—चौं रे चम्पू! दिल और दिमाग में कौन जादा ताकतवर ऐ?
—दोनों ताक़तवर हैं, दोनों ही कमज़ोर हैं। चचा, जो इन दोनों को अलग-अलग मानते हैं वे गलती करते हैं। दोनों ही स्रोत हैं, दोनों ही धारा हैं। दोनों ही बांध हैं, दोनों ही एक-दूसरे का किनारा हैं। लोग समझते हैं कि दिल धड़कता है और दिमाग सोचता है, पर मामला उल्टा है चचा। दरअसल, दिमाग धड़कता है और दिल सोचता है, यानी दिल में एक दिमाग होता है और दिमाग में एक दिल। इसी से जिंदगी खिल-खिल जाती है और इसी से होती है कांटा किल-किल।
—लोग कह्यौ करैं कै दिल टूट गयौ।दिमाग टूट गयौ, चौं नांय कहैं?
—यही तो महान गलती है। दिल नहीं टूटता, दिमाग चकनाचूर होता है। दिमाग में सबसे ज़्यादा हिस्से होते हैं। उनमें बहुत सारे क़िस्से होते हैं। क़िस्से जब क़िस्सों से टकराते हैं तो तरह-तरह के घिस्से होते हैं, इसीलिए दिल के इतने नाम नहीं हैं जितने दिमाग के हैं।
—बता!
—बुद्धि, अक़्ल, भेजा, मगज़, मन, मस्तिष्क, दिमाग। ज्ञान, बोध, अंत:करण, मनसा, दीप, चिराग। ज़हन, शीश, मति, खोपड़ी, अंतर्दृष्टि, विवेक। समझ, चेतना, मनीषा, तेरे नाम अनेक। वैज्ञानिक भी कहते हैं कि दिमाग का दायाँ हिस्सा असीम कल्पनाओं का पहाड़ और बहुरंगी भावनाओं-आस्थाओं का अखाड़ा होता है, जबकि बायाँ हिस्सा तर्क और गणित का पहाड़ा होता है। दिमाग चिंतन करता है दिल के अनुसार। उन स्मृतियों को संजोता है जो दिल को अच्छी या बुरी लगें। बेलगाम कल्पनाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण भी करता है। दिमाग कोरा दिमाग नहीं होता, दिलात्मक दिमाग होता है, जो दिमागात्मक दिल की सुनता है। चीजें जब नियंत्रण से परे होने लगती हैं तब लोग उसे कहते हैं दिल और दिमाग की मुठभेड़। खोपड़ी घूम जाती है चचा।
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—दोनों ताक़तवर हैं, दोनों ही कमज़ोर हैं। चचा, जो इन दोनों को अलग-अलग मानते हैं वे गलती करते हैं। दोनों ही स्रोत हैं, दोनों ही धारा हैं। दोनों ही बांध हैं, दोनों ही एक-दूसरे का किनारा हैं। लोग समझते हैं कि दिल धड़कता है और दिमाग सोचता है, पर मामला उल्टा है चचा। दरअसल, दिमाग धड़कता है और दिल सोचता है, यानी दिल में एक दिमाग होता है और दिमाग में एक दिल। इसी से जिंदगी खिल-खिल जाती है और इसी से होती है कांटा किल-किल।
—लोग कह्यौ करैं कै दिल टूट गयौ।दिमाग टूट गयौ, चौं नांय कहैं?
—यही तो महान गलती है। दिल नहीं टूटता, दिमाग चकनाचूर होता है। दिमाग में सबसे ज़्यादा हिस्से होते हैं। उनमें बहुत सारे क़िस्से होते हैं। क़िस्से जब क़िस्सों से टकराते हैं तो तरह-तरह के घिस्से होते हैं, इसीलिए दिल के इतने नाम नहीं हैं जितने दिमाग के हैं।
—बता!
—बुद्धि, अक़्ल, भेजा, मगज़, मन, मस्तिष्क, दिमाग। ज्ञान, बोध, अंत:करण, मनसा, दीप, चिराग। ज़हन, शीश, मति, खोपड़ी, अंतर्दृष्टि, विवेक। समझ, चेतना, मनीषा, तेरे नाम अनेक। वैज्ञानिक भी कहते हैं कि दिमाग का दायाँ हिस्सा असीम कल्पनाओं का पहाड़ और बहुरंगी भावनाओं-आस्थाओं का अखाड़ा होता है, जबकि बायाँ हिस्सा तर्क और गणित का पहाड़ा होता है। दिमाग चिंतन करता है दिल के अनुसार। उन स्मृतियों को संजोता है जो दिल को अच्छी या बुरी लगें। बेलगाम कल्पनाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण भी करता है। दिमाग कोरा दिमाग नहीं होता, दिलात्मक दिमाग होता है, जो दिमागात्मक दिल की सुनता है। चीजें जब नियंत्रण से परे होने लगती हैं तब लोग उसे कहते हैं दिल और दिमाग की मुठभेड़। खोपड़ी घूम जाती है चचा।
—बगीची पे चंपी कराय लै!बादाम के तेल की। खोपड़ी तर, दिमाग ठीक!
