Thursday, June 07, 2007

तुम से आप


तुम भी जल थे
हम भी जल थे
इतने घुले-मिले थे
कि एक दूसरे से
जलते न थे।

न तुम खल थे
न हम खल थे
इतने खुले-खुले थे
कि एक दूसरे को
खलते न थे।

अचानक हम तुम्हें खलने लगे,
तो तुम हमसे जलने लगे।
तुम जल से भाप हो गए
और 'तुम' से 'आप' हो गए।

15 comments:

विजेंद्र एस विज said...

वाह...क्या बात है..

कच्चा चिट्ठा said...

झक्कास है। आनंद आ गया सर! टू गुड :-)

Hindustani said...

आपकी लेखनी जबरदस्त है, मस्त है।
करती सब को पस्त है।
कमाल है चक्रधर जी!

Rajesh Roshan said...

bahut badi baat kah di aapne. Nice one :)

राजीव रंजन प्रसाद said...

आदरणीय अशोक जी..

भावनाओं और शब्दों का मानों चमत्कार है यह आपकी रचना। आत्मीयता के इससे सहज बिम्ब कभी मेरी सोच में भी नहीं आये:

"इतने घुले-मिले थे
कि एक दूसरे से
जलते न थे।"

"इतने खुले-खुले थे
कि एक दूसरे को
खलते न थे।"

और अंतिम पंक्तियाँ तो पढे जाते ही जैसे स्तब्ध करती हैं:

तुम जल से भाप हो गए
और 'तुम' से 'आप' हो गए।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Manish Kumar said...

शब्दों के खेलते खेलते अपनी बात को प्रभावशाली ढ़ंग से कह पाए हैं आप। बहुत खूब!

Pramendra Pratap Singh said...

वाह भी छोटा पड़ रहा है। कम शब्‍दों मे बहुत बड़ी बात कह दिया।

Anupama said...

Swagat hai aapka yahaan...aapko roz Wah Wah me suna karti thi...yahaan ab roz aapko padh bhi sakungi....beintihaan khushi ho rahi hai aapka blog url paakar.

Atul Sharma said...

अब हम किस मुँह कुछ कहें, आपके लिए कुछ कहना तो सूरज को दिया दिखाने की तरह है।
कम शब्दों में कितना अधिक कह दिया है आपने।

Reetesh Gupta said...

क्या बात है ...अति सुंदर ...बधाई

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन!!!वाह!

Monika (Manya) said...

Aapka blog yahan dekhkar ek baar to main aashcharya mein pad gyai..maine bachpan se aapko TV par dekha hai.. kavy samelanon mein.. padha bhi hia.. school mein aapki rachnaayen padhi bhi hain.. its really a very pleasent surprise to find you here...bahut khushi ho rahi hai...abhi bhi wishwaas nahi ho raha hai..aapki rachnaayen mujhe bahut pasand hain.. unme haasay-wynagay ke saath jo sandesh hota hai.. jus superb!!!!

Aapki kawita ke baare mein kya kahoon. ye hamesha ki tarah wishisht hai... prawaahmaan, saarthak, gaagar mein saagar jaise..

mamta said...

बहुत ही अच्छा । नन्दन के ज़माने से आपको पढ़ते और सुनते चले आरहे है।

सुनीता शानू said...

आपकी हर बात कहने का ढंग निराला है..हमे तो आपसे बहुत कुछ सीखना है...बस आप अपना हाथ सदा हमारे सर पेर रखना...

सुनीता(शानू)

Unknown said...

GOOD EVEN BETTER... NO WORDS TO SAY >>>ITS BEYOND...