Saturday, August 25, 2007

संदर्भ 8वां विश्व हिन्दी सम्मेलन

10 comments:

अभिनव said...

एकदम कोरा रहा
इस पोस्ट की तरह.

कोरे गये, कोरे आये,
निरे रुपईया खरच कराये

परमजीत सिहँ बाली said...

वाह! आज"संदर्भ 8वां विश्व हिन्दी सम्मेलन" के बारे में आप का ऐलान पढ कर मजा आ गया।:( आप ने बिल्कुल सही संकेत दिया है.यह हिन्दी सम्मेलन ऐसा ही कोरा था। इन के सम्मेलनों से कुछ होता तो है नही और ना ही इनके बारे में कुछ लिखने को ही है..कि कुछ लिखा जाए..:(...वैसे अभिनय जी ने आप को सही कमेन्ट किया है...अब जब हम भी यहाँ आ गए तो तो कोरा कागज देख कर ...समझ गए की पोस्ट में कॊइ गड़्बड़ आ गई होगी...:(....आप का नाम ही हमें बहुत हिम्मत बढाता है।

Shiv said...

कौन कहता है की व्यंग लिखा जाता है?

कौन कहता है की व्यंग बोला जाता है?

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

कागज़ कोरा छोडना , अरे !ये तो विरोध की परम्परा है,
तो क्या चक्रधर जी आप भी विरोध....? किसका ...?
क्यों कि आप तो प्रमुख.... !!!!!!

चलो जाने भी दो यारो ..

Jagdish Bhatia said...

हूं अच्छा विवरण।
जैसा कि हमने समझा :(

आदित्य प्रताप वन्देमातरम said...

चक्रधर जी, हम तो वर्षों से आपके प्रशन्सक हैं, पर आप का यह व्यंग सबसे तीखा है और बहुत ही subtle है।

ghughutibasuti said...

...

Udan Tashtari said...

.

अभिनव said...

राकेश खंडेलवाल said...

बिल्कुल ऐसा ही वहां का कवि सम्मेलन