Wednesday, December 10, 2008

हंग निहंग विहंगम जंगम

--चौं रे चम्पू! कूट का होय?
--कूट के तो बड़े अर्थ हैं। एक अर्थ है कपट। दूसरा... पर्वत को भी कूट कहते हैं, जैसे रेणुकूट। कूट माने गुप्त और गोपनीय भी होता है। उसी से बनी कूटनीति। और कूटना तो आप जानते ही हैं, जैसे असभ्य पति अपनी पत्नी। को कूटते हैं और सभ्य। पत्नियां अपने पति को कूटती हैं।
--अरे तू तो कविता लिख्यौ करै, कूट और कविता कौ का संबंध ऐ?
--वह होता है कूट-काव्यन।
--कूट-काव्यि के बारे में बता?
--तुम्हें मालूम तो सब है चचा! कूट-काव्यऐ वह काव्य जो आसानी से समझ में न आए। जिसका अर्थ बड़ी मुश्किल से निकले।
--तो सुन, मैं एक कूट-काव्यर सुनाऊं, वाकौ मतलब समझा।
--परीक्षा ले रहे हो?
--अरे तेरी क्याे परीच्छा लैनी! ऐसी कौन-सी तेरी इज़्झजत ऐ, जो न बता पायौ तौ बिगड़ जायगी। चल अर्थ बता--
हंग विहंग निहंगम जंगम,
गमन गम न कर, नंगम संगम।
--ये कूट-काव्यस काहे का है चचा, अर्थ तो साफ निकल रहा है। पीछे से शुरू करो। चुनाव के संगम पर नंगों का गमन हुआ। परिणाम ऐसे आए कि कोई गम न करे, बस गमन करे। ये तो हो गई निचली लाइन। ठीक?
--ठीक! अब ऊपर की लाइन कौ अर्थ बता-- हंग निहंग विहंगम जंगम।
--चचा, इसका अर्थ भी सुन लो। पीछे से शुरू करता हूं। जमकर जंग हुई। उसके बाद विहंगम दृश्यच देखने को मिले। कांग्रेस दिल्ली , राजस्था।न और मिजोरम में जीत गई और छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश में भाजपा जीती। अब मालाएं पड़ रही हैं। ढोल-तासे बज रहे हैं। जो भीतरघात करने वाले थे, वे सबसे पहले बधाई देने जा रहे हैं। ग़लतफहमियां दूर हो रही हैं। अहम ग़लतियां हो रही हैं। विहंगम दृश्यव हुआ कि नहीं? और निहंग वे लोग होते हैं, जो प्रतिबद्ध होते हैं, कटिबद्ध होते हैं, एक पंथ के अनुयायी होते हैं और शांत रहते हैं। हथियार रखते हुए भी जो विनम्रता बनाए रखे वह निहंग। शीला दीक्षित और अशोक गहलौत अब निहंग की तरह काम कर सकते हैं, क्योंहकि विकास की राह में कोई रोड़ा नहीं होगा और सरकार ऐसी बना सकते हैं जिसमें कोई थका हुआ घोड़ा नहीं होगा।
--ठीक। चल मान लिया। अब हंग बता।
--चचा हंग शब्दल हिंदी में तो है नहीं।
--अटक गयौ न!
--खुल गया चचा, हंग का कूट भी खुल गया। दिल्ली में बहुत सारे चुनाव विशेषज्ञों को ये डबका था कि यहां हंग सरकार आएगी। त्रिशंकु सरकार बनेगी। बसपा की घुसपैठ के कारण नुकसान कांग्रेस को होगा। लेकिन मामला पल्टीक खा गया। कांग्रेस ने कूट के धर दिया भाजपा को। बसपा भाजपा के लिए भारी पड़ गई। कमल के फूल पर कुर्सी नहीं सज पाई। कुर्सी वहीं की वहीं रही। जीत गया दिल्लीप का हरा-भरा विकास और आत्मलविश्वाकस से भरा-भरा शीला आंटी का चेहरा। हंग सरकार नहीं बनी। जो काम हुआ, मैं तो समझता हूं कि ढंग का हो गया।
--कैसे?
--क्यों कि जनता जान चुकी है कि थोथे और ऊपरी नारों से बात बनती नहीं है। भाजपा आ जाती तो क्याा महंगाई रोक लेती? आतंकवाद रोक लेती? आतंकवाद को समेटने के लिए अनुत्तेजक समझदारी की आवश्यआकता होती है और विकास के लिए निरंतरता की। शीला आंटी ने विकास की जो निरंतरता बनाई थी उसमें गतिरोध आ जाता। माना कि काम फिर भी होते। मैट्रो फिर भी विकसित होती, लेकिन हर काम के लिए टेंडर दुबारा खुलते। अधिकारी बदले जाते और बदले की भावना प्रबल होती। चुनाव आने से पहले राज-मिस्त्रियों कारीगरों के जो पेचकस, छैनी, हथौड़े, फावड़े जैसे औज़ार शांत पड़े थे, अब दनादन कूटम-कूटम करेंगे। काम की रफ्तार बढ़ जाएगी। रेडियो पर मैट्रो के बारे में एक विज्ञापन सुना था— 'मियां जुम्मटन, जवाहर, दीप सिंह, पीटर मेरे भाई! कहां पर बैठे थे हम, और कहां जाके निकाला है, मैट्रो का मेरी दिल्लील में ये, जादू निराला है'। हम कांग्रेस की मैट्रो में बैठे थे, दस साल सवारी करी और कांग्रेस के ही स्टेरशन पर उतर आए। ये कूट-काव्या कांग्रेसियों की समझ में भी आ जाए तो सेमीफाइनल के बाद फाइनल में भी उनका जलवा हो सकता है। दो चीज़ों की दरकार है-- समझदारी की निरंतरता और निरंतरता की समझदारी। जीत ऐसे ही नहीं होती है। जीत के लिए किए जाते हैं प्रयास। और प्रयासों में भागीदारी से जीता जाता है भरोसा। जो जीते हैं, उन्होंंने भरोसा जीता है।
--वाह रे कूटकार चम्पूा!

