAITNYA said...

आप कि शैली अनोखी है राष्ट्रीय सहारा मेँ हर बुधवार को नियमित रुप से पढ़ रहा हूँ आप एक श्रंखला ईन्टरनेट फेसबुक के सही उपयोग पर लिखिये जिसमेँ तकनीक के उपयोग से भारत को स्वीडन की तरह भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के तरीके बताये जायेँ(प्रभाकर विश्वकर्मा मँड़ियाहू जौनपुर ps50236@gmail.comमोबाइल08896968727मेरा ब्लागwww.prabhakarvani.blogspot.com

Ashok Chakradhar said...

cmpershad Ji मृदुला जी, मानस जी, मुकुल जी धन्यवाद और हाँ चैतन्य जी फेसबुक पर ज़रूर एक चंपू लिखूंगा।

Anonymous said...

सुन्दर लेख..

तिलक राज कपूर said...

@मानस खत्री
भाई ये अशोक चक्रधर जी हैं (जैसे कृष्‍ण सुदर्शन चक्रधर थे); चम्‍पू के स्‍थान पर टम्‍पू को भी केन्‍द्रीय पात्र बनायेंगे तो इतना ही रस आयेगा।
टम्‍पू: एक तिपहिया यात्री वाहन जो वस्‍तुत: Tempo है लेकिन मध्‍य्रपदेश के ग्रामीण इलाकों में टम्‍पू से लेकर भोपाल में भट-सुअर के नाम तक कितने ही नामों से सुशोभित है और इसमें यात्री भरने से खाली करने तक सारे देश पर चर्चा हो जाना आम बात है।

ManPreet Kaur said...

bahut hi badiya.. maza aa gaya pad kar..
mere blog par bhi kabhi aaiye waqt nikal kar..
Lyrics Mantra

Apanatva said...

mazedar post.