—चौं रे चम्पू! प्रचंड का ऐ रे?
—चचा, कुछ भी स्थाचयी रूप से प्रचंड नहीं है। न तो नेपाल में, न दिल्लीप में।
—नेपाल की तौ समझ में आई, पर दिल्ली् ते का मतलब ऐ?
—वहां प्रचंड प्रधानमंत्री नहीं रहे, यहां प्रचंड गर्मी नहीं रही।
—जे बात मानी!
—चचा कुछ भी स्थाधयी नहीं है। आज नेपाल में प्रचंड ने यह कहकर इस्तीनफा दे दिया कि मैं विदेशी तत्वोंी तथा प्रतिक्रियावादी बलों के दबाव में आकर सत्तास में रहने की बजाय इस्तीिफा देना पसंद करूंगा। अब सेना उनसे ज़्यादा प्रचंड हो सकती है, पर हम क्यों कुछ बोलें। भारत ने कह दिया कि ये उनका आंतरिक मामला है। हमारे लिए महत्वपूर्ण ये है कि यहां गर्मी ने बिना कुछ कहे अपनी प्रचंडता से इस्तीफ़ा दे दिया। राहत मिली। पर क्या, पता कल फिर प्रचंड हो जाए। मौसम का मिज़ाज किसने जाना?
—सही बात ऐ चंपू!
—चचा हमें बताया गया कि पिछले चुनाव-चरणों में गर्मी के कारण कम मतदान हुआ। कल देखते हैं, कितना प्रतिशत होता है। मेरे ख्यांल से तो गर्मी-सर्दी से कोई फ़र्क पड़ता नहीं है। वोट अंदर की गर्मी का मामला है। जो इसका अर्थ समझता है, उसके लिए मौसम का मारक मिजाज़ कोई मायने नहीं रखता।
—गल्तई बात। गरमी के मारै लंबी लाइन छोड़ गए कित्तेई मतदाता।
—तुम्हेंा क्यार मालूम चचा कि वे दुबारा आए या नहीं। जो एक बार लाइन में आ जाता है, आसानी से वापस नहीं जाता। पानी पी कर और राजनीति को कोस कर फिर आ जाता है। प्रत्याशियों में कोई पसंदीदा हो न हो, वोट डालता है। उंगली पर गीली स्या ही रखवाने के बाद सुखाने के लिए फूंक मारता है। उस निशान को देखकर ऐसा खुश होता है जैसे ब्यागह-शादी के मौके पर लड़कियां मेंहदी देख-देख कर सिहाती हैं। उसकी फूंक सही लग जाए तो तख्तोसताज बदल जाते हैं चचा! वोट डालना एक बहुत बड़ी राहत का एहसास देता है। एक सुकून देता है, जैसे पुराने ज़माने में पोस्ट -बॉक्स में प्रेम-पत्र डालने से मिला करता था। आप तो जानते हैं प्रेम गर्मी से ज़्यादा प्रचंड होता है। वोट डालना लोकतंत्र के प्रति हमारा इज़हार-ए-इश्कल है। हां, कुछ होते हैं जो वोट न डाल पाने के बाद कसमसा कर रह जाते हैं। उन्हींम के लिए फै़ज ने लिखा था— ‘और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्ब त के सिवा’। किसी को रोज़गार के कारण बाहर जाना पड़ गया। किसी को किसी की तीमारदारी में लगना पड़ा। मतपेटी की याद रह रहकर सताती होगी, पर हालात के आगे मुहब्बीत हार जाती होगी। ऐसे लोगों को माफ़ कर दिया जाना चाहिए चचा। ठीक है न?
—बिरकुल गल्त बात। पांच सालन में एक दिना की बात ऐ। देस-प्रेम निजी-प्रेम ते बड़ौ होय करै। ऐसे लोगन कूं माफी नायं, सजा मिलनी चइऐ।
—एक तो ग़रीबी और गर्मी की मार, ऊपर से सज़ा और दे दो। दरअसल, ऐसे तरीके निकालने चाहिए कि जो जहां है, वहीं से अपने मताधिकार का प्रयोग कर सके। मतपेटी की जगह जैसे अब वोटिंग मशीन आ गई है, उसी तरह आगे से वोटिंग मशीन की जगह नए माध्य मों का इस्तेटमाल किया जाए।
जैसे पोलियो ड्रॉप्स लेकर सरकारी कर्मचारी घर-घर जाते हैं, वैसे ही पोलिंग-ड्रॉप-बॉक्स लेकर हर मतदाता के पास जाया जाए। इंटरनेट और मोबाइल की मदद ली जाए। और आप जो कह रहे थे, कई देशों में वैसा विधान भी है। ऑस्ट्रेऔलिया में वोट न डालो तो फाइन लगता है। लेकिन ये सुविधा भी है कि कोई नागरिक यदि विदेश गया हुआ है तो वहां की एम्बेहसी में जाकर अपनी वोट डाल सकता है। अगले चुनाव तक हमारे देश में भी चुनाव सुधार होंगे चचा। हम सरकार इसीलिए बनाते हैं कि वह नागरिकों का पूरा ध्यान रखे। हमें सुख, सुविधा और सुरक्षा दे। पर यहां तो आधी आबादी के लिए दिन में दो रोटी के लाले पड़े हैं। रोज़गार और शिक्षा की दुकानों और अस्पहतालों पर उस आबादी के लिए ताले पड़े हैं। नंगे पैर जिसके पांवों में छाले पड़े हैं, अत्यांचार के मौसम में जिसके हाथ-पांव काले पड़े हैं, उसे कैसे समझ में आएगा तुम्हारी वोट का मतलब?
—सब बेकार की बात। बोट नायं डारैं, जाई मारै उनकी ऐसी हालत ऐ। वोट नायं डारी तौ और बुरी हालत है जायगी। सज़ा जरूरी ऐ।
—तुम भी प्रचंड हो गए चचा!
Friday, May 08, 2009
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7 comments:
इंटरनेट पर जिन्होंने की थी वोटिंग
वे मिलेंगे अविनाश वाचस्पति ब्लॉग
पर
पूरी प्रक्रिया भी वहीं है
वोट करके भी पप्पू बने हैं जो
मिलेंगे वहां पर आपको वो।
इतना पप्पू पप्पू चिल्लाने के बाद भी मतदान ४० फीसदी से ऊपर नहीं गया..सो नए नुस्खे तो आजमाने ही होंगे..!अब आन...लाइन करो या पोलिग बक्सा लेकर घर घर घूमों.. ये आयोग को सोचना होगा..
BAHOT SAHI KAHAA HAI AAPNE...
वाह जी वाह बहुत ख़ूब, हम तो चटख़रे ले रहे हैं।
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
चटखारे
पोलिंग ड्राप के
या पोलियो ड्राप के ?
अबकी बार इस काम में अध्यापकों के बजाय ब्लोगर भाई बहिनों को लगाया जाए .....
यह प्रक्रिया सचमुच अत्यंत कारगर सिद्ध होगी . वोट काप्रतिशत भी बढेगा और लोग पपू कहलाने से भी बचेंगे ......इस आलेख को केवल व्यंग्य समझ कर पढ़ना उचित नहीं होगा ......मेरी समझ से आपका यह उपाय सही और सार्थक है , आयोग को इसे आजमाना चाहिए .../
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