7 comments:

अमित माथुर said...

गुरुदेव प्रणाम, ये "कांग्रेस के कसीदे" जो आपने पढ़े वास्तव में साठ प्रतिशत वोटिंग के बाद भी जब दिल्ली में कोंग्रेस की सरकार बनती है तो लगता है की बुजुर्ग, हमारे और आपके, सही कहते थे की भारत की नय्या को जवाहर की कोंग्रेस ही पार लगा सकती है. इतिहास गवाह है की भारतीय जनता पार्टी दिल्ली या भारत की सरकार चलाने में अक्षम ही रही है. वास्तव में कूट बिना झूट नहीं चल सकता और ये गुर भाजपा ने आज तक नहीं सीखा. भाजपा के पास आज कोई भी ताक़तवर नेतृत्व नहीं है. अडवाणी जी के चेहरे से अटलजी वाला नूर गायब है और बिना नूर के तो लोग भगवान् को भी नहीं पूजते. मगर फिर भी आपके द्वारा पार्टी विशेष का गुनगान कुछ ऐसा लगता है जैसे पुराने राजा महाराजा अपने कसीदाकर रखा करते थे. हम जैसे अनुयायियों को देखते हुए आपका अनेको विषयो पर तटस्थ रहना ज़रूरी है. उम्मीद करता हूँ आप समझेंगे की भावना में बहकर भी कामना शुभ ही है मेरी. -अमित माथुर, saiamit@in.com

दिनेशराय द्विवेदी said...

हिन्दी मे हंग शब्द है जी।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हंगम भंगम करने के लिए अभिनन्दम।

विष्णु बैरागी said...

सब कुछ कह गए किन्‍तु हिन्‍दी में 'हंग' के बारे में चुप्‍पी साधे रह गए ।

बवाल said...

गुरुजी आदाब अर्ज़ किया है. क्या ज़ोरदार कूट्काव्य परिभाषित हुआ मज़ा आ गया सर. यूं ही ब्लागजगत को आपका आशीर्वाद मिलता रहे, इसी कामना के साथ चरण स्पर्श करता. स्वीकारें. हरिओम.

ss said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया,पढ़कर मजा आ गया| खासकर,
"कूटना तो आप जानते ही हैं, जैसे असभ्य पति अपनी पत्नी। को कूटते हैं और सभ्य। पत्नियां अपने पति को कूटती हैं।"

अमित माथुर said...

गुरुदेव भारत की आजादी के बाद नेताओ को क्रांतिकारी तो समझा नहीं जा सकता सो लोगो ने उनको गुंडा, बदमाश, अपराधी, नैतिकताविहीन और पता नहीं क्या क्या कहा है. आपको नहीं लगता ये 'लोकतंत्र पर कुठाराघात' की संज्ञा में आता है? मेरे विचार से तो इस भावना ने भले लोगो को लोकतंत्र और सरकार के चयन की प्रक्रिया से दूर ही किया है. आपका क्या विचार है? कृपया प्रतिक्रिया दें. वैसे मैं आपसे कुछ ज़्यादा ही प्रश्न करने लगा हूँ. क्या करू कोशिश में हूँ की भगवन कृष्ण से भगवद गीता निकलवा लूँ. धन्यवाद सहित आपका शिष्य अमित माथुर