Tuesday, January 20, 2009

हाय असत्यम

सत्यम के संग शिव नहीं, शिव संग सुन्दर नाहिं,
धन अंसुअन की झील में, शेयर पड़े कराहिं।
शेयर पड़े कराहिं, बचा नहिं एक अधन्ना,
बजे तड़पती ताल, ताक धन धन धन धन्ना।
चक्र सुदर्शन, हवस खोपड़ी करती धम धम,
हाय असत्यम, हाय असत्यम, हाय असत्यम।

10 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत खूब जी बहुत खूब!

प्रदीप मानोरिया said...
This comment has been removed by the author.
प्रदीप मानोरिया said...

बहुत खूब आपका अनदाज़ हे ऐसा है कि बहुत खूब कहे बिना काम नहीं चलेगा
मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
http://manoria.blogspot.com

अमिताभ मीत said...

उत्तम है !

संगीता पुरी said...

पढकर अच्‍छा लगा।

डॉ टी एस दराल said...

Satyam par asatyam ki maar ka achchha ullekh kiya hai,Ashoke ji.Badhai.

अमित माथुर said...

प्रणाम गुरुदेव, वास्तव में शिष्यों के मान का सबसे अधिक भान गुरु को होता है क्यूंकि ये गुरु का ही दिया गया ज्ञान है जो शिष्यों को सम्मान दिलाता है. अगर आपने मुझे संबोधित करते हुए संदेश न दिया होता तो भी मैं अपनी टिप्पणी आपकी नई रचनाओं पर ज़रूर लिखता. मगर यदि ऐसा होता तो मेरे मन में कहीं न कहीं कसक ज़रूर रह जाती. खैर, आपने संबोधित किया मैं धन्य हुआ. आपने सही कहा है की आपका संचित ज्ञान चुटकी भर है मगर सच कहूँ मुझे लगता है कम से कम इस जन्म में तो ये चुटकी भर भी संचित करना मुझ जैसे के लिए तो सम्भव नहीं है और बिना गुरु के तो असंभव. अब आपको गुरु के स्थान पर विराजमान किया है तो उम्मीद है की चुटकी में उठाने वाला ज्ञान इस जन्म में दिख तो जायेगा. कोई बात नहीं उठा अगले जन्म में लेंगे. वैसे भी यहाँ कौन एक जन्म के बाद आखरत का इंतज़ार करेगा. यहाँ तो चट मरना और पट जन्म वाला धर्म है. बस गुरुओ के गुरु से यही कामना है की अगले जन्म में आपको वास्तविक गुरु के रूप में हासिल करू ऐसे एकलव्य की तरह नहीं. अब आपके चम्पू पर कुछ लिखूंगा क्यूंकि 'सत्यम' पर तो मौन रहना ही श्रेयस्कर है. -अमित माथुर. saiamit@in.com

Sumit Pratap Singh said...

आदरणीय गुरुवर,

सादर ब्लॉगस्ते,
कुंडली बढ़िया लगी।

TRIPURARI said...

बहुत अच्‍छा लगा।

रज़िया "राज़" said...

बहोत खुब। आपको सुना तो था। पढा भी।