Thursday, April 16, 2009

चक्र सुदर्शन / विरह और मिलन

मिलन कामना उर बसी, फिर क्यों बिछुड़े नाथ?
बस कुछ दिन की दुश्मनी, फिर मिलाएंगे हाथ।
फिर मिलाएंगे हाथ, अभी नकली तलाक है,
वोटर को फुसलाना, क्या कोई मज़ाक है!
चक्र सुदर्शन, कुछ दिन का है रोल विलन का,
बिना विरह के बोलो क्या आनंद मिलन का!

7 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

ई क्या मामला है! आप हाथ-वाथ मिला रहे हैं? ई सब तो चुनाव आचार संहिता के दायरे में आ जाता है.

परमजीत सिहँ बाली said...

बिल्कुल सही अशोक जी,जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है। बाद मे यही जोड़ तोड़ की राजनिति मे लग जाएगें।

संध्या आर्य said...

sahi hai samay bhi milan ki hai .........aapka to koee sanee nahee hai, sir

दिनेशराय द्विवेदी said...

जय हो!

डॉ टी एस दराल said...

Jo abhineta the, abhi neta hain.
Jo abhi neta the,abhi vilen hain.
Yahi to chakra ka chakra hai.
Bahut khoob Ashok ji.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

अशोक जी,
नमस्कार,
बहुत सुना है आप को, आज आप को
ब्लाग पर देख कर बडी़ प्रसन्नता हुई और मैं
सच में प्रसन्न वदन हो गया।
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।आप के विचारों का बेसब्री से इन्तज़ार रहेगा।

TRIPURARI said...

अच्‍छा है।