आज हुए सौ बरस, आज के दिन पाई जीवन हाला, जितनी अधिक पुरानी होती उतना करती मतवाला। सदा छलक़ते जाम रहेंगे नाम रहेगा बच्चन का, सदा रहेंगे पीने वाले सदा रहेगी मधुशाला। — अशोक चक्रधर
समीक्षक नज़र तो नही है अपने पास गुरुदेव लेकिन वैसे आपके बहुत बड़े प्रशंसक है हम भी आप हरिद्वार महोत्सव में काव्य पाठ के लिए आए थे तमन्ना तो बहुत थी आपसे मुलाकात की लेकिन हम ठहरे एक मामूली जंतु और आप हिन्दी व्यंग विधा के धवज्वाहक सो आपके करीब पहुचने की हिम्मत न जुटा सके ..... आज ब्लॉग का दुनिया में आपका पता देखा तो ये छोटा सा ख़त लिख दिया...पता नही आपकी नज़र पड़े या न पड़े .... आपका आशीर्वाद की अपेक्षा में
आपका प्रशंसक डॉ. अजीत अपना पता है ... www.shesh-fir.blogspot.com
Ashok ji kuch humne bhi likha tha सुबह से शाम तक कंप्यूटर, रात को तो चाहीये प्याला काम करके जब थक जाऊं तो तब मुझको चाहीये हाला यहाँ तो सब नीरस है और होठों पे प्यास बहुत है हर शाम को ढूंढे आँखे, दील भी चाहे बस मधुशाला
मेरे घर की की एक ही राह है जो पहुंचे बस मधुशाला मेरी आंखो कि एक ही चाह है जो ढूंढे बस एक प्याला रात को मेरे ख्वाब में आये सुबह उठते ही मॅन ललचाये हर दीन की मेरी एक दुआ है, की मिल जाये थोडी सी हाला
जीवनपथ में मुझको जीवनसाथी मिले तो प्याला कभी जो मेरे कदम रूक जाये तो मुझको मील जाये हाला जिंदगी की मुश्किल रहो पे चलना भी तो बहुत कठीन है जब जब थक जाऊं मैं तब तब मील जाये मुझको मधुशाला....
इस चक्रधर के मस्तिष्क के ब्रह्म-लोक में एक हैं बौड़म जी। माफ करिए, बौड़म जी भी एक नहीं हैं, अनेक रूप हैं उनके। सब मिलकर चकल्लस करते हैं। कभी जीवन-जगत की समीक्षाई हो जाती है तो कभी कविताई हो जाती है। जीवंत चकल्लस, घर के बेलन से लेकर विश्व हिन्दी सम्मेलन तक, किसी के जीवन-मरण से लेकर उसके संस्मरण तक, कुछ न कुछ मिलेगा। कभी-कभी कुछ विदुषी नारियां अनाड़ी चक्रधर से सवाल करती हैं, उनके जवाब भी इस चकल्लस में मिल सकते हैं। यह चकल्लस आपको रस देगी, चाहें तो आप भी इसमें कूद पड़िए। लवस्कार!
11 comments:
बहुत अच्छे.
जितनी अधिक पुरानी होती
उतना करती मतवाला।
nice lines....
बच्चन जी के लिये इससे अच्छी श्रद्धांजली क्या हो सकती है।....अति सुंदर
बहुत खुब. क्या बात है!
सुंदर!!
वाकई बहुत बढ़िया!!
चक्रधर जी,
बहुत सुंदर!!!
pryas.wordpress.com
बहुत बढ़िया, सर...
वेहद सुंदर -सारगर्भित और प्रासंगिक भी !
समीक्षक नज़र तो नही है अपने पास गुरुदेव लेकिन वैसे आपके बहुत बड़े प्रशंसक है हम भी आप हरिद्वार महोत्सव में काव्य पाठ के लिए आए थे तमन्ना तो बहुत थी आपसे मुलाकात की लेकिन हम ठहरे एक मामूली जंतु और आप हिन्दी व्यंग विधा के धवज्वाहक सो आपके करीब पहुचने की हिम्मत न जुटा सके ..... आज ब्लॉग का दुनिया में आपका पता देखा तो ये छोटा सा ख़त लिख दिया...पता नही आपकी नज़र पड़े या न पड़े ....
आपका आशीर्वाद की अपेक्षा में
आपका प्रशंसक
डॉ. अजीत
अपना पता है ...
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Ashok ji
kuch humne bhi likha tha
सुबह से शाम तक कंप्यूटर, रात को तो चाहीये प्याला
काम करके जब थक जाऊं तो तब मुझको चाहीये हाला
यहाँ तो सब नीरस है और होठों पे प्यास बहुत है
हर शाम को ढूंढे आँखे, दील भी चाहे बस मधुशाला
मेरे घर की की एक ही राह है जो पहुंचे बस मधुशाला
मेरी आंखो कि एक ही चाह है जो ढूंढे बस एक प्याला
रात को मेरे ख्वाब में आये सुबह उठते ही मॅन ललचाये
हर दीन की मेरी एक दुआ है, की मिल जाये थोडी सी हाला
जीवनपथ में मुझको जीवनसाथी मिले तो प्याला
कभी जो मेरे कदम रूक जाये तो मुझको मील जाये हाला
जिंदगी की मुश्किल रहो पे चलना भी तो बहुत कठीन है
जब जब थक जाऊं मैं तब तब मील जाये मुझको मधुशाला....
kabhi hamari rachnaye padkar hamari bhi shan badaye:
http://tarun-world.blogspot.com/
-tarun
Ashoka The Great,Magician of hasya Vangya
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