होली के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर
दुनिया पहले हर पल बदलती थी अब पल के हजारवें हिस्से में भी बदलने लगी है। बदलाव आया है हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में। पहले हम हर चीज़ को भाव पक्ष कला पक्ष या कथ्य और शिल्प में बांट कर देखा करते थे। आजकल हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के रूप में देखते हैं। और ये हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर हमारे नैनों के सामने नैनो गति से बदल रहे हैं।
होली के हार्डवेयर के नाम पर हमारे पास बांस की बनी हुई पिचकारी हुआ करती थी, जिसको स्वयं अपने उद्यम से बनाया जाता था। बांस का फिट दो फिट का खोखला टुकड़ा लिया, बांस की मोटी खपच्ची में कपड़ा फिट किया। बांस की पाइप में एक तरफ किया छेद और बन गई पिचकारी। ऐसी पिचकारी मैंने खुद अपने बचपन में बनाई हैं। और मैं कोई प्रागैतिहासिक जीवाश्म तो हूं नहीं। माना कि पिछली सदी में आया हूं लेकिन इतना पुराना तो नहीं हुआ। संपन्न लोगों के पास पीतल की या लोहे की पिचकारियां होती थीं। देखते-देखते पिचकारी प्लास्टिक की हो गईं। गुब्बारे में आते-आते इलास्टिक हो गईं। रंग धार बनाकर छोड़े जाते थे, फिर गुब्बारे फेंक कर मारे जाने लगे। अब तरह-तरह की पिचकारियां चीन से बन कर आ रही हैं। बच्चे उनसे भी बोर हो गए। होली गेम्स के सॉफ्टवेयर अपने कम्प्यूटर पर डाउनलोड करके अकेले खेलते हैं। सबसे गलत है होली अकेले खेलना।
पिचकारी के साथ रंग भी हार्डवेयर का ही हिस्सा होते हैं। हार्ड ड्राइव और रैम में कैमिकलीय कलर आ गए हैं। बचपन में हम लोग टेसू के सूखे फूलों को पानी में भिगोते थे। वसंती-पीला शानदार रंग बनता था। उसकी महक में भी बड़ा मजा आता था। ठिठोली हार्डवेयर में कुछ नुकीली चीजें भी हुआ करती थीं। जैसे, सेफ्टीपिन को मोड़ा जाता था, उसमें धागा बांधकर, तार पर लटका कर किसी की भी टोपी में अटकाकर खींच लिया करते थे। फिर रंगों के लिए पैसे ऐंठ कर टोपी वापस की जाती थी। बड़ा आसान सा घरेलू हार्डवेयर था, जिसके लिए हमें कोरिया, चीन, जापान पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था। अपना प्रोसेस अपना प्रोसेसर।
एक और ध्वनि उत्पादक उपकरण बनाया करते थे— ‘बबकन्ना’। टीन के डिब्बे में छेद करके, उसमें गांठ लगी सुतली फंसा कर बैरोजा लगाने के बाद रेगमाल से खींचते थे। बबका देने वाला हार्डवेयर। किसी के भी पीछे, नितम्बों के पास, सुतली पर रगड़ते हुए रेगमाल खींच दो तो बड़ी तेज आवाज आती थी। व्यक्ति बबक जाता था। जब तक पल्टे तब तक बच्चे शोर मचाते हुए भाग लेते थे।
एक होता था ठप्पा हार्डवेयर। आलू आधा काट कर बनाया जाता था। चाकू से आलू को दो भागों में काट लेते थे। बड़ी सफाई से उस पर उल्टी लिपि में गधा लिखते थे। बारीक नक्काशी करके ठप्पा बना लेते थे। तह किए हुए पुराने कपड़े से नीली या काली स्याही का स्टैम्प पैड बनाते थे। किसी गली में छिप कर आगंतुकों की प्रतीक्षा करते थे। बड़ा मजा आता था किसी की कमीज पर ‘गधा’ ठप्पा लगाने में। आज आलू काट कर कार्विंग की इतनी मेहनत कौन करेगा, जब बाजार में बने बनाए चालू हार्डवेयर मिल जाते हैं, जो एक मिनट में आदमी को भालू बना देते हैं। पहले कितना भी रंग जाए, लेकिन रंगों के बीच में लिखा गधा नजर आता था। अब कैमिकल के गाढ़े रंगों में होली वाले दिन आदमी को पहचानना ही कठिन हो जाता है कि पड़ौसी है या पति।
होली हार्डवेयर प्रोद्यौगिकी में सॉफ्टवेयर चलते हैं नौद्यौगिकी के। नौद्यौगिकी, यानी नौ प्रकार के रसों के सॉफ्टवेयर, जो हर किसी के दिल के बाजार में उपलब्ध हैं। यह सॉफ्टवेयर तेजी से बदल रहे हैं। हार्डवेयर का मसला उतना संगीन नहीं है, जितना इन बदलते हुए सॉफ्टवेयरों का है।