—उससे कुछ नहीं होता चचा। बादाम का तेल दिमाग का भोजन नहीं है। दिमाग खोपडी के जरिए आहार नहीं पाता।
—जानी वाकर कौ चंपी वारौ गानौ याद ऐ?
—सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए, आजा प्यारे पास हमारे, काहे घबराए? चंपी तेल मालिश। इस गाने को ही लो। जो बात मैंने कही, ये गाना भी कहता है। सिर चकराना और दिल डूबना दोनों साथ-साथ कहे गए हैं। दोनों चीज़ें अंदर घटित होती हैं। चंपी बाहरी प्रयास है। जिसके पास दाम नहीं होंगे, बादामरोगन का इंतज़ाम कहाँ से करेगा? महँगाई के कारण उसका दिमाग और चकरा जाएगा, दिल और डूब जाएगा। दिल-दिमाग का भोजन न खोपड़ी के जरिए जाता है न मुख के। ये मामले हैं अंदरूनी सुख और दुख के। दिल-दिमाग का भोजन आँख-कान के ज़रिए जाता है चचा। आत्मीय छवियां दिखें, मनोनुकूल और मीठी बातें सुनने को मिलें तो बड़े-बड़े घाव भर जाते हैं, पर दूसरे का घाव भरने वाले शब्द बड़ी मुश्किल से निकलकर आते हैं। आजकल महानगरों में बढ़ रहा है पैसा और गुरूर। सब के सब मगरूर। मज़े लेते हैं, जब सामने वाला हो जाता है चकनाचूर। यह मज़ा उनके दिल-दिमाग को सुकून देता है। ताने और सताने में समय बिताने में आनंद आता है। उसी से अपनी ताक़त का अंदाज़ा होता है।देखा, हम किसी को कितना दुख पहुँचा सकते हैं। यह दुख पहुँचाने का भाव असीमित सुख देता है। आजकल हृदय रोगियों से कहा जाता है कि मनोचिकित्सक के पास भी जाओ। तुम्हारे अन्दर जो तनाव है, वही तुम्हारे दिल का घाव है, क्योंकि तुमने जो कुछ गुपचुप सोचा है, उसी में कैमिकल लोचा है।
—दिल और दिमाग तौ अब गड्डमड्ड है गए ऐं, पहले अलग-अलग हते। दिल आ जाय तौ दिमाग की ऐसी-तैसी। दिमाग में कोई बात बैठ जाय तौ भाड़ में जाय दिल।
—सही कह रहे हो चचा। ज़माने ने सब कुछ गड्डमड्ड कर दिया है। स्वार्थ, कैरियर, भविष्य-निर्माण, अनेकनिष्ठता का बुलडोजर जब किसी अंतरंग के दिल पर चलता है तो उसका दिमाग ही सहारा दे सकता है, वरना जाएगा काम से। ये दिमाग ही है जो दिल टूटने की आवाज नहीं होने देता। तरुण जी की पंक्तियाँ बड़ी अच्छी हैं, ‘एक चूड़ी टूटती तो हाय हो जाता अमंगल, मेघ में बिजली कड़कती, कांपता संपूर्ण जंगल। भाग्य के लेखे लगाते, एक तारा टूटता तो, अपशकुन शृंगारिणी के हाथ दर्पण छूटता तो। दीप की चिमनी चटकती, चट तिमिर का भय सताता, कौन सुनता विस्फोट, जब कोई हृदय है टूट जाता।
—अब आयौ ना लाइन पै!
12 comments:
बहुत सुन्दर विश्लेषण.....
बस इतना ही कहूँगा.....दिल तो बच्चा है जी...
nice
too gud sir :)
क्योंकि तुमने जो कुछ गुपचुप सोचा है, उसी में कैमिकल लोचा है। sahi kaha aapne. sara locha gup chup sochne ki vajah se hai. nice post.
वाह,दिल ओर दिमाग का खेल तो बडा निराला हवे
"दोनों ताक़तवर हैं, दोनों ही कमज़ोर हैं"
यह तो वही बात हुई - मानो तो देव, न मानो तो पत्थर :)
Guru ji aapki post very good hai ji
very good
आपके ब्लॉग को आज चर्चामंच पर संकलित किया है.. एक बार देखिएगा जरूर..
badi hi bariki se aapne, dimaag aur dil ka connection joda he
masal kam aur hkikat ka marham thoda thoda he
bahut khoob, aapko padhna hamesha hi ek anant ke sagar me dubki lagane ke samaan he,
man ki shani mili, iskle liye abhaar
dimaag-cum-dil se
दिल बच्चा है तो दिमाग चच्चा है राणाप्रताप जी। माधव, पारुल, पवन, आशीष, शिवम, सुमित मस्तान, दीपक, आलोक आप सभी का स्नेहिल प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद।
अभी तक तो आपको टीवी पर ही सुना था अब आज ब्लॉग भी देख लिया । दिल और दिमाग की जोरा जोरी सही है पर.......दिल तो आखिर दिल है ना ।
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