सत्यम के संग शिव नहीं, शिव संग सुन्दर नाहिं, धन अंसुअन की झील में, शेयर पड़े कराहिं। शेयर पड़े कराहिं, बचा नहिं एक अधन्ना, बजे तड़पती ताल, ताक धन धन धन धन्ना। चक्र सुदर्शन, हवस खोपड़ी करती धम धम, हाय असत्यम, हाय असत्यम, हाय असत्यम।
प्रणाम गुरुदेव, वास्तव में शिष्यों के मान का सबसे अधिक भान गुरु को होता है क्यूंकि ये गुरु का ही दिया गया ज्ञान है जो शिष्यों को सम्मान दिलाता है. अगर आपने मुझे संबोधित करते हुए संदेश न दिया होता तो भी मैं अपनी टिप्पणी आपकी नई रचनाओं पर ज़रूर लिखता. मगर यदि ऐसा होता तो मेरे मन में कहीं न कहीं कसक ज़रूर रह जाती. खैर, आपने संबोधित किया मैं धन्य हुआ. आपने सही कहा है की आपका संचित ज्ञान चुटकी भर है मगर सच कहूँ मुझे लगता है कम से कम इस जन्म में तो ये चुटकी भर भी संचित करना मुझ जैसे के लिए तो सम्भव नहीं है और बिना गुरु के तो असंभव. अब आपको गुरु के स्थान पर विराजमान किया है तो उम्मीद है की चुटकी में उठाने वाला ज्ञान इस जन्म में दिख तो जायेगा. कोई बात नहीं उठा अगले जन्म में लेंगे. वैसे भी यहाँ कौन एक जन्म के बाद आखरत का इंतज़ार करेगा. यहाँ तो चट मरना और पट जन्म वाला धर्म है. बस गुरुओ के गुरु से यही कामना है की अगले जन्म में आपको वास्तविक गुरु के रूप में हासिल करू ऐसे एकलव्य की तरह नहीं. अब आपके चम्पू पर कुछ लिखूंगा क्यूंकि 'सत्यम' पर तो मौन रहना ही श्रेयस्कर है. -अमित माथुर. saiamit@in.com
इस चक्रधर के मस्तिष्क के ब्रह्म-लोक में एक हैं बौड़म जी। माफ करिए, बौड़म जी भी एक नहीं हैं, अनेक रूप हैं उनके। सब मिलकर चकल्लस करते हैं। कभी जीवन-जगत की समीक्षाई हो जाती है तो कभी कविताई हो जाती है। जीवंत चकल्लस, घर के बेलन से लेकर विश्व हिन्दी सम्मेलन तक, किसी के जीवन-मरण से लेकर उसके संस्मरण तक, कुछ न कुछ मिलेगा। कभी-कभी कुछ विदुषी नारियां अनाड़ी चक्रधर से सवाल करती हैं, उनके जवाब भी इस चकल्लस में मिल सकते हैं। यह चकल्लस आपको रस देगी, चाहें तो आप भी इसमें कूद पड़िए। लवस्कार!
10 comments:
बहुत खूब जी बहुत खूब!
बहुत खूब आपका अनदाज़ हे ऐसा है कि बहुत खूब कहे बिना काम नहीं चलेगा
मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
http://manoria.blogspot.com
उत्तम है !
पढकर अच्छा लगा।
Satyam par asatyam ki maar ka achchha ullekh kiya hai,Ashoke ji.Badhai.
प्रणाम गुरुदेव, वास्तव में शिष्यों के मान का सबसे अधिक भान गुरु को होता है क्यूंकि ये गुरु का ही दिया गया ज्ञान है जो शिष्यों को सम्मान दिलाता है. अगर आपने मुझे संबोधित करते हुए संदेश न दिया होता तो भी मैं अपनी टिप्पणी आपकी नई रचनाओं पर ज़रूर लिखता. मगर यदि ऐसा होता तो मेरे मन में कहीं न कहीं कसक ज़रूर रह जाती. खैर, आपने संबोधित किया मैं धन्य हुआ. आपने सही कहा है की आपका संचित ज्ञान चुटकी भर है मगर सच कहूँ मुझे लगता है कम से कम इस जन्म में तो ये चुटकी भर भी संचित करना मुझ जैसे के लिए तो सम्भव नहीं है और बिना गुरु के तो असंभव. अब आपको गुरु के स्थान पर विराजमान किया है तो उम्मीद है की चुटकी में उठाने वाला ज्ञान इस जन्म में दिख तो जायेगा. कोई बात नहीं उठा अगले जन्म में लेंगे. वैसे भी यहाँ कौन एक जन्म के बाद आखरत का इंतज़ार करेगा. यहाँ तो चट मरना और पट जन्म वाला धर्म है. बस गुरुओ के गुरु से यही कामना है की अगले जन्म में आपको वास्तविक गुरु के रूप में हासिल करू ऐसे एकलव्य की तरह नहीं. अब आपके चम्पू पर कुछ लिखूंगा क्यूंकि 'सत्यम' पर तो मौन रहना ही श्रेयस्कर है. -अमित माथुर. saiamit@in.com
आदरणीय गुरुवर,
सादर ब्लॉगस्ते,
कुंडली बढ़िया लगी।
बहुत अच्छा लगा।
बहोत खुब। आपको सुना तो था। पढा भी।
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