होली पर हास्य का सॉफ़्टवेयर सबसे अच्छा है। खुद हंसिए, दूसरों को हंसाइए। श्रृंगार की रति का भी एक सॉफ्टवेयर चलता है जो कुदरत ने अपने करिश्मे से बनाया है। कामदेव ने उस पर बहुत मेहनत की है। अनंत काल की रिसर्च के बाद, शिव के द्वारा भस्म होने के बावजूद, यह सॉफ्टवेयर लगातार अपडेट हो रहा है। इस सॉफ़्टवेयर को कितनी बार करप्ट किया गया, कितनी बार हैक किया गया, इसकी फाइलें उड़ाने की कोशिश की गईं, लेकिन सर्वाधिक वेबसाइट इसी सॉफ़्टवेयर में बन रही हैं। इंटरनल इंटरनेट वाला यह सॉफ्टवेयर नैसर्गिक है। इसमें स्वर्गिक आनन्द तभी है जब इसका एक सर्ग ही हो। एक नर-नारी युगल तक सीमित रहे तो अच्छा काम करता है। प्रेम चौदस यानी वेलंटाइन डे अभी होकर चुका है उसके बाद होली के अवसर पर जिससे प्रीति रखते हों उसको ये सॉफ्टवेयर जरूर दे दें। दूसरों को भी बताएं कि अंतरंग नैटवर्किंग से डाउनलोड किया जा सकता है।
इधर कुंठा नाम का सॉफ्टवेयर ज्यादा चल पड़ा है। रति सॉफ्टवेयर के साथ कुंठा सॉफ़्ट्वेयर यदि आपने अपने हार्डवेयर में डाल लिया तो जीवन-कम्प्यूटर क्रैश हो सकता है। शांत, भक्ति, करुणा, ममता आदि ऐसे निरापद सॉफ्टवेयर ऐसे हैं जो पुरानी संचालन प्रणालियों वाले किसी भी हार्डवेयर में चल सकते हैं।
होली के सॉफ्टवेयर्स में कई बार अति उत्साह, ओज और जुगुप्सा के वायरस आ जाते हैं। ये तीनों वायरस आपकी होली की हार्डड्राइव को बरबाद करने वाले होते हैं। आप ज्यादा पी जाएंगे, टुल्ल हो जाएंगे, अति उत्साह दिखाएंगे, कपड़े फाड़ेंगे किसी के और वह आपके कपड़े फाड़ेगा, डराएंगे, उल्टियां करेंगे तो जाहिर है परेशानी होगी।
कपड़ा फाड़ू होली बिहार में खूब चलती है। लालू जी उसे बड़े प्रेम से मनाते हैं। ऐसा न हो कि कुर्ता फाड़ होली के समय आप अंग-फाड़ हो जाएं, इसलिए ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते समय आपको अतिरिक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत है। आप होली-भय नामक सॉफ्टवेयर अपने मित्रों के दिल के कम्यूटर के फोल्डर से रिमूव कर दीजिए। जो अभी तक सूखे बैठे हैं उनके होली-भय सॉफ्टवेयर परिवर्तित करते हुए, उसकी जगह होली-हास्य सॉफ्टवेयर डालिए। घर में बैठे रहने से क्या होगा? होली मेल-मिलाप का त्यौहार है, अकेले विलाप का नहीं। वाद-विवाद मिटा कर संवाद बढ़ाइए, गले मिलते हैं आइए।
Sunday, February 28, 2010
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8 comments:
bahut aachi jaankari aur vichaar
Happy Holi.............
Ashok ji kya aap ki haal main chapi book ki ek copy mil sakti hai.
आपको तथा आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ.nice
हैप्पी होली>
।
हार्डवेयर और सॉफ्ट्वेयर का अस्ली अंतर अब पता चला । शुभकमनायें ।
डा० साहब!
बहुत खूबियां हैं आपके हार्डवेयर और सॉफ्ट्वेयर में ........सबसे बडी खूबी तो यही है कि वायरस प्रोटेक्टेड है........होली पर एक डंडासाफ्ट कं० का नेचरल सॉफ्ट्वेयर भेज रहा हूं.....इसे भी आजमाइए ।
नेचर का देखो फैशन शो
-डॉ० डंडा लखनवी
क्या फागुन की फगुनाई है।
हर तरफ प्रकृति बौराई है।।
संपूर्ण में सृष्टि मादकता -
हो रही फिरी सप्लाई है।।1
धरती पर नूतन वर्दी है।
ख़ामोश हो गई सर्दी है।।
भौरों की देखो खाट खाड़ी-
कलियों में गुण्डागर्दी है।।2
एनीमल करते ताक -झाक।
चल रहा वनों में कैटवाक।।
नेचर का देखो फैशन शो-
माडलिंग कर रहे हैं पिकाक।।3
मनहूसी मटियामेट लगे।
खच्चर भी अपटूडेट लगे।।
फागुन में काला कौआ भी-
सीनियर एडवोकेट लगे।।4
इस जेन्टिलमेन से आप मिलो।
एक ही टाँग पर जाता सो ।।
पहने रहता है धवल कोट-
ये बगुला या सी0एम0ओ0।।5
इस ऋतु में नित चैराहों पर।
पैंनाता सीघों को आकर।।
उसको मत कहिए साँड आप-
फागुन में वही पुलिस अफसर।।6
गालों में भरे गिलौरे हैं।
पड़ते इन पर ‘लव’ दौरे हैं।।
देखो तो इनका उभय रूप-
छिन में कवि, छिन में भौंरे हैं।।7
जय हो कविता कालिंदी की।
जय रंग-रंगीली बिंदी की।।
मेकॅप में वाह तितलियाँ भी-
लगतीं कवयित्री हिंदी की।8
वो साड़ी में थी हरी - हरी।
रसभरी रसों से भरी- भरी।।
नैनों से डाका डाल गई-
बंदूक दग गई धरी - धरी।।9
ये मौसम की अंगड़ाई है।
मक्खी तक बटरफलाई है ।।
धोषणा कर रहे गधे भी सुनो-
इंसान हमारा भाई है।।10
सचलभाष-0936069753
जानकारी मिल गई...:)
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
सभी मित्रों को होली की मंगलकामनाएं
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