Wednesday, September 22, 2010

हिन्दी की हिन्दी अंग्रेज़ी की अंग्रेज़ी

—चौं रे चम्पू! हिन्दी पखवारे में हिन्दी की कित्ती हिन्दी करी तैनैं?
—चचा मज़ाक मत बनाओ। हिन्दी की हिन्दी से क्या मतलब है? माना कि आजकल अंग्रेज़ी की अंग्रेज़ी हो रही है, लेकिन अंग्रेज़ी की हिन्दी भी हो रही है और हिन्दी की अंग्रेज़ी भी हो रही है। कम्प्यूटर ने भाषाओं के विकास के रास्ते खोल दिए हैं। किसी नीची निगाह से न देखना हिन्दी को!
—तौ का हिन्दी को स्वर्ण काल आय गयौ?
—व्यंग्य मत करो चचा! सब कुछ तो जानते हो। लेकिन मान जाओ कि स्वर्ण काल भले ही न आया हो पर यदि हम चाहें तो हिन्दी का भविष्य स्वर्णिम बना सकते हैं।
—चल मजाक करूं न ब्यंग, बता का कियौ जाय?
—हिन्दी आज एक वैश्विक भाषा है और पूरे संसार में बोलने वाले लोगों की संख्या की दृष्टि से दूसरे नम्बर पर आती है। लेकिन अपनी हैसियत में किस नम्बर पर आती है! सच्चाई ये है चचा कि बहुत पिछड़ी हुई है, प्रगति के ग्राफ में बहुत नीचे है। विदेशी कंपनियां आती हैं, यहां हिन्दी चैनल चलाती हैं। चकाचक मुनाफ़ा कमाती हैं। मनोरंजन की दुनिया में हिन्दी के पौबारह हैं। लेकिन हिन्दी पठन-पाठन, रोज़गार, कारोबार में पौपांच भी नहीं है। विदेशी सॉफ्टवेयर कंपनियों ने हिन्दी के लिए एक से एक शानदार सॉफ्टवेयर बनाए, यहाँ आकर बनवाए, शोध कराई, आर.एन.डी. कराई, लेकिन उनकी दिक्कत ये है कि हिन्दी सॉफ्टवेर ज़्यादा बिकते ही नहीं हैं भारत में। कंपनियां समझने लगती हैं कि हिन्दी की भारत में ज़रूरत ही नहीं है।
—ऐसौ कैसै समझ सकैं?
—बिक्री चाचा बिक्री! बिक्री नहीं होती उनकी! हर उन्नत भाषा, प्रौद्योगिकी की नवीनतम खोजों का लाभ उठाती है। खुद को अपडेट करती है, लेकिन हमारी हिन्दी पुरानी पद्धतियों से ही चिपकी हुई है। हिन्दी के प्रकाशन जगत ने अभी तक यूनिकोड को नहीं अपनाया है।
—चौं नायं अपनायौ?
—नए उत्पाद ज़्यादा पैसे में ख़रीदने पड़ते हैं न! हिन्दी प्रकाशन के लिए पुराने सॉफ्टवेर नेहरू प्लेस से पचास रुपए में मिल जाते हैं तो नए के लिए पाँच हज़ार कौन खर्च करेगा? लाखों रुपए के कम्प्यूटर खरीद लेंगे, पर कुछ हज़ार के सॉफ्टवेयर नहीं खरीद सकते! कार तो ख़रीद लीं, पर चला रहे हैं चोरी की पेट्रोल से। अभी पिछले दिनों मैं माइक्रोसॉफ़्ट के एक सीनियर बंदे से मिला। उसने बताया कि जब भी उनका कोई नया भाषाई उत्पाद आता है, तो वो एक साथ कई सारी भाषाओं में उसको लॉंच करते हैं। चीनी भाषा में, जापानी में, कोरियन में, जर्मन में। विश्व की कुछ समुन्नत भाषाएं निर्धारित और निश्चित हैं कि उत्पाद को इन सारी भाषाओं में एक साथ लाया जाएगा। इन भाषाओं को वे कहते हैं फर्स्ट टीयर, यानी पहली श्रेणी की भाषाएं। दूसरी श्रेणी में उन भाषाओं को लेते हैं जहां ठीकठाक सा मार्केट है। मुझे वहां यह जानकर आश्चर्य हुआ कि टीयर सिस्टम में हिन्दी सबसे नीचे तीसरी श्रेणी में आती है। डिमांड होगी तभी तो बनाएंगे। सरकार उनके हिन्दी उत्पादों की मुख्य ग्राहक होती है। सरकार को ये लोग अधपकी सामग्री बेच कर मुनाफा कमा लेते हैं। सरकारी फाइलों में हिन्दी लालफीते से बंध कर घुटती रहती है।
—बता, का करैं?
--सबसे बड़ी ज़रूरत है जन-जागृति की। पढ़े-लिखे तबकों में यूनिकोड का प्रचार और प्रसार प्राथमिकता पर किया जाए। पूरे देश में यूनिकोड मशाल घुमा दी जाए। माँग बढ़ेगी तो सॉफ्टवेयरों की कीमतें अपने आप कम होंगी। यूनिकोड पर आधारित नए-नए फॉन्ट बनने चाहिए। पुस्तकों और समाचार जगत के प्रकाशकों को जब इसकी महत्ता समझ में आएगी तब बात बनेगी। माइक्रोसॉफ़्ट के साथ अडोबी और आईबीएम भी अपने उत्पादों को यूनिकोड समर्थित करें। अडोबी उदासीन है क्योंकि उसका पेजमेकर और फॉटोशॉप चोरी से इस्तेमाल होता है और वे भारत में कुछ नहीं कर सकते। भारत में कुछ चोरियाँ चोरी नहीं मानी जातीं। बौद्धिक सम्पदा की निजता को नीची निगाह से देखा जाता है। कॉपीराइट की ऐसी-तैसी!
—जे तौ चोरी और सीनाजोरी भई।
—कॉपीराइट नहीं है, कॉपी करने का राइट है चचा।

9 comments:

anshumala said...

सही कहा आपने जब तक मै भी ब्लॉग जगत से जुडी नहीं थी तब तक मुझे भी यूनिकोड के बारे में जानकारी नहीं थी और कई लोगों को माने हिंदी के लिए टैपिंग में परेशान होते देख है | निश्चित रूप में इसका प्रचार प्रसार करना चाहिए |
@कॉपीराइट नहीं है, कॉपी करने का राइट है चचा।
बिल्कूल सही कहा |

Khare A said...

जे तौ चोरी और सीनाजोरी भई।
—कॉपीराइट नहीं है, कॉपी करने का राइट है चचा।
गुरु श्रेष्ठ को प्रणाम, दिल से
में आपकी रचना के लिए बगुले कि तरहा आँख बंद किये
घात लगाये रहता हूँ, कि कब गुरु श्रेष्ठ क्या लिख जाये
और में औरन ते पहले अपनौ कोमेंट दे सकू,
एक दम पते कि बात कही गुरु जी, लेकिन करे क्या
लैपटॉप तो एक दम अडवांस वाला, लेकिन चलैवे को
चोरी का सॉफ्टवेर, कौन खर्चे ४-५ हज़ार रुपल्ली
जी इन्ही पैसन से ससुर ताज-महल बनबाएंगे!
बातों ही बातों में पते कि बात
हँसते हँसते एक दम सिरिअस बात कह जाते हे
आप
जय हो गुरु श्रेष्ठ जी कि जय
अगली चकल्लस का बेसब्री से इंतजार
आपका अपना ही एक पाठक

अनिल कान्त said...

कित्ती सही बात करी है

Harshkant tripathi"Pawan" said...

बहुत सही लिखा आपने. हिन्दी का विकास नहीं हो पाने का रोना रोने वाले भी इसके विकास में कम बाधक नहीं हैं.

Parul kanani said...

hmm..ekdam sahi!

Sumit Pratap Singh said...

गुरु जी काहे को फिकर करते हैं हम सब मिल कर अपनी हिंदी को प्रगति पथ पर आगे बढायेंगे...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

`तौ का हिन्दी को स्वर्ण काल आय गयौ?'

ई त कामनवेल्थ में देक लेबो चचा :)

शरद कोकास said...

यह तो नई परिभाषा है कॉपी करने क राइट

monali said...

Are jab dhundha to nahi mila aur jab aankhein band karne lage to dikh gaya...kya? Are aapka blog Sir... ab iski tareef karne ki kya zarurat h jab ki sab jante hi hain k ye ek dum mast chakachak h... :)